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सरहद पर जनाजे उठ रहे हों तो पकिस्तान से बातचीत अच्छी नहीं लगती : सुषमा स्वराज

नई दिल्ली : विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान से विस्तृत बातचीत पर कहा कि जब सरहद पर जनाजे उठ रहे हों तो बातचीत की आवाज अच्छी नहीं लगती। उन्होंने डोकलाम पर यथास्थिति बरकरार होने की बात कही, तो शी जिनपिंग और मोदी की अनौपचारिक मुलाकात बातचीत का नया मैकेनिज्म है, जो अपने मकसद में कामयाब हुआ। विजय माल्या पर उन्होंने कहा कि प्रत्यर्पण की रिक्वेस्ट ब्रिटेन को भेजी गई है और इस मसले पर मोदी ने ब्रिटिश पीएम थेरेसा मे से भी बातचीत की थी। सुषमा स्वराज ने कहा, आप हमारी नीति पर सवाल उठाते हैं। चुनाव से पहले बातचीत की बात कहते हैं। चुनाव से इसका कोई लेना-देना नहीं है। पाकिस्तान के साथ बातचीत को लेकर नवाज शरीफ जी ने पहले भी 4 फॉर्मूला सुझाए थे, तब भी हमने कहा था कि फॉर्मूला केवल एक है। पाकिस्तान आतंकवाद को छोड़ दे। जब सीमा पर जनाजे उठ रहे हों, तो बातचीत की आवाज अच्छी नहीं लगती। इसके इतर व्यवस्थाएं हैं, जिनके जरिए उनसे बातचीत होती है। हम ये कहते हैं कि आतंकवाद पर बातचीत जारी रहनी चाहिए। औपचारिक बातचीत रुकने पर दूसरे मैकेनिज्म से बातचीत जारी रहती है। आप खुद ही कहते हैं कि पाकिस्तान बातचीत करना चाहता है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि वो दुनिया में अलग-थलग पड़ गया है। ये भारत की कामयाबी है। सुषमा स्वराज ने कहा जो लोग कहते हैं कि मैं अब केवल ट्विटर हैंडलिंग करती हूं। ये वो नीति है, जो कांग्रेस के जमाने में नहीं थी। जो मंत्रालय आम लोगों से दूर था, उसे जनता से जोड़ने का काम हम कर रहे हैं। 4 दशकों से राजनीति में हूं मैं। जो लोकसभा से चुनाव लड़कर आता है, उसे आम लोगों का दर्द पता होता है। ये (कांग्रेस) संवेदनहीन लोग क्या जानें। जिस दिन इन लोगों के घर का कोई शख्स विदेश में फंसेगा, तो फिर इन्हें समझ में आएगा। जहां तक अनौपचारिक बातचीत का सवाल है तो ये बातचीत का नया तरीका है। बाकायदा निमंत्रण देकर अनौपचारिक बातचीत की पहल पहली बार हुई है। चीन, रूस और जर्मनी के साथ ऐसा हुआ। ये तीन मुलाकातें, इसके नियम हमें सेट करने थे। मेरी वांग यी के साथ जो मुलाकात हुई, उसमें मैंने कहा कि हमारे नेताओं को किसी एजेंडा में न बांधें। सबसे पहले हम ये सोच लें कि ये बातचीत मुद्दों को सुलझाने के लिए नहीं हुई थी। ये तीन उद्देश्यों को लेकर हुई थी। रिश्तों की सहजता बढ़ाना, वैश्विक मुद्दों पर आपसी समझ और पारस्परिक विश्वास बढ़े। मुझे लगता है कि बातचीत खत्म होने के बाद ये तीनों उद्देश्य पूरे हुए हैं। आज सहजता ये है कि राष्ट्रपति कहते हैं कि अगर आपको कुछ भी असहज लगता है कि आप फोन उठाएं और सीधे बात करें। विदेश मंत्री ने कहा, डोकलाम