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साइबर फ्राड से नहीं डूबेगा आपका पैसा! गृह मंत्री अमित शाह ने शुरू किया हेल्पलाइन नंबर और प्लेटफॉर्म

नई दिल्ली: साइबर फ्रॉड की बढ़ती घटनाओं की वजह से वित्तीय नुकसान को रोकने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नेशनल हेल्पलाइन 155260 और रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म की शुरुआत कर दी है.

गृह मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि नेशनल हेल्पलाइन और रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म उस व्यक्ति को ऐसे मामलों की शिकायत करने के लिए एक मैकेनिज्म मुहैया कराता है, ताकि उसकी गाढ़ी मेहनत की कमाई को गंवाने से से बचाया जा सके. लोगों को डिजिटल का एक सुरक्षित इकोसिस्टम देने के लिए गृहमंत्री अमित शाह के नेतृत्व में इस हेल्पलाइन और रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म की शुरुआत की गई है.

हेल्पलाइन को 1 अप्रैल, 2021 को सॉफ्ट लॉन्च किया गया था. हेल्पलाइन 155260 और इसके रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म को गृह मंत्रालय के तहत भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) ने भारतीय रिजर्व बैंक (RBI), सभी बड़े बैंकों, पेमेंट बैंकों, वॉलेट और ऑनलाइन मर्चेंट के समर्थन और सहयोग से चालू किया है. फिलहाल इसे सात राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों छत्तीसगढ़, दिल्ली, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में लागू किया जा रहा है, जो 35 पर्सेंट से ज्यादा की आबादी को कवर करता है.

इस हेल्पलाइन नंबर पर 2 महीने के अंदर शिकायतों के आधार पर 1.85 करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी हुई है, जिसे लेकर साइबर फ्रॉड के बड़े गिरोहों पर से पर्दा उठा है. इसके अलावा दिल्ली और राजस्थान में जांच के दौरान कई खाते सीज किए गएं और 58 लाख रुपये और 53 लाख रुपये रिकवर किए गए. सॉफ्ट लॉन्च के बाद दो महीने की छोटी सी अवधि में इस हेल्पलाइन के जरिए 1.85 करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम को धोखेबाजों को हाथों में जाने से रोकने में सफलता हासिल हुई है, जिसमें दिल्ली और राजस्थान ने 58 लाख रुपये और 53 लाख रुपये बचाए हैं.

इस सुविधा से पुलिस और बैंक दोनों को ताकत मिलती है, दोनों आपस में फ्रॉड से जुड़ी जानकारियां साझा करते हैं, जिससे कार्रवाई भी तुरंत हो जाती है. ऑनलाइन धोखेबाजी में हड़पी गई रकम को मनी ट्रेल के जरिए रोका जा सकता है और आगे धोके के सभी रास्तों को बंद किया जा सकता है. आइए अब बताते हैं कि ये हेल्पलाइन और प्लेटफॉर्म काम कैसे करता है.

1. साइबर धोखाधड़ी का शिकार व्यक्ति हेल्पलाइन नंबर 155260 पर कॉल करता है और जो राज्य पुलिस द्वारा संचालित होता है
2. पुलिस ऑपरेटर धोखाधड़ी लेनदेन का ब्यौरा और कॉल करने वाले की निजी जानकारियों को नोट करता है. और उन्हें नागरिक वित्तीय साइबर धोखाधड़ी रिपोर्टिंग और प्रबंधन प्रणाली पर टिकट के रूप में जमा करता है.
3. ये टिकट संबंधित बैंकों, वॉलेट्स, मर्चेंट वगैरह तक पहुंचा दिया जाता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि ये पीड़ित का बैंक है या वॉलेट जिसमें धोखाधड़ी का पैसा गया है.
4. शिकायत के एकनॉलेजमेंट नंबर के साथ पीड़ित को एक SMS भी भेजा जाता है, जिसमें एकनॉलेजमेंट नंबर का इस्तेमाल करके 24 घंटे के भीतर धोखाधड़ी का पूरा विवरण राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (https://cybercrime.Gov.In/) पर जमा करने का निर्देश दिया जाता है.
5. संबंधित बैंक, जो अब रिपोर्टिंग पोर्टल पर अपने डैशबोर्ड पर टिकट देख सकता है, अपने आंतरिक सिस्टम में विवरण की जांच करता है. अगर धोखाधड़ी का पैसा अभी भी वहां मौजूद है तो बैंक उसे वहीं पर ब्लॉक कर देता है. यानी फ्रॉड करने वाला वो पैसा निकाल नहीं सकता है.
6. अगर धोखाधड़ी का पैसा दूसरे बैंक में चला गया है, तो टिकट अगले बैंक में बढ़ जाता है, जहां पैसा निकल गया है. यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि पैसा धोखेबाजों के हाथों में जाने से रोक न लिया जाए.

आप हेल्पलाइन नंबर के अलावा वेबसाइट https://cybercrime.gov.i/ पर जाकर भी ऑनलाइन फ्रॉड से जुड़ी शिकायत कर सकते हैं. आपको बता दें कि गृह मंत्रालय ने पिछले साल साइबर पोर्टल https://cybercrime.gov.i/ प्रोजेक्ट शुरू किया था. दिल्ली को इस इंडियन साइबर क्राइम को-आर्डिनेशन प्लेटफॉर्म पर सबसे पहले जोड़ा गया था. इसके बाद राजस्थान को इसमें शामिल किया गया है.

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