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सीएजी ने अब स्कूलों में मध्याह्न भोजन पर उठाए सवाल

97970-cagनई दिल्ली : नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने कहा है कि मध्याह्न भोजन योजना स्कूलों में बच्चों को आकर्षित करने और इनके नामांकन में सुधार लाने के उद्देश्य से शुरू की गई थी लेकिन हाल के कुछ वर्षों में बच्चों की नामांकन दर में लगातार कमी से लगता है कि यह योजना भी बच्चों को स्कूलों की ओर आकर्षित करने में पर्याप्त साबित नहीं हो पा रही है।

मध्याह्न भोजन योजना के निष्पादन की लेखा परीक्षा में कहा गया है कि 2009-10 से 2013-14 तक की अवधि में स्कूलों में बच्चों के नामांकनों में गिरावट हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, लक्षद्वीप और पुडुचेरी में देखी गई। अन्य राज्यों में नामांकन की विविध स्थिति थी।

2009-10 से 2013-14 तक सरकारी स्कूलों, सहायता प्राप्त स्कूलों, विशेष प्रशिक्षण केंद्रों, मदरसों एवं मकतवों में प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्तर पर बच्चों के नामांकन में 2010-11 को छोड़कर लगातार कमी दर्ज की गई। 2009-10 में एमडीएम युक्त स्कूलों में नामांकन 14.69 करोड़ था जो 2010-11 में मामूली रूप से बढ़कर 14.77 करोड़ दर्ज किया गया हालांकि 2011-12 में यह दर घटकर 14.59 करोड़, 2012-13 में 14.21 करोड़ और 2013-14 में कम होकर 13.87 करोड़ हो गई।

रिपोर्ट में कहा गया है कि इस अवधि में हालांकि निजी स्कूलों में नामांकन 38 प्रतिशत तक बढ़ गया जबकि एमडीएम वाले स्कूलों में इसमें 5.58 प्रतिशत तक कमी आई। कैग की लेखापरीक्षा में कहा गया है, ‘इससे स्पष्ट है कि जनसंख्या का एक बढ़ता वर्ग मुफ्त खाने की अपेक्षा शिक्षा की गुणवत्ता को प्राथमिकता देता है। यह दर्शाता है कि मुफ्त मध्याह्न भोजन भी स्कूल में बच्चों को रोकने के लिये पर्याप्त नहीं है, जब तक इसे अध्यापन या सीखने के परिणामों में सुधार के साथ नहीं जोड़ा जाता।’ 

कैग ने लेखा परीक्षा रिपोर्ट में कहा, ‘यह समझने का समय है कि खाना शिक्षा के बड़े प्रयोजन की अवश्यकता को पूरा करने वाले साधनों का एक अंत है। खाने का अपना प्रयोजन तभी पूरा होगा जब अभिभावकों की अपने बच्चों की अच्छी शिक्षा के संबंध में प्रत्याशाएं पूरी हों।’ लेखा परीक्षा में कहा गया है कि मध्याह्न भोजन के उद्देश्यों में एक उद्देश्य वंचित वर्गो से संबंधित गरीब बच्चों को स्कूल जाने और कक्षा में पढाई तथा अन्य गतिविधियों के लिये प्रोत्साहित करना है।

‘यह देखा गया है कि अरूणाचल प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, जम्मू कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, नगालैंड, पंजाब, ओडिशा, त्रिपुरा, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल और दिल्ली की राज्य सरकारों ने वंचित वर्गों से संबंधित गरीब बच्चों की पहचान करने के लिए कोई मानदंड नहीं बनाये। ऐसे बच्चों का पता लगाने के लिए कोई सर्वेक्षण भी नहीं किया गया।’ 

रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे बच्चे जिनका स्कूलों में दाखिला नहीं हुआ है, उनके माता पिता को योजना के बारे में जानकारी देने के लिए विशेष योजनाएं बनाने की परिकल्पना की गई थी। लेखा परीक्षा में यह देखा गया कि आठ राज्यों अरूणाचल प्रदेश, दिल्ली, गुजरात, जम्मू कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, मणिपुर, पंजाब में इस दिशा में कोई पहल नहीं की गई।

 

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