नई दिल्ली । सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को सहारा समूह के प्रमुख सुब्रत राय के विरुद्ध गैर-जमानती वारंट जारी किया। अदालत की पिछली सुनवाई में राय को व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होने का निर्देश दिया गया था लेकिन वह पेश नहीं हुए थे। इसे देखते हुए उनके खिलाफ यह आदेश जारी किया गया। अदालत ने आदेश का पालन करने के लिए राय को चार मार्च तक की मोहलत भी दी। न्यायमूर्ति के. एस. राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति जे.एस. खेहर ने सुनवाई के दौरान कहा कि मंगलवार को व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट के लिए याचिका दायर की गई थी और बुधवार को भी इसे दोहराया गया लेकिन इसे स्वीकार नहीं किया जाएगा। यह मामला निवेशकों का धन वापस नहीं करने का है। इसके बाद अदालत ने सुब्रत राय के विरुद्ध गैर-जमानती वारंट जारी किया और उन्हें अदालत में चार मार्च तक उपस्थित होने की मोहलत दी। सुनवाई प्रक्रिया शुरू होते ही अदालत ने यह जानना चाहा कि क्या सुब्रत राय और सहारा की दो कंपनियों के तीन अन्य निदेशक मौजूद हैं या नहीं। सर्वोच्च न्यायालय ने 2० फरवरी को राय को और सहारा इंडिया रियल एस्टेट कारपोरेशन लिमिटेड (एसआईआरईसीएल) तथा सहारा हाउसिंग इनवेस्टमेंट कारपोरेशन लिमिटेड (एसएचआईसीएल) के तीन निदेशकों-अशोक राय चौधरी रवि शंकर दूबे और वंदना भार्गव-को 26 फरवरी को अदालत में उपस्थित होने का निर्देश दिया था। अदालत को बताया गया कि एसआईआरईसीएल और एसएचआईसीएल के निदेशक उपस्थित हैं लेकिन राय नहीं आ सके क्योंकि उन्हें अपनी बीमार मां को देखने के लिए लखनऊ जाना पड़ा। इस पर नाराजगी जताते हुए न्यायाधीश के.एस राधाकृष्णन ने कहा ‘‘इस अदालत के हाथ बहुत लंबे हैं। हम वारंट जारी करेंगे। यह इस देश का सर्वोच्च न्यायालय है। जब अन्य निदेशक यहां हैं तो वे यहां क्यों नहीं हैं?’’ राय और तीनों निदेशकों को इसलिए व्यक्तिगत रूप से अदालत में पहुंचने का निर्देश दिया गया था क्योंकि सहारा की कंपनियां निवेशकों से जुटाई गई राशि को वापस करने की गारंटी के रूप में सेबी के पास 19 हजार करोड़ रुपये जमा करने में असफल रही थीं। सहारा ने दिसंबर 2०12 में सेबी के पास 5 12० करोड़ रुपये जमा किए थे।