सीएम योगी तोड़ेंगे ये अंधविश्वास, नोएडा जाने वाले सीएम की जाती है कुर्सी
लखनऊ। नोएडा को लेकर करीब 29 वर्ष से यह अंधविश्वास चल रहा है कि जो भी मुख्यमंत्री वहां गया उसे लखनऊ लौटकर अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी। अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस अंधविश्वास को तोड़ने का बीड़ा उठाया है। वह 25 दिसंबर को नोएडा जा रहे हैं। उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नोएडा में मेट्रो लाइन का शुभारंभ करेंगे।
गोरक्षपीठ के महंत और मुख्यमंत्री योगी जिस नाथ संप्रदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं, वह किसी भी प्रकार की रूढ़ियों के खिलाफ है। जाहिर है मुख्यमंत्री ऐसी बातों को नहीं मानते। लेकिन अब भी समाज में अंधविश्वास का प्रभाव है और सूबे की सियासत भी इससे अछूती नहीं। यहां तक कि मुख्यमंत्री के सरकारी आवास पांच कालिदास मार्ग के बगल वाले बंगले में भी यह अंधविश्वास कायम है।
पशुपालन मंत्री प्रोफेसर एसपी बघेल ने बंगला नंबर छह में जाकर इस अंधविश्वास को तोड़ने की पहल की, लेकिन कुछ दिन बाद उनके कदम डिग गए और उन्होंने बंगला छोड़ दिया। उनके पहले भी कई मंत्री और अफसर इस बंगले को खाली कर चुके हैं। कहा यही जाता है कि जो लोग उस बंगले में रहे उन्हें कोई न कोइ क्षति उठानी पड़ी। वहां स्टांप पंजीयन मंत्री नंदगोपाल नंदी रहते हैं।
जहां तक नोएडा की बात है तो सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 2012 में सरकार बनाने से पहले नोएडा में खूब साइकिल चलाई, सीएम बनने के बाद वहां के लोग उनका इंतजार ही करते रह गए। अखिलेश ने बतौर सीएम नोएडा की योजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन लखनऊ से किया। यहां तक कि राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री के नोएडा जाने पर उनकी अगवानी के लिए खुद न जाकर उन्होंने मंत्री भेजे।
प्रदेश के अशुभ को दूर करने आए हैं हम: मुख्यमंत्री योगी ने बुधवार को राजधानी में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि नोएडा में मुख्यमंत्री के जाने को अशुभ मानने की धारणा बन गई थी लेकिन, हम प्रदेश के अशुभ को दूर करने के लिए ही आए हैं। इसी कार्यक्रम में मुख्यमंत्री से संवाद में जुड़े योग गुरु बाबा रामदेव ने नोएडा जाने के निर्णय पर योगी का अभिनंदन भी किया।
वीरबहादुर सिंह से शुरू हुआ सिलसिला: 1987-88 में बतौर मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह नोएडा गए तो वापसी के कुछ दिन बाद ही उनकी कुर्सी चली गई। उन्हें केंद्र में संचार मंत्री बनाया गया। उनके बाद एनडी तिवारी उप्र के मुख्यमंत्री बने और वह भी नोएडा गए। तिवारी की न केवल मुख्यमंत्री की कुर्सी गई बल्कि कांग्रेस की सरकार ही चली गई और तब से उप्र में उसकी वापसी नहीं हुई। 1995 में मुख्यमंत्री के रूप में मुलायम सिंह यादव भी नोएडा गये और वापसी के कुछ समय बाद बसपा से उनका गठबंधन टूट गया।
मायावती ने दिखाई थी हिम्मत: बतौर मुख्यमंत्री नोएडा का मिथक तोड़ने की हिम्मत मायावती ने जरूर दिखाई। वह बतौर मुख्यमंत्री चार बार नोएडा गईं और हर बार उन्हें कुर्सी गंवानी पड़ी। 2011 में भी मायावती नोएडा गईं थी, लेकिन 2012 के चुनाव में उनकी सत्ता छिन गई। यह जरूर है कि विदेश से पढ़ लिखकर लौटे अखिलेश यादव वहां जाने की हिम्मत नहीं जुटा सके। नोएडा न जाने के बावजूद 2017 में उनकी करारी हार हुई।