उत्तर प्रदेश

सरकार के करोड़ों रुपये खर्च होने के बाद भी तालाब सूखे

लखनऊ: प्राकृतिक जलस्रोत बचाने और तालाबों के संरक्षण को लेकर सरकार प्रत्येक वर्ष करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। बावजूद इसके राजधानी समेत बख्शी का तालाब इलाके में तालाब, पोखर, झील जैसे प्राकृतिक जल स्रोतों का दायरा साल दर साल सिमटता जा रहा है। तालाबों के सुधार के नाम पर योजनाएं बदलती रहती हैं लेकिन उनकी हालत नहीं। बख्शी का तालाब विकास खंड क्षेत्र में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2005 से पूर्व संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना के तहत तालाबों के सुधार के नाम पर 72 तालाबों के जीर्णोद्धार पर करोड़ों की रकम खर्च की गई, लेकिन तालाबों की स्थिति नहीं सुधरी। वर्ष 2006 में एक योजना राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) लागू हुई। शुरुआती चरण में योजना के तहत इस विकास खंड की विभिन्न ग्राम पंचायतों में वित्त वर्ष 2009-10 में मरेगा के तहत उन्हीं 72 तालाबों तथा उसके बाद आठ अतिरिक्त तालाबों की खोदाई कराई गई। उसके बाद योजना का नाम महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम यानी (मनरेगा) हो गया। जिसके तहत वित्तीय वर्ष 2012-13 में पुन : 72 में से 31 तालाबों का सुधार कराया गया। इसी कड़ी में बीबीपुर ग्राम पंचायत में आदर्श तालाब का निर्माण कराया गया था। वर्ष 2013-14 में ही मदारीपुर, खेसरावां, गुलालपुर, परसहिया आदि तालाबों के सुधार के नाम पर रकम खर्च की गई। इसी कड़ी में बख्शी का तालाब विकास खंड की बराखेमपुर स्थित एक तालाब से सूबे के तत्कालीन मुख्यसचिव आलोक रंजन ने वर्ष 2015 में 31 मई को जल बचाओ अभियान की शुरूआत की थी। वित्त वर्ष 2015-16 में इस अभियान के तहत इस विकास खंड में लक्ष्य के सापेक्ष कुल 86 तालाबों में से सिर्फ 56 तालाबों का सुधार कराया गया। 30 तालाब अभी भी अधूरे पड़े हैं। जबकि वित्त वर्ष 2016-17 में मनरेगा योजना के तहत 35 तालाबों की खोदाई की कार्ययोजना बनाई गई है। बीडीओ राजीव कुमार गुप्ता ने बताया कि मौजूदा वित्त वर्ष के तालाबों पर कार्य शुरू कर दिया गया है।

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