सीबीआई जांच के दौरान माइक्रोन को 60 लाख की दवा के ऑर्डर
रायपुर, निप्र। उत्तरप्रदेश में 8500 करोड़ रुपए के राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) घोटाले में फंसी गुजरात की बड़ी दवा निर्माता कंपनी पर छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विस कॉर्पोरेशन (सीजीएमएससी) के अफसर मेहरबान हैं। कंपनी को उत्तरप्रदेश स्वास्थ्य विभाग ने ब्लैक लिस्ट किया, कंपनी के विरुद्ध 2015 में एफआईआर भी हुई, सीबीआई जांच भी। बावजूद इसके सीजीएमएससी ने 21अगस्त 2015 से 1अगस्त 2016 के बीच 60 लाख 74 हजार 633 रुपए की दवा सप्लाई के ऑर्डर जारी कर दिए। ‘नईदुनिया’ पड़ताल में ये चौकाने वाला बड़ा खुलासा हुआ है।
गुजरात की माइक्रोन फॉर्मास्युटिकल्स कंपनी का नाम एनआरएचएम घोटाले में सामने आया था। इस कंपनी के विरुद्ध शिकायत मिली, जिस पर पड़ताल की गई। सामने आया कि माइक्रोन को सीजीएमएससी ने पहला ऑर्डर 15 जुलाई 2013 को जारी किया था। 2013 में 8, 2014 में 11 और 2015 में 20 ऑर्डर मिले। 1 अगस्त 2016 तक 12 दवा सप्लाई के ऑर्डर, जबकि 21 अगस्त 2015, इस तारीख को कंपनी को उत्तर-प्रदेश सरकार ने ब्लैक लिस्टेड किया था, निर्देश दिए थे कि इनके समेत 5 दवा कंपनियों से खरीदी न की जाए।
जिसके दस्तावेज ‘नईदुनिया’ के पास मौजूद हैं। बावजूद इसके सीजीएमएससी ऑर्डर जारी करती रही। बड़ा सवाल यह है कि आखिर क्यों? क्या अधिकारियों को उत्तरप्रदेश में चल रही कार्रवाई, सीबीआई जांच की जानकारी नहीं थी? या फिर उत्तरप्रदेश की कार्रवाई को नजरअंदाज करते हुए अफसरों ने मनमानी करते हुए कंपनी को लाभ पहुंचाया। बता दें कि कंपनी ने सीजीएमएससी के समक्ष दस्तावेज प्रस्तुत किए हैं कि उसके विरुद्ध केस बंद हो चुका है, लेकिन सवाल अभी का नहीं, बल्कि कार्रवाई के दौरान का है।
दवाएं जो बनाती हैं कंपनी- एंटी सेप्टिक, एंटी बॉयोटिक, सर्दी-खांसी, ताकत की दवाएं बनाती है।
अब तक पौने दो करोड़ का ऑर्डर- 15 जुलाई 2013 से 1 अगस्त 2016 तक कंपनी को 51बार दवा सप्लाई के आर्डर हुए। जिनकी कुल कीमत 2 करोड़ 70 लाख 8 हजार 35 रुपए है। अधिकांश भुगतान हो चुका है।
ये धोखाधड़ी का बड़ा प्रमाण
सीजीएमएससी दवा कंपनी को दवा सप्लाई ऑर्डर जारी करने से पहले उससे 100 रुपए के नॉन जूडिशियन स्टाम्प पेपर भरवाकर जमा करवाती है। जिसमें कंपनी घोषणा करती है कि उसके विरुद्ध कोई कोर्ट केस नहीं हैं, कंपनी किसी भी राज्य में ब्लैक लिस्टेड नहीं है। कंपनी यह घोषणा भी करती है कि दस्तावेज में गड़बड़ी, दी गई जानकारी झूठी पाई जाती है तो जमानती राशि राजसात होगी। ब्लैक लिस्ट किया जा सकेगा।
‘नईदुनिया’ के पास हैं ये सभी दस्तावेज-
21 अगस्त 2015- उत्तर-प्रदेश के प्रमुख सचिव अरविंद कुमार ने समस्य अपर मण्डलीय निदेशक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग, समस्त मुख्य चिकित्सा एवं अधीक्षक, समस्त मुख्य चिकित्सा अधिकारी के नाम पत्र जारी किए थे। लिखा- (फर्म के नाम, फर्म के विरुद्ध एफआईआर का उल्लेख किया गया) सीबीआई जांच से आच्छादित फर्मों से औषधियां का क्रय नहीं किया जाएं।जो करता है, उसके विरुद्ध कार्रवाई होगी।
उत्तरप्रदेश सरकार को पत्र लिखा है
वी. रामाराव, प्रबंध संचालक, सीजीएमएससी
सवाल- यूपी सरकार ने माइक्रोन फॉर्मास्युटिकल्स को ब्लैक लिस्टेड किया है, उसके विरुद्ध एनआरएचएम घोटाले में जांच चल रही है?
जवाब- कंपनी ने हमें दस्तावेज प्रस्तुत किए हैं कि उनके विरुद्ध चल रहा केस खारिज हो चुका है। लेकिन उनके दस्तावेज के अतिरिक्त मैंने यूपी सरकार को पत्र लिखकर दस्तावेज मांगें हैं, जो अब तक उन्होंने नहीं भेजे।
सवाल- माइक्रोन के विरुद्ध 2015 में एफआईआर हुई थी, तब ही उसे ब्लैक लिस्टेड कर दिया गया था। फिर भी खरीदी जारी रही?
जवाब- पहले क्या हुआ देखना पड़ेगा। लेकिन जब मुझे कंपनी के बारे में जानकारी मिली, उसके बाद उसे कोई टेंडर जारी नहीं किया?
केस बंद कर दिया है
उत्तरप्रदेश सरकार ने माइक्रोन फॉर्मास्युटिकल्स के विरुद्ध केस बंद कर दिया है, लेकिन कंपनी को सीजीएमएससी ने कोई ऑर्डर नहीं दिया है। -सुब्रत साहू, प्रमुख सचिव, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग