दस्तक-विशेष

साहसी भारत का संबल थीं इंदिरा

indनई दिल्ली (एजेंसी) । स्वतंत्र भारत को विश्व मंच पर एक साहसिक और कूटनीतिक रूप से ‘स्वतंत्र राष्ट्र’ के रूप में स्थापित करने का संपूर्ण श्रेय पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को जाता है। दरअसल  आजाद भारत एक युद्ध में पराजित और दूसरे युद्ध में आहत हो चुका था। दुनिया के मंच पर सहायता के आग्रही देश को उस समय के सबल राष्ट्र कोई महत्व नहीं दे रहे थे। इंदिरा गांधी ने न केवल वियतनाम युद्ध में अमेरिका की तीव्र भत्र्सना कर साहस का परिचय दिया  बल्कि गुटनिरपेक्ष आंदोलन को जोरशोर से उठाकर दुनिया को यह जता दिया कि तीसरी दुनिया के देशों की सम्मिलित ताकत का कुछ अर्थ होता है। इतना ही नहीं  1971 के युद्ध में अमेरिकी सहायता पर इतराते पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर उन्होंने देश में सैन्य साहस का संचार करने में सफलता हासिल की। अपने साहसिक फैसलों के लिए इंदिरा गांधी सदैव याद की जाती रहेंगी। इंदिरा प्रियदर्शिनी (गांधी) का जन्म 19 नवंबर 1917 को इलाहाबाद स्थित आनंद भवन में हुआ था। वे देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की एकमात्र संतान थीं। उनकी माता का नाम कमला नेहरू था। 1942 में उनका विवाह फिरोज गांधी के साथ हुआ और उनके दो बेटे राजीव गांधी व संजय गांधी हुए। दोनों बेटों में से बड़े राजीव गांधी उनके निधन के बाद देश के प्रधानमंत्री बने थे। 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी अपने अंगरक्षकों की गोली की शिकार बनीं। इंदिरा का जन्म ऐसे परिवार में हुआ था जो आर्थिक एवं बौद्धिक दोनों दृष्टि से काफी संपन्न था। उनका नाम ‘इंदिरा’ उनके दादा पंडित मोतीलाल नेहरू ने रखा था। इंदिरा को बचपन में माता-पिता का ज्यादा साथ नसीब नहीं हो पाया। पंडित नेहरू देश की स्वाधीनता को लेकर राजनीतिक क्रियाओं में व्यस्त रहते थे और माता कमला नेहरू का स्वास्थ्य उस समय बहुत खराब था। दादा मोतीलाल नेहरू से इंदिरा को काफी स्नेह और प्यार-दुलार प्राप्त हुआ था। 1934 में इंदिरा ने 1०वीं कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली और आगे की पढ़ाई के लिए पंडित नेहरू ने उन्हें शांति निकेतन भेज दिया। इंदिरा प्रतिभाशाली थीं और उनका सहज ज्ञान भी अन्य बच्चों से काफी बेहतर था। इस कारण वह शीघ्र ही शांति निकेतन में सभी की प्रिय बन गईं। बाद में पंडित नेहरू ने इंदिरा का दाखिला ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में करवाया। तब तक प्रथम विश्वयुद्ध छिड़ चुका था। जर्मनी ने इंग्लैंड के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया था। मित्र देशों की सेनाएं इंग्लैंड के साथ थीं  लेकिन हिटलर का पलड़ा भारी था। ऐसे में इंदिरा का इंग्लैंड में रहना उचित नहीं था। अत: 1941 में वह भारत लौट आईं। इंदिरा गांधी ने बचपन से जिन परिस्थितियों का सामना किया वह असामान्य मानी जा सकती हैं। इन्हीं परिस्थितियों ने उन्हें निर्मित किया और वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की गवाह ही नहीं  उसकी भागीदार भी रहीं। यही कारण है कि उनके कई फैसले उनके पिता से ज्यादा सटीक रहे। देश में आपातकाल लागू कर इंदिरा गांधी ने हालांकि भारतीय जनता का कोप मोल ले लिया था और उन्हें पराजय तक का सामना करना पड़ा था। यह उक्ति इंदिरा गांधी के लिए बिल्कुल सटीक बैठती है  ‘‘प्रत्येक इंसान अपना एक स्वतंत्र व्यक्तित्व लेकर पैदा होता है। लेकिन वह अपने उन कार्यों से जाना जाता है जिनसे उसके गुण-अवगुण प्रदर्शित होते हैं। यदि इंदिरा गांधी के कार्यों की समीक्षा की जाए तो यह कहना उचित होगा कि ऐसी शख्सियतें शताब्दियों में ही पैदा होती हैं।’’

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