कर्नाटक में 10,000 से ज्यादा दलित अधिकारियों-कर्मचारियों पर डिमोशन का खतरा मंडरा रहा है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की ओर से आरक्षण अधारित प्रमोशन को रद्द किया जा चुका है।
कोर्ट के इस आदेश से दलित सरकारी कर्मचारियों का प्रमोशन छीन सकता है। यानि जिसे आरक्षण के आधार पर प्रमोशन मिला था अब उससे वह प्रमोशन छीन जाएगा। कोर्ट के इस फैसले से कांग्रेस सरकार कोई ऐसा फैसला ले सकती है जिससे 2018 में होने वाले विधानसभा में उसे फायदा मिल सके।
एक सीनियर मंत्री ने कहा, ‘हम बेहद ही गंभीर स्थिति का सामना कर रहे हैं। अगर हम दलित के साथ खड़े होने में असमर्थ रहे तो वह हमारी छवि दलित विरोधी बनेगी। जिससे हमें चुनावों में नुकसान हो सकता है। वहीं अगर हम उनके लिए लड़े तो पिछड़ी और अगड़ी जातियां हमें चुनाव में समर्थन नहीं करेंगी।’
कानून और संसदीय मामलों के मंत्री टीबी जयचंद्रा ने बताया कि ‘सरकार मामले की गंभीरता को देखते हुए महालेखापाल से कानूनी सलाह ले रही है ताकि सही निर्णय लिया जा सके।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण आधारित प्रमोशन को रद्द किया था। कोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकारों को पहले यह निर्धारित करना होगा कि अपर्याप्त प्रतिनिधित्व, पिछड़ेपन और समग्र दक्षता के मानदंडों को पूरा किया जा चुका है या नहीं।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को आदेश पर विचार करने के लिए तीन महीने का समय दिया है। जिसके बाद यह तय माना जा रहा है कि सरकार इन तीन महीनों में ही आदेश को चुनौती दे सकती है। गौरतलब है कि आरक्षण में प्रमोशन के चलते कई दलित कर्मचारी उंचे पदों पर कार्यरत हैं। ऐसे में कोर्ट के इस आदेश के बाद उनपर गाज गिर सकती है।