उत्तर प्रदेशराज्य

सरकार की मंजूरी पुलिस विभाग में होंगी 30,567 भर्तियां

imagesदस्तक टाइम्स एजेंसी/पुलिस फोर्स में कमी दूर करने को राज्य सरकार ने हेड कांस्टेबल, दरोगा व इंस्पेक्टरों की संख्या बढ़ाने का फैसला किया है। इसके लिए गृह विभाग की ओर से तैयार प्रस्ताव को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी। साथ ही अब यूपी पुलिस में इन तीनों संवर्गों में 30,567 नए पद सृजित होंगे।

पुलिस कर्मियों की संख्या बढ़ाने के लिए पुलिस मुख्यालय ने पिछले दिनों गृह विभाग को प्रस्ताव भेजा था। इसे सरकार ने मंगलवार को कैबिनेट में रखा, जिस पर सहमति बन गई।

प्रस्ताव में यूपी पुलिस में इंस्पेक्टरों के 2638 पदों को बढ़ाकर पांच हजार, सब इंस्पेक्टरों की संख्या 19,996 से बढ़ाकर 40 हजार और हेड कांस्टेबल के 53,799 पदों को बढ़ाकर 60 हजार करने का प्रस्ताव था।

इस प्रस्ताव पर मंजूरी मिलने के बाद जल्द ही पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड के जरिये इन्हें भरने की प्रक्रिया शुरू की जाएग़ी।

प्रदेश कैबिनेट ने कानपुर व वाराणसी में मेट्रो रेल परियोजना के संचालन से जुड़े प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। इसमें केंद्र व राज्य सरकार की बराबर की हिस्सेदारी होगी। दोनों शहरों में मेट्रो के प्रारंभिक नियोजन, आवश्यक सर्वेक्षण आदि के लिए अंतरिम कंसल्टेंट की जिम्मेदारी लखनऊ मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (एलएमआरसी) को सौंपी जाएगी। कैबिनेट ने इन शहरों में मेट्रो के लिए सबसे पहले इसके वैधानिक प्रावधानों से जुड़ी कार्यवाही आगे बढ़ाने को मंजूरी दी।

इसके तहत कानपुर व वाराणसी में मेट्रो रेल के निर्माण, संचालन और अनुरक्षण के काम के लिए केंद्र की मेट्रो रेल कार्यों का सन्निर्माण, अधिनियम-1978 यथा संशोधित 2009 तथा मेट्रो रेलवे परिचालन व अनुरक्षण अधिनियम-2002 को विस्तारित कराने का प्रस्ताव केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय को भेजने का फैसला किया।

इसके अलावा केंद्र की मेट्रो रेल नीति-2013 के अनुसार केंद्र से वित्तीय सहायता प्राप्त करने के लिए वित्त पोषण की इक्विटी सहभागिता 50:50 मॉडल (डीएमआरसी मॉडल) को अपनाने को भी मंजूरी दे दी। इक्विटी से अतिरिक्त रकम की व्यवस्था केंद्र के माध्यम से बाहरी एजेंसियों से ऋण लेकर की जाएगी।

कैबिनेट ने कानपुर व वाराणसी में मेट्रो प्रोजेक्ट के क्रियान्वयन के लिए स्पेशल परपज व्हीकल गठित करने का भी फैसला किया है। इनके नाम व स्वरूप पर निर्णय के लिए मुख्यमंत्री को अधिकृत किया गया है।

प्रदेश कैबिनेट ने 31 दिसंबर 2001 तक नियुक्त दैनिक, संविदा और वर्कचार्ज कर्मचारियों को नियमित करने की मंजूरी दे दी है। राजकीय विभागों, स्वशासी संस्थाओं, सार्वजनिक उपक्रमों व निगमों, स्थानीय निकायों, विकास प्राधिकरणों व जिला पंचायतों में इस तिथि तक नियुक्त कर्मियों की नौकरी पक्की होगी। इससे करीब 5000 कर्मचारी फायदा पाएंगे।

शासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि 1991 में 30 जून तक नियुक्त दैनिक, संविदा और वर्कचार्ज कर्मी नियमित किए गए थे। इसके बाद पिछले साल अगस्त में 31 मार्च 1996 तक के कर्मियों को नियमित करने का फैसला हुआ। अब सरकार ने 31 दिसंबर 2001 तक के कर्मचारियों को नियमित करने की मंजूरी दी है। इस बार वर्ष की अंतिम तिथि तक नियमितीकरण का फैसला हुआ है।

