दस्तक-विशेष

सातवें वेतन आयोग पर विवाद

जितेन्द्र शुक्ल
satava vetanप्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘अच्छे दिन’ वाले जुमले को लेकर विपक्षी दलों के व्यंग्य बाण झेल रही केन्द्र सरकार ने देश के करीब एक करोड़ केन्द्रीय कर्मचारियों व पेंशनरों को खुश करने के लिए सातवें वेतन आयोग को लागू करने का निर्णय ले लिया है लेकिन सातवां वेतन आयोग कर्मचारियों को खुश करने के बजाए नाराज कर गया है। दरअसल सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को ही लागू करते समय वेतन की तुलना निजी सेक्टर से की गयी है। छठे वेतन आयोग की जो सैलरी थी उसके हिसाब से 2.57 गुना बढ़ाया है।
केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के मुताबिक सातवें वेतन आयोग की यह सिफारिशें एक जनवरी 2016 से लागू होंगी। अब न्यूनतम सैलरी 18000 हजार रुपए होगी। अगले चार महीने बाद कमेटी के निर्णय के बाद से सिफारिश लागू होगी। तब तक मौजूदा भत्ते चलते रहेंगे। हेल्थ इंशोरेंस के लिए तीन वर्गों में कटौती होगी जो 1500 रुपए महीने के हिसाब से होगा। सरकार पर इस वित्तीय वर्ष 102100 करोड़ का बोझ बढ़ेगा। वहीं जनवरी से मार्च के बीच सरकार पर बोझ इस वर्ष 12000 करोड़ होगा। वहीं रक्षा के मोर्चे पर जो सिफारिशें आयोग ने की थी उसमें कैबिनेट ने कुछ बदलाव किया है।
सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद 2.50 लाख रुपये की मासिक तनख्वाह को लेकर एक दिलचस्प पहलू सामने आया है। आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद केंद्रीय कैबिनेट सेक्रेटरी और सेना अध्यक्ष जैसे कई उच्च पद वाले अधिकारियों की तनख्वाह भारत के राष्ट्रपति की बेसिक सैलरी से एक लाख रुपए ज्यादा हो गई है। नियम ये है कि भारत में प्रथम नागरिक यानी राष्ट्रपति से ज्यादा किसी भी सरकारी अफसर की बेसिक सैलरी नहीं हो सकती है। इस मामले में केवल अपवाद के तौर पर नियामक संस्थाओं के अफसरों को ही छूट मिलेगी. मौजूदा समय में राष्ट्रपति की बेसिक सैलरी 1.50 लाख रुपये है। वित्त सचिव अशोक लवासा ने इस तथ्य को स्वीकार भी किया लेकिन इस पर कोई टिप्पणी करने से बचने का प्रयास किया। वहीं सातवें वेतन आयोग के चेयरमैन जस्टिस अशोक कुमार माथुर ने कहा, ‘यह सही है कि कैबिनेट सेक्रेटरी की बेसिक सैलरी राष्ट्रपति से ज्यादा हो गई है। कानून के मुताबिक ऐसा नहीं होना चाहिए था। इस समस्या के निदान के लिए केंद्र सरकार इस मामले में जल्द ही नोटिफिकेशन निकालेगी।’
उधर, सातवें वेतन आयोग की सिफारिश से नाराज कर्मचारियों के बहाने कांग्रेस को राजनीति का मौका मिल गया है।
कांग्रेस ने भी कर्मचारियों की हड़ताल का समर्थन कर दिया है। 11 जुलाई से देशभर के 33 लाख कर्मचारी हड़ताल पर जाने वाले थे जो फिलहाल चार माह के लिए स्थगित कर दी गयी है। कर्मचारी संगठनों का कहना है कि सातवें वेतन आयोग के जरिए कर्मचारियों की आंखों में धूल झोंकी गई है। 18,000 रुपये के न्यूनतम वेतन पर असल में कर्मचारियों की ‘टेक होम सैलरी’ मौजूदा सैलरी के हिसाब से 320 रुपये कम होगी। अभी सात हजार बेसिक सैलरी वाले कर्मचारी को 125 फीसदी डीए जोड़कर 15 हजार 750 रुपये बनते हैं। इनमें पेंशन के 700 रुपये और इंश्योरेंस के 30 रुपये जमा हो जाते हैं और कुल सैलरी हाथ में 15020 रुपये मिलती है। वहीं सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करते समय सरकार ने बेसिक सैलरी 18 हजार रुपये कर दी गई है, लेकिन इसमें डीए नहीं जोड़ा गया है। कुल सैलरी रही 18 हजार रुपये, इनमें पेंशन के 1800 और इंश्योरेंस के 1500 रुपये घटाए जाएंगे, तो हाथ में आएगी 14,700 कुल सैलरी।
कर्मचारी संगठनों के समूह ‘कन्फेडरेशन आफ सेन्ट्रल गर्वमेंट इम्प्लाइज’ जो 102 यूनियनों का संगठन है। सभी यूनियन इस हड़ताल में शामिल हो रहे हैं। देश भर में तकरीबन 47 लाख केंद्रीय कर्मचारी हैं, जिनमें से 14 लाख सेना में हैं। सेना हड़ताल में शामिल नहीं है। बाकी बचे 33 लाख केंद्रीय कर्मचारियों में से करीब 90 फीसदी कर्मचारियों के हड़ताल पर जाने का दावा है। अगर कर्मचारियों की मांग नहीं मानी जाती है तो 11 जुलाई से शुरू होने वाली वाली हड़ताल अनिश्चितकाल तक जारी रहेगी। इसके लिए 9 जून को लेबर कमिश्नरों को नोटिस भी दिया जा चुका है। केंद्रीय कर्मचारियों की प्रस्तावित हडताल के चलते कई अहम विभागों में कामकाज प्रभावित हो सकता है। इसके चलते आम लोगों को खासी दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है।
इनकम टैक्स, रेलवे और पोस्टल जैसे विभागों के कर्मचारियों के हड़ताल पर जाने से रोजमर्रा के काम प्रभावित हो सकते हैं। कर्मचारियों के तेवरों को भांपकर अब केन्द्र सरकार रक्षात्मक मुद्रा में आ गयी है। सरकार की ओर से कर्मचारी संगठनों से सम्पर्क साधकर उन्हें मनाने का प्रयास किया जा रहा है। यह भी कोशिश की जा रही है कि विपक्षी दल इसे राजनैतिक हथियार के रूप में न इस्तेमाल कर सकें। ल्ल

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