उत्तराखंडराज्य

सात वर्षीय अक्षय के तबला वादन का हर कोई हुआ कायल

गोपेश्वर: होनहार बीरवान के होते चिकने पात…, यह कहावत सात वर्षीय अक्षय कुमार पर सटीक बैठती है। घाट विकासखंड के कुमजुग गांव निवासी दर्जी का बेटा अक्षय इतनी कम उम्र में भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहा है। रामलीला हो या कोई अन्य आयोजन अपने पिता के साथ तबले पर अक्षय के हाथ ऐसे चलते हैं कि हर कोई उसकी इस प्रतिभा का कायल हो जाता है। परंतु गरीब परिवार से नाता होने के कारण अक्षय को अभी तक उचित मंच नहीं मिल पाया है।

सात वर्षीय अक्षय के तबला वादन का हर कोई हुआ कायल

घाट विकासखंड मुख्यालय पर दर्जी की दुकान चलाने वाले मनोज कुमार मूल रूप से कुमजुग गांव के रहने वाले हैं। मनोज का सात वर्षीय पुत्र अक्षय कुमार इन दिनों घाट में चल रही रामलीला में अपने तबले की थाप से पात्रों के अलावा दर्शकों को भी थिरकने के लिए मजबूर कर रहा है। असल में घाट में जब भी रामलीला का आयोजन होता है तो मनोज कुमार ही तबला बजाते हैं।

पिता पहले से ही तबले में पारंगत थे। अक्षय जब चार वर्ष का था तो घर में पिता को तबला बजाता देख उसकी अंगुलियां अपने आप तबले पर चले जाती थीं। पुत्र की इच्छा को देखते हुए मनोज ने अक्षय को घर पर ही तबला वादन में पारंगत करना शुरू किया। अक्षय वर्तमान में सरस्वती शिशु मंदिर घाट में तीसरी कक्षा का छात्र है। वह घर पर ही चार वर्ष की उम्र से तबला वादन सीखना शुरू कर चुका था।

अब अक्षय की अंगुलियां जब तबले पर चलती है तो लोग नन्हीं उम्र में उसकी इस प्रतिभा के कायल हो जाते हैं। अक्षय अपने पिता के साथ रामलीला व अन्य आयोजनों में शिरकत करने जाता है। जब उसका पिता तबला बजाते बजाते थक जाता है तो तब अक्षय तबला बजाकर लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। अक्षय की इस प्रतिभा से उसका विद्यालय भी कायल है। सरस्वती शिशु मंदिर के प्रधानाचार्य सुरेंद्र तोपाल का कहना है कि विद्यालय में समय समय पर आयोजित होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों के दौरान तबला वादन अक्षय ही करता है। 

अक्षय कुमार का कहना है कि उसके पिता मनोज कुमार जब घर पर तबला बजाते थे तो उसका मन भी तबला बजाने का होता था। पिता से तबला बजाने की इच्छा जाहिर की तो उन्होंने उसे इस विद्या में पारंगत कर दिया। अक्षय का कहना है कि अब तबले पर उसकी अंगुलियां अपने आप थिरकने लगती है। घाट के समाजसेवी लक्ष्मण सिंह राणा का कहना है कि अगर इस नन्हीं सी प्रतिभा को मंच मिल जाए तो निसंदेह वह तबला वाहन में उत्तराखंड का नाम रोशन कर सकता है।

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