सालो बाद फिर सुलगा लीबिया, गद्दाफी का सिपहसालार ‘खलीफा’ हफ्तार बना संकट का कारण
साल 2011 में तानाशाह कर्नल मुअम्मर गद्दाफी के शासन का नाटो समर्थक विद्रोहियों ने खात्मा कर दिया था. उसके 8 साल बाद अब लीबिया में अस्थिरता का नया संकट पैदा हो गया है. इस बार न केवल विद्रोही गुटों के बीच जंग छिड़ी है बल्कि कई देश भी आमने-सामने आ गए हैं. पिछले हफ्ते लीबिया के पूर्वी हिस्से में स्थित एक शरणार्थी शिविर पर हवाई हमले में 53 लोगों की मौत हो गई और 130 घायल हो गए. इन हवाई हमलों के लिए यूएन समर्थित राष्ट्रीय साझा सरकार यानी GNA ने खलीफा हफ्तार की लीबियन नेशनल आर्मी पर आरोप लगाया. इस घटना ने दुनिया का ध्यान लीबिया में तेजी से फैलते गृह युद्ध की ओर फिर से खींचा है.
इसी साल अप्रैल में मजबूत सैन्य कमांडर खलीफा हफ्तार की सेनाओं के हमले शुरू होने के बाद से लीबिया की राजधानी त्रिपोली युद्ध का अखाड़ा बनी हुई है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आंकड़ों की मानें तो पिछले तीन महीने के संघर्ष में 1000 से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं और 5000 से अधिक लोग घायल हुए हैं. हिंसा के इन ताजा हालातों के बीच एक लाख से ज्यादा लोग देश छोड़कर चले गए हैं.
विद्रोही गुटों के बीच तेज हुई जंग
पूर्वी लीबिया में मजबूत सैन्य कमांडर खलीफा हफ्तार ने अप्रैल में ये कहते हुए हमले का आदेश दिया था कि त्रिपोली पर काबिज विद्रोही गुट कट्टरपंथ को बढ़ावा दे रहे हैं. खासकर मिस्र के मुस्लिम ब्रदरहुड से जुड़े स्थानीय गुट हफ्तार के निशाने पर थे. दूसरी ओर तुर्की हफ्तार की सेनाओं के खिलाफ विद्रोहियों के समर्थन में आ गया. खलीफा हफ्तार ने तुर्की के जहाजों और व्यापारिक हितों पर भी हमले के आदेश दे दिए. हफ्तार की सेनाएं राजधानी त्रिपोली के करीब पहुंच गईं हैं और अब लड़ाई आमने-सामने की चल रही है.
ताजा हिंसा से दुनिया चिंतित
डिटेंशन शिविर पर हवाई हमले ने इस लड़ाई को और भड़का दिया है. दोनों ही पक्ष इसके लिए एक-दूसरे को दोषी ठहरा रहे हैं. वर्तमान हालात को 2011 में तानाशाह कर्नल गद्दाफी के खात्मे के बाद हिंसा का सबसे गंभीर दौर बताया जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने सभी पक्षों से तुरंत सीजफायर लागू करने की मांग की है. साथ ही पड़ोस में स्थित क्षेत्रीय ताकतों से भी लीबिया की लड़ाई को नहीं भड़काने की अपील की है.
कौन सा देश किसके पक्ष में
लीबिया की इस लड़ाई में सैकड़ों स्थानीय विद्रोही गुट एक-दूसरे के खिलाफ मैदान में हैं. कर्नल गद्दाफी के पूर्व लड़ाके भी हफ्तार की सेना के साथ जुड़ चुके हैं. जबकि मिस्र के मुस्लिम ब्रदरहुड से प्रभावित इस्लामिक गुट जीएनए की ओर से हफ्तार को रोकने के लिए उतर चुके हैं. जनरल हफ़्तार को मिस्र और संयुक्त अरब अमीरात का समर्थन हासिल है. मुस्लिम ब्रदरहुड के गुटों के खिलाफ मिस्र के शासक अल सीसी की सेना से हफ्तार को हथियार, धनराशि और सैन्य मदद मिल रही है.
हफ्तार ने सभी तुर्क नागरिकों को देश छोड़ने का फरमान सुनाया है जबकि तुर्की किसी भी सूरत में लीबिया में अपने व्यापारिक हितों को छोड़ने के मूड में नहीं है. इस हालात ने पड़ोसी देशों को भी इस लड़ाई से जोड़ दिया है. दूसरी ओर अफ्रीका के सबसे तेल संपन्न देश लीबिया के प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण के लिए यूएई, जॉर्डन, फ्रांस, कतर, अमेरिका और रूस हफ्तार का समर्थन करते दिख रहे हैं.
कौन विद्रोही गुट किधर से लड़ रहा है?
