सात्विकता और निर्मलता का महापर्व: बसंत पंचमी
दस्तक टाइम्स एजेंसी/ देश में हम हर साल तीन मौसम से रूबरू होते है। गर्मी, जाड़ा और बरसात। गर्मी से ठीक पहले एक अद्भुत ऋतु का आगाज होता है। एक ऐसी ऋतु जो प्रकृति के अद्भुत स्वरूप को हमारे सामने परोसती और उसमें भिगोती है। ऐसा लगता है कि जैसे प्रकृति ने एक साथ सौंदर्य का चादर ओढ़ा हो जिसपर मानव मन खुशी से झूमने लगा हो। बसंत के इस पंचम स्वरूप में खेतों में पीली सरसों लहलहाने लगी है। पीले फूलों का खिलना और मुस्कुराना एक नए अंदाज में होता है। लग रहा है जैसे हर जीवन में नवजीवन संचरित हो रहा हो।
इस मौके पर लोग पीले वस्त्र भी धारण करते है। मां सरस्वती को जो प्रसाद के रूप में जो भोग लगाया जाता है उसमें पीले लड्डू जरूर होते है। खाद्य पदार्थों में भी पीले चावल, पीले लड्डू व केसर युक्त खीर का उपयोग किया जाता है। मन्दिरों में बसंती भोग रखे जाते हैं और बसंत के राग गाए जाते हैं। साथ ही मां सरस्वती के पूजन के मौकै पर माता सरस्वती को पीले रंग का फल और फूल भी चढ़ाया जाता है। मां सरस्वती की पूजा के वक्त लोग अक्सर पीले रंग का वस्त्र पहनते हैं और माता की स्तुति करते हैं।
ज्योतिषीय नजरिए से देखें तो सूर्य को ब्रह्माण्ड की आत्मा, पद, प्रतिष्ठा, भौतिक समृद्धि, औषधि तथा ज्ञान और बुद्धि का कारक ग्रह माना गया है। इसी प्रकार पंचमी तिथि किसी न किसी देवता को समर्पित है। बसंत पंचमी को मुख्यतः सरस्वती पूजन के निमित्त ही माना गया है। सरस्वती का जैसा शुभ श्वेत, धवल रूप वेदों में वर्णित किया गया है, वह इस प्रकार है-
“या कुन्देन्दु-तुषार-हार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता, या वीणा-वर दण्डमण्डित करा या श्वेत पद्मासना। या ब्रह्मा-च्युत शंकर-प्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता, सा मां पातु सरस्वती भगवती निः शेषजाडयापहा।”
अर्थात ‘देवी सरस्वती शीतल चंद्रमा की किरणों से गिरती हुई ओस की बूंदों के श्वेत हार से सुसज्जित, शुभ वस्त्रों से आवृत, हाथों में वीणा धारण किये हुए वर मुद्रा में अति श्वेत कमल रूपी आसन पर विराजमान हैं। शारदा देवी ब्रह्मा, शंकर, अच्युत आदि देवताओं द्वारा भी सदा ही वन्दनीय हैं। ऐसी देवी सरस्वती हमारी बुद्धि की जड़ता को नष्ट करके हमें तीक्ष्ण बुद्धि एवं कुशाग्र मेधा से युक्त करें।’ इसलिए वसंत पंचमी को श्री पंचमी अर्थात ज्ञान पंचमी भी कहते हैं।