NEW DELHI: 28-29 सितंबर की दरमियानी रात भारत की ओर से POK में LOC पार किया गया सर्जिकल स्ट्राइक पहली बार नहीं है।
इससे पहले भी सेना ऐसी कार्रवाई को अंजाम देती रही है और आतंकियों सहित पाकिस्तानी सेना के जवानों को निशाना बनाती रही है, लेकिन इस तरह की किसी भी जानकारी को सार्वजनिक तौर पर स्वीकार नहीं किया गया। हां, यह पहली बार हुआ कि भारत ने एेसी किसी कार्रवाई की बात को स्वीकारा है।
दूसरी तरफ कांग्रेस ने अपने कार्यकाल में हुए सर्जिकल स्ट्राइक की जानकारी दी है। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट कर यूपीए सरकार के दौरान हुए हमलों का जिक्र किया है।
गौरतलब हो कि पीओके में आतंकी ठिकानों पर भारतीय सेना के सर्जिकल स्ट्राइक की जानकारी खुद डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल रणबीर सिंह ने दी। एलओसी पार कर सेना ने ऑपरेशन किया और इसकी बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर जानकारी देश के लोगों को दी गई।
जानकारी के अनुसार बीते 18 साल में कम से कम 9 बार भारतीय सेना ने एलओसी के पार जाकर ऑपरेशन्स को अंजाम दिया और पाकिस्तानी सेना को सबक सिखाया। इस दौर में भारतीय सेना की ओर से एलओसी पार करने की पहली घटना मई 1998 में हुई। वहीं 29 सितंबर के हालिया सर्जिकल स्ट्राइक से पहले आखिरी बार अगस्त 2013 में भारतीय सेना ने एलओसी को पार किया था। इन दोनों घटनाओं के बीच में भी 1999 की गर्मी, जनवरी 2000, मार्च 2000, सितंबर 2003, जून 2008, अगस्त 2011 और जनवरी 2013 में भी भारतीय सेना ने ऑपरेशन्स के लिए एलओसी पार की।
मई-1998 से अगस्त 2013 के बीच भारतीय सेना ने एलओसी क्रॉस कर जो 9 ऑपरेशन अंजाम दिए। इनके बारे में भारतीय सरकार ने न तो कभी सार्वजनिक तौर पर स्वीकार किया और न ही कभी ये जानकारी दी कि इन ऑपरेशन्स को अंजाम देते वक्त एलओसी के दोनों तरफ कितना नुकसान हुआ।
इन-इन सालों में की कार्रवाई
मई-1998
पाकिस्तान ने खुद भारतीय सेना के इस ऑपरेशन की संयुक्त राष्ट्र से 1998 में शिकायत की। संयुक्त राष्ट्र की वार्षिक किताब 1998 के पेज 321 पर ये शिकायत दर्ज है। इसके मुताबिक पाकिस्तान ने 4 मई को शिकायत में कहा कि पीओके में एलओसी के 600 मीटर पार बंदाला सेरी में 22 लोगों को मार डाला गया। पाकिस्तान गांव में मौजूद कुछ चश्मदीदों ने भी इस कार्रवाई की पुष्टि की। पाकिस्तान की ओर से जब इस हमले के लिए भारत सरकर पर उंगली उठाई गई तो नई दिल्ली की ओर से जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया गया। भारत ने यह कार्रवाई पठानकोट और ढाकीकोट के गावों में 26 भारतीय नागरिकों की हत्या के बदले में की।
ग्रीष्मकाल 1999
1999 की गर्मियों में करगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना की टुकड़ी जम्मू के पास मुनावर तवी नदी से एलओसी को क्रॉस किया था। इस ऑपरेशन में पाकिस्तान की एक पूरी चौकी को उड़ा दिया गया। इसी घटना के बाद पाकिस्तान ने बॉर्डर एक्शन टीम का गठन किया था। इसमें पाकिस्तान के स्पेशल सर्विस ग्रुप के कमांडो को शामिल किया गया था।
जनवरी 2000
