नई दिल्ली/श्रीनगर/चेन्नई । नरेंद्र मोदी के सोमवार को होने जा रहे शपथ ग्रहण समारोह में सार्क नेताओं को निमंत्रित किए जाने के फैसले पर अलग-अलग खेमे में खुशी और नाराजगी जताई गई है। गुरुवार को जहां जम्मू एवं कश्मीर में अलगाववादियों के दोनों धड़ों ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ सहित सार्क नेताओं को बुलाने के फैसले का स्वागत किया वहीं तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता सहित विभिन्न नेताओं ने श्रीलंका के राष्ट्रपति को न्योता भेजने का विरोध किया है। विरोध करने वालों में भाजपा के सहयोगी वाईको भी शामिल हैं। इस बीच अफगानिस्तान मालदीव और श्रीलंका के राष्ट्रपतियों और भूटान एवं नेपाल के प्रधानमंत्रियों ने न्योता स्वीकार करने की पुष्टि कर दी है लेकिन पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने अभी तक कोई फैसला नहीं लिया है। बांग्लादेश की ओर से वहां की संसद के स्पीकर समारोह में भाग लेने आएंगे। सार्क देशों के अलावा मारीशस के प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगुलाम भी शपथ ग्रहण में हिस्सा लेने आएंगे। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सैयद अकबरुद्दीन ने कहा कि भारत को अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे और मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन अब्दुल गयूम के शपथ ग्रहण में हिस्सा लेने की पुष्टि मिल चुकी है। अकबरुद्दीन ने कहा कि भारत को भूटान के प्रधानमंत्री लाचेन त्शेरिंग तोबगे और नेपाल के प्रधानमंत्री सुशील कोईराला के भी आने की पुष्टि मिल चुकी है जबकि बांग्लादेश ने सूचित किया है कि स्पीकर शिरिन शरमीन चौधरी समारोह में देश का प्रतिनिधित्व करेंगे। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि प्रधानमंत्री शरीफ गुरुवार को फैसला लेंगे कि उन्हें मोदी के शपथ ग्रहण में हिस्सा लेना है या नहीं और उल्लेख किया है कि नरेंद्र मोदी के सत्तारूढ होने के बाद वह भारत के साथ ‘सार्थक बातचीत’ की उम्मीद रखता है। दूसरी ओर मोदी के कदम का जम्मू एवं कश्मीर के अलगावादियों के दोनों धड़ों के साथ ही साथ मुख्य धारा के नेताओं और यहां के निवाविसयों ने स्वागत किया है। हुर्रियत के उदारवादी धड़े के अध्यक्ष मीरवायज उमर फारूक ने भी इस फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा है कि इसका असर लोगों की आकांक्षाओं के अनुरूप कश्मीर मुद्दे के समाधान में भी दिखना चाहिए। हुर्रियत के चरमपंथी धड़े के नेता सैयद अली गिलानी ने हालांकि भारत में किसी व्यवस्थागत बदलाव होने से इनकार किया है और कहा है कि प्रधानमंत्री की कुर्सी पर चाहे कोई भी बैठ जाए नई दिल्ली की कश्मीर नीति में कोई बदलाव नहीं आ सकता। दूसरी ओर कश्मीर घाटी के आम आदमी मोदी के नेतृत्व में भारत-पाकिस्तान रिश्ते में बेहतरी की उम्मीद करते हैं। श्रीनगर के नरवारा इलाके में रहने वाले शबीर अहमद (39) ने कहा ‘‘उन्होंने शरीफ को न्योता भेजकर सही कदम उठाया है…इससे इस अनुमान को बल मिलेगा कि मोदी भारत पर बाज की तरह राज करेंगे।’’उधर तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता ने नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण में श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को निमंत्रित किए जाने को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया। मोदी सोमवार को शपथ लेंगे।
तमिलनाडु की अन्य पार्टियों एमडीएमके और डीएमके ने भी राजपक्षे को निमंत्रित किए जाने का विरोध किया है जबकि कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस कदम का समर्थन किया है। डीएमडीके और पीएमके ने इस मामले में अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। जयललिता ने गुरुवार को यहां एक बयान जारी कर कहा ‘‘हमें उम्मीद थी कि केंद्र में बनने वाली नई सरकार की तमिलों के प्रति हमदर्दी होगी और वह तमिलनाडु के प्रति दोस्ताना रवैया रखेगी।’’ उन्होंने आगे कहा ‘‘यहां तक कि नए प्रधानमंत्री और उनकी नई सरकार के कामकाज शुरू करने के पहले ही श्रीलंका के राष्ट्रपति को निमंत्रित करना दुर्भाग्यपूर्ण है। इससे तमिलनाडु की जनता गहरे आहत हुई है। यह कदम तमिल भावना के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है।’’ उन्होंने कहा कि राजपक्षे को निमंत्रित करने का निंदनीय कदम नहीं उठाया जाना खास तौर से नई सरकार का तमिलनाडु की सरकार के साथ बेहतर संबंध के लिहाज से कहीं बेहतर होता। विरोध करने वालों में भाजपा के सहयोगी एमडीएमके महासचिव वाईको भी शामिल हैं। यहां मीडिया को जारी किए गए मोदी को लिखे पत्र में वाईको ने कहा है कि राजपक्षे को शपथ ग्रहण में बुलाया जाना उनके लिए भारी झटके की तरह है। उन्होंने कहा ‘‘आंखों में आंसू और करबद्ध होकर आपसे यही विनती कर रहा हूं कि आप राजपक्षे को शपथ ग्रहण में हिस्सा लेने से रोकिए और तमिलों को भरोसा दिलाइए। भारतीय विदेश मंत्रालय के अधिकारियों जिन्होंने पिछले 1० वर्षों से श्रीलंकाई तमिलों के हितों के साथ छल किया है उन्होंने आपको राजपक्षे को निमंत्रित करने की गलत सलाह दे दी।’’