सरकार की कमियां उजागर करें कार्टूनिस्ट: अखिलेश
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव उस धारा के राजनीतिज्ञ हैं, जो गरीबों, किसानों और हाशिये पर पड़े लोगों को सशक्त बनाने की राजनीति करते हैं। चार साल पहले सत्ता में आने के बाद से ही अखिलेश सामाजिक सरोकार की नीतियां बनाने में जुटे हैं, ताकि गरीब और निराश्रित महिलाओं, युवाओं और किसानों को मजबूती दी जा सके। यह सब बिना संवेदनशील विचारों के संभव नहीं है। वे समाजवादी चिंतन और मानवीय मूल्यों से गहरे जुड़े हैं। यही कारण है कि वे जब यह कहते हैं कि ऐसे कार्टून बनाये जाएं, जिनमें सरकार की नीतियों की कमियां उजागर हों तो कोई अतिश्योक्ति नहीं लगती। यह विचार उन्हें अन्य राजनीतिज्ञों से अलग करता है।
भारतीय राजनीति में कुछ ही राजनीतिज्ञ हुए हैं, जो अपनी आलोचना पसंद करते हैं और अपने ऊपर बने कार्टूनों का लुत्फ उठाते हैं। इनमें पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का नाम सबसे ऊपर आता है। उनके बारे में कहा जाता है कि अपने ऊपर बने कार्टून वे चाव से पढ़ते थे और उनकी चर्चा भी करते थे। इसी तरह कार्टूनिस्ट पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की नाक बेहद लम्बी दिखाते थे, लेकिन इंदिरा जी ने कभी इसका बुरा नहीं माना। सुप्रसिद्ध समाजवादी नेता राजनारायण भी कार्टूनिस्टों की पसंद थे। राजनारायण शुद्ध लोकतांत्रिक मूल्यों के हिमायती राजनेता थे। वे आम आदमी के हितों की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकते थे। इसी तरह बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव पर सर्वाधिक कार्टून बने हैं। वे कार्टूनिस्टों के फेवरिट करैक्टर हैं। उन्होंने अपने ऊपर किये गये किसी भी व्यग्ंय का कभी बुरा नहीं माना। एक बार तो उन्होंने कहा था कि कार्टूनिस्टों और हास्य कलाकारों की रोजी-रोटी उनकी वजह से चल रही है। जिस समय उन्होंने कहा था, उस समय मंच पर हास्य कलाकार राजू श्रीवास्तव भी मौजूद थे, लेकिन सच यह है कि कार्टूनों में की जाने वाली आलोचना हर नेता पसंद नहीं कर सकता। लोकतांत्रिक मूल्यों का हिमायती और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पक्षधर व्यक्ति ही इसे पसंद करता है। पिछले दिनों ममता बनर्जी पर एक कार्टूनिस्ट ने कार्टून बनाया था, जिस पर ममता नाराज हो गयींं और उस कार्टूनिस्ट को जेल भिजवा दिया था।
इसीलिए अपने ऊपर बने कार्टूनों की किताब ‘टीपू का अफसाना, हिम्मते मर्दां’ का विमोचन करते समय जब अखिलेश यादव कहते हैं, ‘कार्टूनों से अच्छाई और बुराई दोनों सामने आती हैं। हम कार्टूनों के जरिये अपनी बुराई जानना चाहते हैं। हालांकि कई बार सच्चाई उनसे अलग होती है, जो कार्टून में दिखाई जाती है। अगर किसी से कह दो कि कार्टून लग रहे हो तो बुरा मान जाता है। मुझे अपने ऊपर बने कार्टून बहुत पसंद हैं। मैं इन्हें मोबाइल में सेव कर लेता हूं।’ तब अखिलेश अन्य राजनीतिज्ञों से अलग नजर आते हैं। उनकी वैचारिक परिपक्वता और गंभीरता अलग दिखायी देती है। इस संकलन में कई कार्टूनों में सरकार की नीतियों और बयानों पर चोट की गयी है। आखिरी कार्टून बुंदेलखण्ड के किसानों की दुर्दशा पर है। जहां किसान सूखा से पीड़ित व त्रस्त हैं, वहीं अखिलेश साइकिल चलाने में मस्त हैं। इसमें मुजफ्फरनगर दंगों से संबंधित कई कार्टून हैं, एक कार्टून राहुल गांधी पर भी है। इसी तरह लैपटॉप वितरण पर कई कार्टून शामिल किये गये हैं। अखिलेश यादव ने कार्टूनों की पुस्तक के विमोचन के अवसर पर पुस्तक के प्रकाशक और संपादक से कहा कि वे और ऐसे कार्टून छांटें, जिनमें सरकार की कमियां उजागर होती हों। इस मौके पर राजकमल प्रकाशन के मालिक और इस पुस्तक के प्रकाशक अशोक माहेश्वरी ने मुख्यमंत्री की प्रशंसा करते हुए कहा कि आलोचकों को साथ लेकर चलना बड़ी बात है। इसके लिए अंदरूनी शक्ति की जरूरत होती है। उन्होंने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री का नाम लिए बगैर कहा कि पिछले दिनों उनके कार्टून बनाने पर एक कार्टूनिस्ट को जेल जाना पड़ा था। उन्होंने कहा कि इस किताब में जिस तरह के कार्टून बनाये गये हैं, उससे मुझे उत्तर प्रदेश निकाला हो सकता था।
सच यह है कि अखिलेश यादव लोकतांत्रिक मूल्यों के जबरदस्त पक्षधर और जनसरोकारों के हिमायती हैं। जब कोई नेता इस तरह के विचारों से सम्पन्न होता है, तभी कमजोर और हाशिये पर पड़े लोगों के विकास की नीतियां बनायेगा। लोहियावादी विचारों में शोषितों और पीड़ितों को आगे ले जाने पर जोर दिया जाता है। इस मामले में वर्तमान सरकार गंभीरता से काम कर रही है।=