सम्पादकीय
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की तैयारियां सभी दलों ने बड़े पैमाने पर शुरू कर दी हैं। संभवत: दिसम्बर के आसपास चुनाव की तारीखें तय होने की चर्चा राजनीतिक गलियारों में चल रही हैं। सभी राजनीतिक दल जिनमें सपा, भाजपा, बसपा एवं कांग्रेस प्रमुख दलों ने पूरी ताकत के साथ उत्तर प्रदेश में अपनी उपस्थिति दर्ज करानी शुरू कर दी है। समाजवादी पार्टी जहां अपने युवा मुख्यमंत्री को विकास पुरुष जैसी छवि के साथ विकास की राजनीति और अपने चुनावी वादे पूरे करने के लक्ष्य के साथ अपनी उपयोगिता प्रदेश के हित में सिद्ध करते दिखायी दे रही हैं। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव 2012 की ‘समाजवादी क्रांति रथयात्रा’ की तर्ज पर पूरे प्रदेश में ‘समाजवादी विकास रथयात्रा’ पर निकलने वाले हैं।
दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी जिसने लोकसभा चुनावों में ऐतिहासिक जीत हासिल कर 73 सांसद उत्तर प्रदेश से अपनी झोली में डाले थे, उसकी भी चुनावी तैयारी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की ताबड़तोड़ रैलियों से आरम्भ हो चुकी है। अमित शाह ने अपने भाषणों में स्पष्ट कर दिया है कि भाजपा 2017 के विधानसभा चुनावों में 265 सीटों के लक्ष्य से कम पर समझौता करने वाली नहीं है और जन-जन तक अपनी बात पहुंचाने के लिए 50 रैलियों की शृंखला तैयार कर ताबड़तोड़ रैलियों की शुरुआत कर दी है जिन्हें समय-समय पर मोदी, राजनाथ सिंह एवं अमित शाह संबोधित करेंगे और साथ ही अपने सभी सांसदों को ब्लाक स्तर पर कार्यकर्ता सम्मेलन करके आम जन तक भारतीय जनता पार्टी की उपलब्धियों को बताना और साथ ही प्रदेश के विकास की रूपरेखा को स्पष्ट रूप से जन-जन तक पहुंचाना है।
तीसरी सबसे मजबूत दावेदार बहुजन समाज पार्टी जो अभी तक उत्तर प्रदेश के चुनावों में पहले नंबर पर पहुंचती दिखायी दे रही थी, अचानक से उसके सबसे बड़े सिपहसालार स्वामी प्रसाद मौर्या द्वारा पैसा लेकर टिकट देने के आरोप के साथ बहुजन समाज पार्टी से इस्तीफा देने और इसके तुरंत बाद एक और दलित नेता आरके चौधरी के पार्टी छोड़ने से बहुजन समाज पार्टी की नेत्री मायावती बैकफुट पर हैं। बहुजन समाज पार्टी की परम्परा लोगों को निकालने की रही है किन्तु स्वामी प्रसाद मौर्या जो कि नेता प्रतिपक्ष के रूप में बहुजन समाज पार्टी का बड़ा चेहरा थे, उन्होंने पार्टी से इस्तीफा देने की घोषणा करके राजनीतिक बढ़त ले ली वरना मायावती को इस बात का जरा भी अंदेशा होता तो वो पहले ही उन्हें पार्टी से बर्खास्त कर चुकी होतीं, मौर्या प्रकरण की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मायावती को बाकायदा दो बार प्रेस कांफ्रेंस करके सफाई देनी पड़ी। बहुजन समाज पार्टी में इन दिनों जो भगदड़ का माहौल बना है, उससे बहुजन समाज पार्टी के वोट बैंक पर तो कोई खतरा नहीं नजर आता लेकिन माहौल बिगाड़ने के तौर पर इसे जरूर देखा जा सकता है जिसका सीधा फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिलता नजर आ रहा है।
प्रदेश में चौथे नंबर की राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस भी इस बार उत्तर प्रदेश के चुनाव में पूरी ताकत के साथ सभी राजनीतिक पार्टियों से दो-दो हाथ करने को तैयार है। राहुल गांधी के राजनीतिक रथ को उत्तर प्रदेश में हाकने के लिए प्रशांत किशोर सरीखा सारथी मिल गया है। अब प्रशांत किशोर ने रथ की बागडोर अपने हाथ में ले ली है। पूरे प्रदेश में उन्होंने सक्रिय कार्यकर्ताओं की टीमें खड़ी की हैं और बहुत ही आधुनिक तरीके से अपने कार्यक्रम को कार्यान्वित कर रहे हैं। जो काम पिछले 25 वर्षों में कांग्रेस नहीं कर सकी, वो काम प्रशांत किशोर द्वारा किया जा रहा है। प्रशांत किशोर के इंटरनेट एक्सपर्ट एक-एक सीट का विश्लेषण कर रहे हैं और जिलों-जिलों में जाकर हालात का जायजा ले रहे हैं। प्रशांत किशोर की अभी तक की कार्यशैली से किसी चमत्कार की आशा करना कांग्रेसियों के लिए गलत नहीं है। कुछ न कुछ तो प्रशांत की मेहनत गुल खिलाएगी ही।
लेकिन कांग्रेस पार्टी के साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी के पास भी उत्तर प्रदेश चुनावों में सबसे बड़ी चुनौती उनके मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर है। दोनों राष्ट्रीय दल अभी तक मुख्यमंत्री के संभावित नाम की भी घोषणा नहीं कर पाये हैं जो समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव और बहुजन समाज पार्टी की मायावती के कद का सामना कर सके।