वॉर लॉर्ड खलीफा हफ्तार को टॉरबक स्थित हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव की मान्यता हासिल है. ये सेनाएं प्रधानमंत्री फायेज अल सर्राज की अगुवाई वाली जीएनए सरकार और मिलिशिया समूहों के खात्मे के लक्ष्य के साथ त्रिपोली तक आ पहुंची हैं. हफ्तार के पक्ष में गद्दाफी के पूर्व समर्थकों के अलावा 106 इंफैंट्री ब्रिगेड, हथियारबंद समूह, पूर्वी लीबिया के हथियारबंद समूह, दक्षिण लीबिया के हथियारबंद समूह, चाड और सूडान के विद्रोही और तारहौना स्थित 9th इंफैंट्री ब्रिगेड के लड़ाके लड़ रहे हैं. जबकि जीएनए के पक्ष में टीपीएफ- त्रिपोली प्रोटेक्शन फोर्स, टीआरबी- त्रिपोली रिवॉलुशनरी ब्रिगेड, अल नवासी बटालियन, अबु सलीम सेंट्रल सिक्योरिटी फोर्स, बाब तजौरा ब्रिगेड, इंफैंट्री बटालियन- 301, 33, ओसामा अल झुवैली फोर्सेज और अल महगौब ब्रिगेड लड़ रहे हैं.
ट्रंप के दांव ने बदला क्षेत्र में रणनीतिक गेम
हिंसा का नया दौर शुरू होने के बाद सबसे बड़ा बदलाव अमेरिका के रुख में देखने को मिला है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हफ्तार की सेनाओं का समर्थन कर सारा गेम बदल दिया है. जनरल हफ्तार से फोन पर बात कर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने उन्हें लीबिया में स्थिरता का वाहक बता दिया. ट्रंप का ये बयान अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो के हफ्तार से हिंसा रोकने की अपील के बाद आया. दुनिया में इसे लीबिया पर अमेरिका का बदला हुआ स्टैंड बताया गया.
कौन है खलीफा हफ्तार
लीबिया में ताजा हिंसा का पूरा दौर शक्तिशाली जनरल खलीफा हफ्तार पर केंद्रित होकर रह गया है. हफ्तार की स्वयंभू लीबियन नेशनल आर्मी का लीबिया के पूर्वी और अधिकतर दक्षिणी हिस्से पर नियंत्रण है. अब ये सेनाएं त्रिपोली पर नियंत्रण करने के लिए लड़ रही हैं. 75 साल के खलीफा हफ्तार की पकड़ देश के तेल संपन्न पूर्वी और दक्षिणी हिस्सों पर मजबूत है और अब उसकी सेनाएं राजधानी त्रिपोली पर कब्जे के लिए करीब तक पहुंच चुकी हैं.
कभी कर्नल गद्दाफी का सिपहसालार था खलीफा हफ्तार
आज लीबिया का सबसे ताकतवर वॉर लॉर्ड बन चुके खलीफा हफ्तार लीबिया के पूर्व सैन्य अधिकारी हैं. 1969 में जब कर्नल गद्दाफी ने सैन्य बगावत कर लीबिया की सत्ता पर कब्जा किया था तब हफ्तार प्रमुख सैन्य कमांडर और सिपलसालार था. युवा कमांडर के रूप में सत्ता पर गद्दाफी के कब्जे के बाद हफ्तार कई बड़े पदों पर रहा. इसके बाद 1973 में सिनाई पर हमले और ऑपरेशन चाड का भी हफ्तार ने नेतृत्व किया.
हालांकि, 1987 में ऑपरेशन चाड के दौरान वह गिरफ्तार हो गया. 1990 में रिहा होकर वहीं से गद्दाफी विरोधी खेमे में शामिल होकर अमेरिका चला गया और करीब दो दशकों पर वहीं से लीबियाई संगठनों को कर्नल गद्दाफी के खिलाफ संगठित करता रहा. 2011 में जब लीबिया में गद्दाफी के खिलाफ विद्रोह के स्वर उठने लगे तब लीबिया लौटकर हफ्तार विद्रोहियों के नेता बन गए. जनरल हफ्तार को मिस्र और संयुक्त अरब अमीरात का समर्थन हासिल है.
8 साल में कितनी हो चुकी है तबाही
लीबिया में साल 2011 में पूर्व नेता मुअम्मर गद्दाफी के तख्तापलट के बाद से ही असुरक्षा और हिंसा का दौर जारी है. देश में पूरी तरह अराजकता का माहौल है. सैकड़ों मिलिशिया ग्रुप हिंसक लड़ाई में शामिल हैं. शहर के शहर तबाह हो गए और अब तक हजारों लोग इस हिंसा का शिकार हो चुके हैं जबकि लाखों की संख्या में लोगों को लीबिया छोड़कर पलायन करना पड़ा है. देश में जारी हिंसा का राजनीतिक हल खोजने की संयुक्त राष्ट्र की सारी कोशिशें विफल होती दिख रही हैं और अफ्रीका का ये सबसे तेल संपन्न देश गृह युद्ध के नए दौर की तरफ बढ़ रहा है.