के बारे में हम बता दें कि वहां यथास्थिति बनी हुई है, कोई बदलाव नहीं हुआ है। स्ट्रैटजिक गाइडलाइन की बात कही जा रही है। इसका मतलब ये है कि दोनों देशों की सेनाएं इस बात को समझें कि विवाद की स्थिति न बनें। अगर सेनाएं खुद ही सीमाओं को पार कर जाती हैं, तो इन हालात में कैसे विवाद को दरकिनार करना है, इसे समझें। पूरी दुनिया ने डोकलाम पर हमारी तारीफ की। किसी को ये नहीं लग रहा था कि ये मसला जंग के बिना सुलझेगा। हमने ये कर दिखाया। कूटनीति और संवाद के जरिए इसे सुलझा लिया, युद्ध की नौबत नहीं आई। मानसरोवर के बारे में आज एक ट्वीट आया था कि श्रद्धालुओं को स्नान की इजाजत नहीं दी गई। वहां हर बार एक स्थान तय कर दिया जाता है। कहीं भी नहाने की इजाजत पहले भी नहीं थी, वहां स्नान करने की अनुमति है और उसमें कोई बाधा नहीं है। स्ट्रैटजिक गाइडलाइन दोनों देश देंगे। सुषमा स्वराज ने विजय माल्या पर पूछे गए सवाल के जवाब में कहा, जहां तक विजय माल्या को भारत भेजने का सवाल है, उनकी अदालतें कह रही हैं कि भारत की जेलों की जांच करने आएंगे कि वहां की स्थिति क्या है। मैं आपको बताना चाहूंगी कि अभी कॉमनवेल्थ समिट के समय प्रधानमंत्री मोदी ब्रिटिश प्रधानमंत्री थेरेसे मे से मिले थे। मोदी जी ने थेरेसा मे से कहा था कि हमारे भगोड़े जब यहां आते हैं तो उन्हें भारत भेजने में बहुत देर लगती है। आपकी (थेरेसा मे) कोर्ट ने माल्या के मामले में ये बात उठाई है कि हम आपकी जेलें देखने आएंगे। मैं आपको बताना चाहता हूं कि ये वही जेले हैं जहां आपने महात्मा गांधी को, पंडित नेहरू को और हिंदुस्तान के बड़े-बड़े नेताओं को रखा था, उन जेलों पर सवाल उठाना आपकी अदालतों के लिए सही नहीं है। एच-1बी वीजा ओबामा प्रशासन में शुरू हुआ था, ट्रम्प उसकी विवेचना कर रहे हैं। हम तीनों तरफ से इन वीजा को बचाने का प्रयास कर रहे हैं। हम सीनेटर्स, कांग्रेसमैन और व्हाइट हाउस से भी बात कर रहे हैं। 130 सदस्यों ने ट्रम्प को लिखा है कि आप एच4 वीजा को खत्म ना करें। लेकिन, ये फैसला ट्रम्प लेंगे। मैं ये आश्वासन देती हूं कि हम अपने प्रयास में कोई कमी नहीं रखेंगे। जिस दिन अफगानिस्तान की घटना घटी उसी दिन मैंने अफगानिस्तान के मंत्री से बात की। ये लोग निर्माण कार्य के लिए अफगानिस्तान आए थे। वहां के अधिकारियों ने मुझे आश्वस्त किया कि इन्हें बचाया जाएगा। मैंने उन्हें दो-तीन दिन के बाद पत्र भी लिखा और कहा कि अभी कुछ ठोस नहीं हुआ। हमारे राजदूत ने वहां के राष्ट्रपति से मुलाकात की, जिन्होंने हमसे कहा कि ये हमारी जिम्मेदारी ज्यादा है कि उन्हें सुरक्षित बचाया जाए। मैं कंपनी के मालिक से रोज बात करती हूं। विदेश मंत्री से बातचीत के बारे मेें भी मैं अपडेट देती हूं। ऐसे ऑपरेशंस में इनकी गोपनियता ही सफलता देती हैं।

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