जीवनशैली

सांवला रंग होने पर सभी लड़कियों को सुननी पड़ती हैं ये बातें

गोरी त्वचा न होने का जो मलाल आम भारतीय परिवारों में देखा जाता है उसकी चपेट में सबसे ज्यादा लड़कियां ही आती हैं. उनकी कद्र घट जती है और उन्हें कई तरक की अप्रिय स्थितियों का सामना करना पड़ता है. सांवले रंग वाली लड़कियों को आय दिन शब्दबाण और तिरछी नजरें सहनी पड़ती हैं.

जब आप किसी के सांवले रंग का मजाक उड़ाते हैं तो इस तरह के सार्वजनिक मजाक को आप एक तरह से उन पूर्वाग्रहो को भी जगह देते हैं जो मान्यता और परंपरा के नाम पर लाखों करोड़ों भारतीय घरों में स्त्री शोषण का कारण बने हुए हैं. क्या कॉमेडियन इतनी दूर तक सोच पाए होंगे कि वे जो कह रहे हैं या भद्दा मजाक उड़ा रहे हैं उसका कितना दूरगामी असर होगा. और यही वो बात है जिसकी वजह से आधुनिकता आ नहीं पाती. चाहे आप जितनी मर्जी कोशिशें कर ले, लाख शीशे चमका ले लेकिन आप रहेंगे वही पिछड़े और दकियानूसी जो जाति, रंगऔर लिंग के आधार पर भेदभाव करते हैं.

सांवला रंग

यदि कोई लड़की काली या सांवली भी हो तो भी उसे स्कूल कॉलेज में चिडाया जाता है और उसके काले रंग का मजाक बनाया जाता है. उस समय तो लोगो को लगता है कि यह बच्चो का बचपना है जो कि बड़े होते-होते ठीक हो जाएगा लेकिन ऐसा नहीं होता. सांवले रंग के कारण लड़कियों का रिश्ता पक्का होने में कई तरह की समस्या होती हैं, जैसे कि कभी लड़के को लड़की काले रंग के कारण पसंद नहीं आती तो कभी सास ही उसे रिजेक्ट कर देती है और इसी कारण कई वर्षों तक उनकी शादी नहीं हो पाती. इस बात से दुखी लड़कियां अपनी माँ तक से ताने सुनती हैं और उनके कालेपन को कसती हैं.

इसके अलावा कई जगहों पर लड़कियों को उनकी सुन्दरता के ऊपर जॉब दी जाती है, यहाँ तक कि लड़की जीतनी ज्यादा सुंदर होती हैं उनको सैलरी उतनी ही आसानी और ज्यादा मिल पाती है. भारत में तो सुन्दरता केवल गोरे होने पर ही मानी जाती है फिर चाहे आप के चेहरे के फिचर्स जितने मर्जी अच्छे हो लेकिन अगर आपका रंग सांवला रंग है तो आपको बदसूरत लोगों में ही गिना जाएगा. इसका एक बहुत बड़ा उदाहरण है शहरों में मौजूद शो-रूम और मॉल्स इन सभी जगहों पर आपने देखा होगा कि यहाँ केवल सुंदर और गोरी लड़कियों को ही रिसेप्शनिस्ट बनाया जाता है. इस भेदभाव को भी सांवली लड़कियों को झेलना पड़ता है.

सांवला रंग

यहाँ तक कि शादी ना हो ने पर या कोई नौकरी ना मिलने पर सांवले रंग ही हो जाता है जिसके कारण इनमें कॉनफिडेंस कि भी कमी हो जाती है, भले ही यह अंदर से बेहद आत्मनिर्भर हो.

सांवला रंग – ‘डार्क इस ब्यूटीफुल’ नाम से एक अभियान भी चलाया गया है. नंदिता दास इस अभियान कि प्रमुखता हैं और उनका कहना है कि लड़कियों को इसका सामना खुद लड कर करना होगा, अगर लडकियां शिक्षित होंगी, अपने पैरों पर खड़ी होंगी, स्वाभिमानी बनेंगी तो वे इन पांखडो को ध्वस्त करने का साहस रख पाएंगी. दुनिया के अन्य देशों में रंग भेदभाव एक बड़ा अपराध है जिसे भारत में बहुत ही मामूली माना जाता है. बढ़ते भेदभाव को देखते हुए सरकार को इसके खिलाफ़ कोई ना कोई एक्शन जरूर लेना चाहिए.

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