यह किसी से छिपा नहीं है कि उत्तराखंड में मानव-वन्यजीव संघर्ष किस कदर चिंताजनक स्थिति में पहुंच गया है। खासकर गुलदारों ने तो नींद ही उड़ाई हुई है। कारण चाहे जो भी हों, लेकिन आबादी वाले क्षेत्रों में ये ऐसे धमक रहे, मानो पालतू जानवर हों। अंदाजा इससे भी लगा सकते हैं कि वन्यजीवों के हमलों की 80 फीसद से अधिक घटनाएं गुलदारों की हैं।
वर्तमान में सूबे का शायद ही कोई क्षेत्र ऐसा होगा, जहां गुलदारों ने नींद न उड़ाई हो। कुछ क्षेत्रों में बाघ भी मुसीबत का सबब बने हैं। हालांकि, मनुष्य के लिए खतरनाक साबित हो रहे गुलदार-बाघ को वन्यजीव महकमा आदमखोर घोषित अवश्य करता है, लेकिन उसकी पहुंच में ये आधे भी नहीं आ पाते।
2006 से अब तक के कालखंड को ही देखें तो इस अवधि में 148 गुलदार और 11 बाघ आदमखोर घोषित किए गए। इनमें सिर्फ 73 गुलदार और छह बाघ ही मारे अथवा पकड़े जा सके। बाकी आदमखोर महकमे के लिए आज भी पहेली बने हुए हैं।
घोषित आदमखोर
वर्ष—–गुलदार—बाघ
2006—01—-00
2007—07—-00
2008—11—-01
2009—21—-03
2010—15—-01
2011—16—-02
2012—15—-00
2013—16—-00
2014—15—-00
2015—15—-01
2016—13—-03
2017—03—-00 (अब तक)
ये है तस्वीर
गुलदार—-मारे——-पकड़े—-पता नहीं
————-47———26——–75
बाघ——–02———04——–05
नहीं हो सकता सटीक निर्णय
अपर प्रमुख मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव), उत्तराखंड डॉ. धनंजय मोहन के मुताबिक किसी भी वन्यजीव के मनुष्य के लिए खतरनाक होने की संभावना के मद्देनजर सभी पहलुओं पर विचार के बाद उसे आदमखोर घोषित किया जाता है। लेकिन, यह सटीक निर्णय नहीं हो सकता।
कई बार गुलदार-बाघ के नरभक्षी घोषित होने पर वह नजर नहीं आते या फिर स्थान बदल लेते हैं। कई मर्तबा ऐसे जानवर की मौत भी हो जाती है, लेकिन यह बता पाना कि यह नरभक्षी था, बेहद दुष्कर है। नरभक्षी घोषित जिन बाघ-गुलदारों का पता नहीं चल रहा, उनके मामले में भी ऐसा संभव है।