सील बंद पानी की बोतल कितनी घातक !
– डॉक्टर अरविन्द जैन
स्वामी विवेकानंद से एक अमेरिकन ने पूछा भारत और अमेरिका में क्या अंतर हैं ? विवेकांनद ने जबाव दिया भारत के लोग रोज नहाते हैं और अमेरिका के लोग रोज कपडे बदलते हैं। वैसे हमारे यहाँ ताज़ा खाने पीने का चलन प्राचीन हैं उसका कारण हमारे यहाँ की आबोहवा,वातावरण और तापमान। पर जबसे वैज्ञानिक विकास हुआ और नए नए रासायनिक तत्व आने से जो खाने पीने के सामान में संरक्षक का काम करते हैं उनके कारण अब हमारे यहाँ भी बांसा खाना नाश्ता का चलन शुरू हुआ। इसके अलावा रेफ्रिजेटर संस्कृति ने भी इसको बढ़ावा दिया. इसके साथ हर खाद्य सामग्री रेडीमेड बनने से औरमहिलाओं का श्रम न करने के कारण इनका चलन अब आम हो गया। सुविधाएँ मिलने से और आर्थिक सम्पन्नता के कारण इन पर समय श्रम की बर्बादी से बचने के लिए सरलता से,सुगमता से और अन्य प्रकार की विभिन्न सामग्री मिलने से प्राय: घरों में नाश्ता बनने का चलन कम हो गया समाप्त नहीं हुआ।
पहले नाश्ता या खाना में पौष्टिकता का ध्यान रखा जाता था और वे सामग्री पौष्टिक भी होती थी इसके अलावा वे शुद्ध,सस्ती और लाभवर्धक होता था पर आजकल पश्चिमी पूर्वी संस्कृति ने हमारे भोजन में सेंध लगाकर खाद्य संस्कृति को तहस नहस कर दिया। इन खानों में मैदा का उपयोग के साथ घटिया तेल और अन्य घटक डाले जाते हैं जो कतई न स्वास्थय वर्धक होते हैं और उनमे कुछ ऐसे तत्व डालते हैं जिससे हमारी लत व्यसन की आदत हो जाती हैं और आंक्रामक बाजार के कारण इन उत्पादनों की पहुंच घर घर हो गयी. ये खाद्य पदार्थ महंगे के साथ आमाशय,लिवर,किडनी,हृदय रोग और अंतराल तक उपयोग करने से आंत का कैंसर होने का अच्छा अवसर बनता हैं।
अब हमारे यहाँ यह कहा जाता हैं की दूध के दाम पर पानी बिकता हैं ! हाँ यह ठीक भी हैं। पहले नगर निगम द्वारा,कुआँ,नल नदी बाबड़ी के पानी का उपयोग होता था,समय के साथ सुख सुविधाएं बढ़ी, रेडी मेड संस्कृति के कारण और एग्रेसिव मार्केटिंग के कारण,प्रदूषित पानी मिलने के कारण पानी से होने वाली बिमारियों के होने से सुरक्षा के लिए पहले आर।ओ का व्यापार बढ़ा और फिर सील्ड पैक्ड पानी की बोतल का चलन चला।पहले इसे सम्पन्नता का प्रतीक माना जाता था।कालांतर में यह एक सामान्य वस्तु हो गयी. जैसे जैसे मांग बढ़ी और पूर्ती के लिए कुकरमुत्ते जैसे इनकी निर्माण प्रकिया शुरू हुई और अब तो मांग इतनी अधिक हैं की गुणवत्ता की ओर ध्यान नहीं जाता मात्र उपयोग ही एक मात्र लक्ष्य हैं।इसके पीछे कितना घातक खेल खेला जा रहा हैं इसको समझना जरुरी हैं बाकी उपयोग कर्ता को रोकना मेरे बस की बात नहीं हैं।
ग्रीष्म ऋतू में इनका उपयोग लाभकारी नहीं हैं ख़ास तौर पर वैसे कोई भी तरह सेकिसी भी ऋतू में उपयोगी नहीं हैं।। वैसे कुल मिला कर बंद बोतल का पानी कितना हानिकारक हैं इसको समझें। इस प्रकार के पानी के निर्माता के ऊपर इएएAघ् के अनुसार पानी की पैकिंग होनी चाहिए पर आज तक कोई अधिकृत अधिकारी को जांचने का और टेस्ट करने का की पानी की गुणवत्ता कैसी हैंका अधिकार नहीं हैं जब तक कोई शिकायत नहीं मिलती? कुछ हद तक खाद्य और औषधि प्रशासन को अधिकार हैं पर वह कितना नियंत्रण करती हैं ! भगवान् जाने। इन पर कोई का किसी प्रकार का नियंत्रण न होने से निर्माता अपनी मन मर्ज़ी का लाभ उठा कर हमारे स्वास्थ्य के साथ खुली खिलवाड़ कर रहे हैं और हम इसका खामियाज़ा भुगत रहे हैं।
हानिकारक होने का कारण– 30 फीसदी से कम प्लास्टिक की बोतल पुर्ननविनीकरण प्लास्टिक की होती हैं। बोतल का पानी में पूर्ण रूप से हार्मोन रसायनों में बाधित होते हैं,अधिकांश बोतल के पानी में एंटी ऑस्ट्रोजन और एंटी एंड्रोजेन्स होते हैं। एक कांच के गिलास से तीन गुना प्लास्टिक की बोतल में होती हैं।क्ष् मानवीय संक्रमण के कारण ज्यादा अवसर होते हैं। प्लास्टिक बोतल के कारण कैंसर का खतरा बढ़ता हैं 18 बोतल में से 11 बोतल में का प्रभाव देखने को मिला।
इस प्रकार इस पानी के धंधे में हमारे साथ अत्यंत घातक खिलवाड़ हो रहा हैं।मध्य प्रदेश में 148 पैक्ड वाटर यूनिट्स हैं,मात्र भोपाल में 10 के पास अधिकृत लाइसेंस हैं और लगभग 40 अवैध ढंग से निर्माण कर रही हैं जिनकी गुणवत्ता पर प्रश्न चिन्ह हैं। जब हम अपने घरों में ताज़ा पानी का उपयोग करते हैं तब हम सील्ड पैक्ड के लोभ में हम कितना पुराना, हानिकारक और रोगों को आमंत्रित करने वाला पानी पीकर और दाम लगा कर उपयोग कर रहे हैं इसके साथ कई जगह मात्र फिल्टर से साफ कर सीधा पानी वितरित करते हैं वहां जाकर आप देखेंगे की कितने गंदे ढंग से पानी प्रदाय किया जाता हैं।
इस माध्यम से आपको जानकारी देना आवश्यक हैं और उपयोग करना आपके ऊपर। जैसा खाएंगे अन्न,वैसा होगा मन,जैसा पियेंगे पानी,वैसी होंगी वाणी। साथ ऐसी असाध्य बीमारियों को आमंतरण देना क्या उचित हैं।
….एजेंसी/सोनी/5:57, 4/22/2017