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सबरीमाला मंदिर से जुड़ी 5 तथ्य जो आप नहीं जानते होंगे

नई दिल्ली: केरल का सबरीमाला मंदिर बुधवार को खुलेगा। इसके लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु जमा हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद मंदिर में महिलाओं का प्रवेश हो पाएगा कि नहीं, अभी इस पर संशय बरकरार है। केरल सरकार ने साफ कर दिया है कि वह सुप्रीम कोर्ट का फैसला लागू करवाएगी जबकि भक्त इस फैसले के विरोध पर अड़े हैं। तांत्री (प्रमुख पुरोहित) परिवार, पंडलाम राजपरिवार और अयप्पा सेवा संघम समेत अलग-अलग संगठन इस फैसले पर मंथन कर रहे हैं। यहां जानें सबरीमाला मंदिर से जुड़ी 5 बातें जो आप नहीं जानते होंगे-

1 – अन्य हिंदू मंदिरों की तरह सबरीमाला मंदिर पूरे साल भक्तों के लिए नहीं खुलता। मलयालम कैलेंडर के अनुसार यह हर महीने के पहले पांच दिन खुलता है। इसके अलावा यह नवंबर मध्य से जनवरी मध्य के बीच वार्षिक उत्सव मंडलम और मकाराविलक्कु के दौरान भी खुलता है। भगवान अयप्पा के भक्तों के लिए मकर संक्रांति का दिन बहुत खास माना जाता है, इसीलिए उस दिन यहां सबसे ज्यादा भक्त पहुंचते हैं।

2 – सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले तक यहां सिर्फ छोटी बच्चियां और बूढ़ी महिलाएं ही प्रवेश कर सकती थीं। इसके पीछे मान्यता है कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी थे। इसलिए मंदिर में मासिक धर्म के आयु वर्ग में आने वाली स्त्रियों का जाना प्रतिबंधित है। 10 से 50 उम्र तक की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी की यह मान्यता यहां 1500 साल पुरानी है। अब बुधवार को जब मंदिर खुलेगा तो देखना होगा क्या होता है।

3- इस मंदिर में आने वाले भक्त सिर पर पोटली रखकर आते हैं। वह पोटली नैवेद्य (भगवान को चढ़ाई जानी वाली चीजें, जिन्हें प्रसाद के तौर पर पुजारी घर ले जाने को देते हैं) से भरी होती है। यहां मान्यता है कि तुलसी या रुद्राक्ष की माला पहनकर, व्रत रखकर और सिर पर नैवेद्य रखकर जो भी व्यक्ति आता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

4- कौन थे अयप्पा?- पौराणिक कथाओं के अनुसार अयप्पा को भगवान शिव और मोहिनी (विष्णु जी का एक रूप) का पुत्र माना जाता है। इनका एक नाम हरिहरपुत्र भी है। हरि यानी विष्णु और हर यानी शिव, इन्हीं दोनों भगवानों के नाम पर हरिहरपुत्र नाम पड़ा। इनके अलावा भगवान अयप्पा को अयप्पन, शास्ता, मणिकांता नाम से भी जाना जाता है। दक्षिण भारत में प्रमुख मंदिर सबरीमाला दक्षिण का प्रसिद्ध तीर्थस्थल है।

5- इस मंदिर तक पहुंचने के लिए 18 पावन सीढ़ियों को पार करना पड़ता है, जिनके अलग-अलग अर्थ भी बताए गए हैं। पहली पांच सीढियों को मनुष्य की पांच इन्द्रियों से जोड़ा जाता है. इसके बाद वाली 8 सीढ़ियों को मानवीय भावनाओं से जोड़ा जाता है। अगली तीन सीढियों को मानवीय गुण और आखिर दो सीढ़ियों को ज्ञान और अज्ञान का प्रतीक माना जाता है।

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