करगिल युद्ध के 6 महीने बाद 21-22 जनवरी 2000 को नीलम नदी के पार नडाला एनक्लेव में एक पोस्ट पर रेड के दौरान सात पाकिस्तानी सैनिकों को कथित तौर पर पकड़े जाने का दावा किया गया था। पाकिस्तान के मुताबिक ये सातों सैनिक भारतीय सैनिकों की गोलीबारी में घायल हुए थे। बाद में इन सैनिकों के शवों को पाकिस्तान को वापस कर दिया गया था। भारत ने यह कार्रवाई कैप्टन सौरभ कालिया और 4 जाट रेजीमेंट के पांच जवानों कंवर लाल बागरिया, अर्जुन राम, भीखा राम, मूला राम और नरेश सिंह की शहादत के बाद की थी।
मार्च 2000
सूत्रों का कहना है कि करगिल युद्ध के बाद एलओसी पर तैनात 12 बिहार बटालियन के कैप्टन गुरजिंदर सिंह इंफैन्ट्री बटालियन कमांडो की टीम के साथ एलओसी पार जाकर पाकिस्तानी चौकी पर धावा बोला। ये पाकिस्तानी सेना के पूर्व में किए गए हमले की जवाबी कार्रवाई थी।
भारत के इस ऑपरेशन में कैप्टन सूरी शहीद हो गए। इसमें स्पेशल फोर्स के मेजर की अगुआई में भारतीय सैनिकों ने एलओसी पार जाकर 28 पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकियों का काम तमाम किया।
सितंबर 2003
2003 में एलओसी पर दोनों देशों में सीजफायर लागू होने के बाद से दूसरे की जमीन पर जाकर होने वाले ऑपरेशन की कम ही जानकारी उपलब्ध है, लेकिन पाकिस्तान की ओर से एलओसी पर निगरानी वाले संयुक्त राष्ट्र प्रेक्षक दल को दर्ज शिकायतों से पता चलता है कि क्रॉस बॉर्डर ऑपरेशन्स बदस्तूर जारी रहे। भारत की एेसी कार्रवाईयों में चार पाकिस्तानी सैनिकों की मौत भी हुई।
जून 2008
2008 में भी कम से कम दो बार ऐसी घटनाएं हुईं। ये वो साल था जब एलओसी पर टकराव की घटनाएं बढऩे लगी थीं। पाकिस्तान की शिकायतों के रिकॉर्ड के मुताबिक पूंछ के भट्टल सेक्टर में 19 जून 2008 को भारतीय सैनिकों की कार्रवाई में चार पाकिस्तानी जवान मारे गए।
इससे पहले 5 जून 2008 को पूंछ के सलहोत्री गांव में क्रांति बार्डर निगरानी पोस्ट पर हमला हुआ था। इसमे गुरखा रेजीमेंट का जवान जावाश्वर छामे शहीद हुआ था।
अगस्त 2011
30 अगस्त 2011 को पाकिस्तान ने शिकायत दर्ज कराई कि उसके एक जेसीओ समेत चार जवान केल में नीलम नदी घाटी के पास भारतीय सेना की कार्रवाई में मारे गए।
सूत्रों के हवाले से बताया था कि ये ऑपरेशन कारनाह में भारतीय जवानों पर हमले में दो भारतीय सैनिकों की हत्या और उनके शवों को क्षत-विक्षत किए जाने के बदले में किया गया था।
जनवरी 2013
सूत्रों के अनुसार 6 जनवरी 2013 को भी इस तरह की घटना हुई। 6 जनवरी की रात को क्रॉस बार्डर फायरिंग के बाद 19 इंफैन्ट्री डिविजन कमांडर गुलाब सिंह रावत ने पाकिस्तानी पोस्ट पर हमला करने की इजाजत मांगी। इस पाकिस्तानी पोस्ट से भारतीय सैनिकों को निशाना बनाया जा रहा था।
पाकिस्तान की ओर से फिर कहा गया कि सावन पात्रा में स्थित उसकी पोस्ट पर भारतीय सैनिकों ने हमला किया। हालांकि भारत ने पाकिस्तान के इस दावे का उस वक्त खंडन किया।
अगस्त 2013
अगस्त 2013 के शुरू में जाफरान गुलाम सरवर, वाजिद अकबर, मोहम्मद वाजिद अकबर और मोहम्मद फैसल ने नीलम घाटी में पाकिस्तान के कब्जे वाले क्षेत्र में अपने घरों को छोड़ा था, लेकिन इसके बाद कभी वापस नहीं आए। भारत का कहना था कि उसे नहीं पता कि इन लोगों का क्या हुआ।
पाकिस्तान के मुताबिक इन चारों के गायब होने के कुछ दिन बाद ही खबर आई कि पांच अज्ञात लोग भारतीय सैनिकों की फायरिंग में मारे गए। इनके शव एलओसी के पार 500 मीटर दूर भारत के कब्जे वाले क्षेत्र में पाए गए। हालांकि वहां तैनात भारतीय खुफिया अधिकारियों ने ऑफ द रिकॉर्ड माना था कि ये लोग वास्तव में स्पेशल फोर्सेज की कार्रवाई में मारे गए थे।