बिना अनुमति दैनिक , संविदा और वर्कचार्ज की भर्ती संज्ञेय अपराध
शासन ने यह भी तय किया है कि अब संविदा, दैनिक व वर्कचार्ज के� आधार पर भर्ती नहीं की जाएगी। शासन की पूर्व स्वीकृति के बिना इन श्रेणियों में नियुक्ति को संज्ञेय अपराध माना जाएगा।

इन्हें नहीं मिलेगा लाभ
इस फैसले का फायदा सीजनल संग्रह अमीन, सीजनल अनुसेवक, उद्यान, कृषि, कृषि शिक्षा के� अंतर्गत काम करने वाले सीजनल कर्मी, मनरेगा, आगनबाड़ी, आशा बहू, होमगार्ड स्वयंसेवक, प्रांतीय रक्षक दल स्वयंसेवक, शिक्षामित्र, किसान मित्र व केंद्र सरकार तथा राज्य सरकार की योजनाओं में मानदेय या अन्य आधार पर रखे गए कर्मचारियों को नहीं मिलेगा।

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की अध्यक्षता वाली कैबिनेट ने मंगलवार को यूपी सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यम नीति-2016 को मंजूरी दे दी। इसके साथ ही सूबे के लघु उद्यमियों की एक पुरानी मांग पूरी हो गई है। मुख्यमंत्री ने ‘अमर उजाला’ के एमएसएमई कॉन्क्लेव में एमएसएमई नीति लाने की घोषणा की थी।

इस नीति में निजी क्षेत्र की मदद से औद्योगिक क्षेत्रों के विकास, कृषि उपज को उचित मूल्य दिलाने केलिए कॉमन फैसिलिटी सेंटर, तकनीकी संस्थानों में एमएसएमई इन्क्यूबेशन सेंटरों की स्थापना जैसे प्रस्ताव शामिल हैं। जिला उद्योग केंद्रों को जिला उद्योग एवं प्रोत्साहन केंद्रों के रूप में विकसित किया जाएगा। सरकार ने प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में निजी क्षेत्र के सहयोग से सोर्सिंग व मार्केटिंग हब बनाने का फैसला किया है।

प्रमुख सचिव सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यम रजनीश दुबे ने बताया कि केंद्रीय एमएसएमई एक्ट-2006 बनने के बाद प्रदेश में पहली बार सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यम नीति बनाई गई है। कृषि के बाद एमएसएमई दूसरा ऐसा सेक्टर है जो 1.35 करोड़ से अधिक रोजगार के अवसर उपलब्ध कराता है।

प्रदेश से निर्यात का दो तिहाई हिस्सा एमएसएमई सेक्टर से होता है।नीति के तहत उद्योग लगाने पर ब्याज प्रतिपूर्ति� स्कीम में महिलाओं को 20 प्रतिशत हिस्सेदारी मिलेगी। नीति के क्रियान्वयन से एमएसएमई की वार्षिक विकास दर 12 प्रतिशत रखने का संकल्प लिया गया है।एमएसएमई के लिए विभाग फैसीलिटेटर की भूमिका निभाएगा।

एमएसएमई क्षेत्र में कारोबार को बढ़ावा देने के लिए एमएसएमई पोर्टल बनेगा।
– विश्व व्यापार संगठन सेल और इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स सेल का भी गठन होगा।

-इंस्टीट्यूट ऑफ� डिजाइन को मजबूत किया जाएगा और लखनऊ में इसका नया कैंपस बनेगा।
– एमएसएमई के तेजी से विकास के लिए क्लस्टर एप्रोच के अंतर्गत उद्यमियों के उत्पादों, प्रक्रियाओं आदि की अंतरराष्ट्रीय स्तर की टेस्टिंग की व्यवस्था होगी।

– सूचना तकनीकी का लाभ दिलाने के लिए निदेशालय स्तर पर सूचना तकनीक सेल बनेगा।
– पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के आधार पर देश व विदेश में निर्यात प्रोत्साहन हब विकसित किए जाएंगे।

– उद्यमों को बेहतर मानव संसाधन उपलब्ध कराने के लिए कौशल विकास मिशन से जुड़कर प्रशिक्षण दिलाया जाएगा।
– क्लस्टर एप्रोच के तहत केंद्र सरकार की योजनाओं का सहयोग लेकर प्रदूषण नियंत्रण की कार्रवाई होगी।
– सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम व निर्यात प्रोत्साहन विभाग इस नीति को लागू करने के लिए नोडल एजेंसी होगा।

