न्यायालय ने शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश के. एस. राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली उच्चतम न्यायालय की सड़क सुरक्षा समिति द्वारा दायर रिपोर्ट पर केंद्र से जवाब मांगा है। पीठ ने कहा कि मामले पर अगली सुनवाई अब जनवरी में होगी।
बता दें हाल ही में जारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2017 में इन गड्ढों ने 3,597 लोगों की जान ली है। यानि हर दिन 10 लोगों की मौत इन गड्ढों के कारण हुई है। यूं तो समान्य दिनों में लोगों को ये गड्ढे दिख जाते हैं और वह इनसे बचकर भी निकल जाते हैं। लेकिन बारिश के दिनों में इनसे बच पाना नामुमकिन सा होता है। सड़कों पर पानी के निकास की उचित व्यवस्था न होने से इन गड्ढों में पानी भर जाता है, जिसके कारण सड़क के गड्ढे कई बार दिखाई नहीं पड़ते। अगर साल 2016 के आंकड़े देखें तो 2017 में यह आंकड़ा 50 फीसदी तक बढ़ गया है।
अगर देश भर में इन गड्ढों से होने वाली मौतों की तुलना आतंकी घटनाओं से करें तो आतंकी घटनाओं में कुल 803 लोगों की जान गई है। इसमें आतंकवादी, सुरक्षाकर्मी और आम नागरिक तीनों ही शामिल हैं। महाराष्ट्र में साल 2017 में 726 लोगों को गड्ढों के कारण अपनी जान गंवानी पड़ी। सड़क की खराब हालत के प्रति अनदेखी प्रतिदिन बुरे संकेत दे रही है। महाराष्ट्र का आंकड़ा भी 2016 की तुलना में 2017 में दोगुना हो गया।
इन घटनाओं के पीछे एक नहीं बल्कि बहुत से कारण हैं। लोगों का यातायात नियमों का ठीक से पालन न करना और बिना हेलमेट के वाहन चलाना तो कारण है ही। लेकिन इन मौतों की सबसे बड़ी वजह नगरपालिका निकाय और सड़क स्वामित्व एजेंसियों में भ्रष्टाचार भी है।
बता दें ये आंकड़े सभी राज्यों ने केंद्र सरकार के साथ साझा किए हैं। मामले में उत्तर प्रदेश प्रथम स्थान पर है। जहां 987 लोगों की मौत हुई। यूपी के बाद दूसरे और तीसरे स्थान पर हरियाणा और गुजरात हैं, जहां का रिकॉर्ड सबसे खराब रहा। वहीं देश की राजधानी में भी साल 2017 में गड्ढों के चलते 8 लोगों की मौत हुए जबकि साल 2016 तक यहां एक भी मामला ऐसा नहीं था।
ऐसी स्थिति पर सड़क सुरक्षा विशेषज्ञ रोहित बलुजा कहते हैं कि इन दुर्घटनाओं के लिए जो भी अधिकारी जिम्मेदार हैं उन पर आईपीसी के तहत लोगों की हत्या के आपराधिक मुकदमे दर्ज करने चाहिए।
कई रिपोर्ट्स में तो यह भी सामने आया है कि सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों की बड़ी वजह सड़क का गलत डिजाइन, खराब रख-रखाव और सड़क से संबंधित समस्याओं की अनदेखी करना भी है। सड़क मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना है कि मोटर वीकल्स संशोधन बिल में इस तरह के प्रावधानों को शामिल किया जा रहा है। यह बिल संसद में लंबे समय से अटका हुआ है।