PM MODI की अध्यक्षता में NEW DELHI में MONDAY को SINDHU जल संधि की समीक्षा के लिए एक उच्चस्तरीय बैठक हुई।
जिसमें विदेश सचिव एस जयशंकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव नृपेन्द्र मिश्रा शामिल हुए। प्रधानमंत्री ने पांच दशक पुराने भारत-पाकिस्तान के बीच हुए सिन्धु जल समझौते की समीक्षा की। इस दौरान विभिन्न मंत्रालयों के अधिकारियों ने प्रधानमंत्री को जल समझौते के बारे में विस्तृत जानकारी दी। जानकारी देनेवालों में जल संसाधन और विदेश मंत्रालय के अधिकारी शामिल थे। केंद्र सरकार 1960 की इस संधि की अच्छे और बुरे संदर्भ में समीक्षा करना चाहती है। इस संधि के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच दो बड़े युद्ध हो चुके हैं लेकिन इस संधि पर कोई असर नहीं पड़ा। लेकिन 18 सितंबर को उरी में हुए सेना पर हमले के बाद से इस संधि की समीक्षा की बात उठने लगी थी। इस हमले में भारत के 18 सैनिक शहीद हो गए थे।
भारत ने इस हफ्ते की शुरुआत में साफ किया था कि ऐसी संधि के लिए परस्पर विश्वास व सहयोग अहम हैं। सरकार का यह कथन इन मांगों के बीच आया कि सरकार को उरी हमले के बाद पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए यह जल वितरण संधि तोड़ देनी चाहिए। हालांकि, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा था कि यह एकतरफा मामला नहीं हो सकता, जब उनसे पूछा गया था कि क्या सरकार भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव को देखते हुए सिंधु जल समझौते पर पुनर्विचार करेगी। अगर भारत सिंधु जल संधि तोड़ता है तो पाकिस्तान के एक बड़े हिस्से के लोगों को एक-एक बूंद पानी के लिए तरसना पड़ सकता है।
विदेश मामलों के जानकारों का मानना है कि मौजूदा परिस्थितियों में भारत को बिना वक्त गंवाए 1960 में हुए सिंधु नदी जल समझौते को रद्द कर देना चाहिए क्योंकि ऐसा होने पर पाकिस्तान का बड़ा इलाका रेगिस्तान में तब्दील हो जाएगा। सिंधु नदी जम्मू-कश्मीर से होकर पाकिस्तान में बहती है। भारत की ओर से सिंधु नदी जल समझौता रद्द किए जाने पर पाकिस्तान को दिया जाने वाला सिंधु नदी का पानी रोक दिया जाएगा। सिंधु नदी को पाकिस्तान की जीवन रेखा कहा जाता है। सिंधु नदी पर ही पाकिस्तान की सिंचाई व्यवस्था और खेती टिकी है। इससे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था चरमरा सकती है।