पिछड़े जिलों में लघु उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए 15 लाख रुपये तक ब्याज की प्रतिपूर्ति की जाएगी। बी श्रेणी के जिलों में बैंक व अन्य वित्तीय संस्थाओं से उद्यम के लिए ऋण लेने पर 5 प्रतिशत की दर से अधिकतम तीन लाख प्रति इकाई प्रति वर्ष व पांच वर्षों के लिए ब्याज की प्रतिपूर्ति की जाएगी।

सी श्रेणी के जिलों में लिए गए ऋण पर सात प्रतिशत की दर से अधिकतम तीन लाख प्रति इकाई प्रति वर्ष की दर से पांच वर्ष तक ब्याज प्रतिपूर्ति होगी। उद्योग को तकनीकी स्तर पर आगे बढ़ाने पर होने वाले निवेश में 15 प्रतिशत की दर से अधिकतम 10 लाख का अनुदान दिया जाएगा।

नई नीति में 25 लाख तक के उद्योग लगाने पर परियोजना लागत का 25 प्रतिशत अधिकतम सीमा 6.25 लाख रुपये तथा सेवा क्षेत्र के लिए 10 लाख रुपये तक की परियोजना पर 25 प्रतिशत अधिकतम सीमा ढाई लाख रुपये तक मार्जिन मनी उपलब्ध कराई जाएगी।

लघु एवं मध्यम उद्यम एवं निर्यात प्रोत्साहन राज्यमंत्री स्वतंप्रभार नितिन अग्रवाल का कहना है ‘प्रदेश सरकार की इस नीति से उद्यमियों को बेहतर वातावरण मिलेगा। नीति को पूरी तरह पारदर्शी, आकर्षक और व्यावहारिक बनाया गया है। इसमें महिलाओं, अनुसूचित जातियों, जनजातियों, अन्य पिछड़े वर्गों, अल्पसंख्यकों और निशक्तों की भागीदारी बढ़ाने की व्यवस्था है। एमएसएमई में तकनीकी उन्नयन को विशेष बढ़ावा दिया जाएगा। नई नीति से बेरोजगारी दूर होगी और उद्यमों का विकास होगा।’

प्रदेश कैबिनेट ने 50 करोड़ रुपये या इससे अधिक निवेश करने वाले उद्यमियों को कॉमन एप्लीकेशन फार्म पर 12 विभागों की अनुमति, आपत्ति व लाइसेंस की सुविधा देने का फैसला किया है। उद्यमी को यह सारी सुविधा ऑनलाइन मिलेगी। कैबिनेट ने इसके लिए डवलप किए गए कॉमन एप्लीकेशन फार्म (सर्वनिष्ठ आवेदन) व उससे जुड़ी प्रक्रिया को मंजूरी दे दी है।

अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि प्रदेश में उद्योगों की स्थापना के लिए करीब एक दर्जन विभागों से एनओसी, अनुमति व लाइसेंस की जरूरत होती है। वर्तमान में उद्यमी इसके लिए उद्योग बंधु के निवेश मित्र ऑनलाइन सिस्टम से आवेदन करते हैं,� लेकिन उसे इन प्रमाणपत्रों के लिए संबंधित विभागों में जाना पड़ता है।

उन्हें प्रमाणपत्र वहीं से मिलते हैं। नई व्यवस्था में सभी विभागों के क्लीयरेंस, लाइसेंस व अनुमति के लिए कॉमन एप्लीकेशन फार्म पर ऑनलाइन आवेदन किया जा सकेगा। इसके लिए निवेश मित्र पोर्टल को तैयार कर लिया गया है।

विभागों को इन आवेदन पत्रों का तय समय सीमा में निस्तारण कर प्रमाणपत्र निवेश मित्र पर ही ऑनलाइन उपलब्ध कराना होगा। यहां से उद्यमियों को डिजिटली सिग्नेचर के साथ क्लीयरेंस, लाइसेंस व अनापत्ति जैसे प्रमाणपत्र ऑनलाइन ही भेज दिए जाएंगे। इनके लिए जरूरी शुल्क भी ऑनलाइन जमा करने की सुविधा होगी।

योजना पर अमल के लिए उद्योग बंधु को सौपी जिम्मेदारी

इस व्यवस्था पर अमल के लिए उद्योग बंधु को अधिकृत संस्था बनाया गया है। विभागों को एनओसी, लाइसेंस व क्लीयरेंस जैसी कार्रवाई जनहित गारंटी अधिनियम व निवेश मित्र व्यवस्था में तय की गई समय सीमा में करनी होगी। इससे उद्यमी को किसी भी विभाग में दौड़-धूप नहीं करनी होगी।

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