सबरीमाला मंदिर मामले की पुनर्विचार याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई
प्रदर्शनकारियों ने सदियो से चली आ रही परंपरा के खिलाफ आए कोर्ट के फैसले को मानने से इंकार कर दिया है। चार दिन पहले ही मंदिर तीन महीने तक चलने वाली वार्षिक यात्रा के लिए खुलने वाला है। याचिकार्ताओं का तर्क है कि आस्था को वैज्ञानिक ढंग द्वारा तय नहीं किया जा सकता है। उनका कहना है कि प्रजनन की उम्र वाली महिलाओं को इसलिए मंदिर में आने की इजाजत नहीं है क्योंकि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी थे।
केरला के मंदिर मामलों के मंत्री कदाकमपल्ली सुरेंद्रन ने सोमवार को कहा, ‘सरकार खुले दिमाग की है। हम सबरीमाला के मामले पर बातचीत करने के लिए सभी पार्टियों को बुलाएंगे। पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद हम इसकी तारीख और समय का फैसला करेंगे।’ भाजपा ने जहां सबरीमाला अभियान को तेज कर दिया है। वहीं कांग्रेस ने परिस्थिति से ठीक तरह से न निपटने और प्रदर्शनकारियों का साथ देने का आरोप लगाते हुए केरल सरकार की आलोचना की है।
मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के नेतृत्व वाली वामपंथी सरकार ने इस बात को दोहराया था कि वह सुप्रीम कोर्ट द्वारा 28 सितंबर को दिए फैसले को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है। लेकिन उसने इस मुद्दे का राजनीतिकरण करने के लिए प्रतिद्वंदी पार्टियों पर आरोप लगाया है। भाजपा के राज्य अध्यक्ष पीएस श्रीधरन पिल्लई ने मंदिर के रीति-रिवाजों को बचाने के लिए रथ यात्रा पर हैं। उन्होंने कहा, ‘हमें उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट भक्तों के बढ़ते विरोधों पर ध्यान देते हुए उचित निर्णय लेगा।’
वहीं दिल्ली में सॉलिसिटर जनरव तुषार मेहता ने सोमवार को रैलियों में कोर्ट के फैसले के खिलाफ कथित रूप से बोलने के लिए पिल्लई और चार अन्य के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया। एक महीने पहले दो महिला वकीलों ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से आग्रह किया था लेकिन उन्होंने यह कहते हुए किनारा कर लिया कि वह अतीत में त्रावणकोर देवास्वम बोर्ड के प्रतिनिधि रह चुके हैं। बता दें कि किसी पर कोर्ट की अवमानना की कार्यवाही चलाने के लिए अटॉर्नी जनरल के दफ्तर की मंजूरी आवश्यक होती है।