सम्राट विक्रमादित्य पर साढ़े साती शनि का हुआ था ऐसा असर: कथा
शनिवार भगवान शनिदेव के पूजन का विशेष दिन होता है। शनिवार के दिन श्री शनिदेव को तेल, तिल, काली उड़द, काले वस्त्र आदि पदार्थ चढ़ाने से हर रुके हुए काम बन जाते हैं। कुछ लोग शनिवार का व्रत करते हैं। शनिवार का व्रत करने से श्रद्धालुओं को इच्छित वर की प्राप्ति होती है। यही नहीं किसी बहती हुई नदी में कोयला, अथवा लोहे के पांच टुकड़े बहाने से भी शुभ फल प्राप्त होता है। इसी सम्बन्ध में हम आपको बता रहे है शनिदेव और विक्रमादित्य की कहानी जिसमे पता चलता है की क्यों विक्रमादित्य जंगलो में भटकते रहे।
कहानी
एक बार सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, गुरू, शनि, राहू, केतु सभी ग्रहों में आपस में विवाद हो गए। यह विवाद सभी की श्रेष्ठता को लेकर था। सभी एक दूसरे को श्रेष्ठ कहने लगे। जब निर्णय नहीं निकल सका तो सभी देवराज इंद्र के पास गए और कहने लगे कि सभी देवताओं के राजा हैं आप ही कुछ बताऐ। उनहोंने ग्रहों को इंकार कर दिया और कहा कि मुझमें सामर्थ्य नहीं कि किसी एक को श्रेष्ठ कहूं और उन्होंने पृथ्वी पर निवास करने वाले राजा विक्रमादित्य के बारे में कहा और कहा वे ही आपकी समस्या का निवारण करेंगे।
विक्रमादित्य ने सभी ग्रहों की बाते सुनी और फिर कहा कि यदि मैं सीधे से आपको बता दूंगा तो जिसे मैं छोटा बताउंगा वह मुझपर क्रोधित हो जाएगा। ऐसे में एक तरीका हम अपना सकते हैं। वह यह है कि सभी धातुओं लोहा, सोना, पीतल, चांदी, जस्ता आदि को एक साथ बिछाकर रख दिया जाए और आप ग्रह इस पर विराजें। जिसका आसन सबसे आगे वह सबसे पहले। मगर शनि देव का आसन लौहा सबसे पीछे था।
इसके बाद वे क्रोधित हो गए और जब सम्राट विक्रमादित्य को साढ़ेसाती लगी तो श्री शनिदेव घोड़ों के सौदागर बनकर आए। जब राजा ने घोड़ों की आवाज सुनी तो अश्वपाल को अच्छे घोड़े खरीदने की आज्ञा दी। खरीदे गए घोड़े पर राजा विक्रमादित्य चढ़े। इसके बाद घोड़ा तेजी से भागा और फिर कुछ दूर जाकर राजा को छोड़कर अंर्तध्यान हो गया। इसके बाद सम्राट विक्रमादित्य जंगल में भटकते रहे।