हिमाचल में हाई टेंशन तार से करंट लगने से शत प्रतिशत विकलांगता के शिकार एक बच्चे को सुप्रीम कोर्ट ने 90 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया है। शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार को तीन महीने के भीतर पीड़ित परिवार को मुआवजा राशि देने को कहा है। इससे पहले हिमाचल हाईकोर्ट ने एक करोड़ 25 लाख रुपये मुआवजा देने का फैसला सुनाया था।
हाईकोर्ट के फैसले को राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर और न्यायमूर्ति अभय मोहन सप्रे की पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले में बदलाव करते हुए मुआवजे की राशि सवा करोड़ रुपये से घटाकर 90 लाख रुपये कर दी। पीठ ने माना कि मुआवजे की इस राशि को अगर बैंक में जमा करा दी गई तो इससे पीड़ित परिवार को पर्याप्त मासिक आमदनी मिलती रहेगी और बच्चे
के भविष्य की जरूरतें भी पूरी हो जाएंगी। इससे पहले हाईकोर्ट ने पारिवारिक पृष्ठभूमि और पढ़ाई में इस मेधावी छात्र के उम्दा प्रदर्शन को देखते हुए कहा था कि भविष्य में उसके कम से कम 30 हजार रुपये प्रति महीने कमाने की क्षमता थी। इस आधार पर हाईकोर्ट ने मुआवजे की राशि सवा करोड़ रुपये देने का आदेश दिया था।
यह है मामला
राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील जेएस अत्री ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दलील पेश करते हुए कहा कि हाईकोर्ट द्वारा तय की गई राशि बहुत अधिक है। उनका कहना था कि बिना किसी पुख्ता आधार के हाईकोर्ट ने मुआवजे की रकम तय कर दी। हाईकोर्ट का आदेश कल्पना और संभावनाओं पर आधारित है, जिसका कोई कानूनी वजूद नहीं है।
उन्होंने कहा कि बच्चे का आजीवन शत-प्रतिशत विकलांग होना दुखद है, लेकिन हाईकोर्ट ने मुआवजे की रकम बेहद अधिक निर्धारित की है। 18 मार्च 2012 को चंबा के भटियात के आठ वर्षीय नवल किशोर अपनी मां के साथ खेत में साग तोड़ने गया था। इस दौरान ऊपर से गुजर रही 11 केवी की हाईटेंशन तार (लाहडू़-चोवाड़ी लाइन) से बच्चे को करंट लग गया।
वह बुरी तरह जल गया और बेहोश हो गया। बाद में इलाज के दौरान उसकी जान बचाने के लिए उसके दोनों हाथों को काटना पड़ा, जिससे वह 100 फीसदी विकलांग हो गया। बच्चे के इलाज में परिवारवालों ने दो लाख रुपये भी खर्च किए। इस घटना के बाद से बच्चा पूरी तरह परिवारवालों पर निर्भर हो गया।