साधु को ऐसी कोई चीज नहीं लेनी चाहिए, जिसमें किसी की हाय लग गई हो
परमात्मा के स्वरूप में तर्क न लगाते हुए साधना के क्षेत्र में अनुभव करने से ही कुछ मिल सकता है। ज्ञान कितना ही बढ़ा-चढ़ा क्याें न हो, प्रकृति की सूक्ष्म बात को समझना कठिन होता है। कई बार छोटे से बालक के प्रश्न का उत्तर देने में दिमाग चकरा जाता, तो फिर परमात्मा की लीलाओं की समीक्षा कैसे की जा सकती है? विश्वास के बटवृक्ष पर उसे चढ़ने दीजिए, कुतर्क से उसे काटने का यत्न मत करिए। यदि ऐसा करेंगे, तो आनंद मिलेगा। एक कथा है कि एक सज्जन सत्संग के लिए महात्मा के पास प्रतिदिन जाते थे। वह महात्मा जी के लिए घर से दूध भी ले जाया करते। पत्नी को साधु-संतों में कुछ खास श्रद्धा नहीं थी। पति की इच्छा से एतराज भी नहीं था, लेकिन दूध देते समय वह सावधान रहती कि दूध के ऊपर जमी मलाई न जाने पाए। एक दिन दूध देते समय पत्नी के हाथ से मलाई का एक टुकड़ा पात्र में गिर गया। यह देख उसके मुख से निकला उफ! जब वह व्यक्ति दूध लेकर महात्मा के पास पहुंचा, तो साधु ने कहा, ‘आज मैं दूध नहीं पिऊंगा।’ व्यक्ति बोला, ‘महाराज दूध में तो कुछ नहीं गिरा है।’ साधु ने कहा, ‘तुम्हारी कोई चूक नहीं है, किन्तु इसमें हाय डल गई है। साधु को ऐसी कोई चीज नहीं लेनी चाहिए, जिसमें किसी की हाय लग गई हो।’