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सुप्रीम कोर्ट ने लिया ये फैसला: स्कूलों में संस्कृत प्रार्थना करना है अधिकारों का हनन

केंद्रीय विद्यालयों में सुबह प्रार्थना में संस्कृत प्रार्थना गाए जाने के खिलाफ दाखिल याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने संविधान पीठ को सौंप दिया है. दरअसल कोर्ट में पूछा गया था कि आस्था और मान्यताओं से इतर केंद्रीय विद्यालयों में छात्रों द्वारा संस्कृत प्रार्थनाओं का गायन क्या उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है? हालांकि अब इस सवाल की सुनवाई संवैधानिक बेंच करेगी.

सुप्रीम कोर्ट ने लिया ये फैसला: स्कूलों में संस्कृत प्रार्थना करना है अधिकारों का हननजज आर एफ नरीमन और विनीत सरन की पीठ ने कहा कि इस सवाल की पड़ताल एक संविधान पीठ द्वारा की जाएगी. साथ ही कोर्ट ने इस मामले को भारत के प्रधान न्यायाधीश को भी भेज दिया है. पीठ ने इस महत्वपूर्ण विषय बताया और पीठ का कहना है कि एक संविधान पीठ को इसकी पड़ताल करनी चाहिए.

यह याचिका जबलपुर के वकील विनायक शाह ने दायर की थी और उन्होंने अपनी याचिका में संस्कृत प्रार्थना के गायन की अनिवार्यता को चुनौती दी थी. इस याचिका पर सुनवाई के दौरान सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र का पक्ष रखते हुए कहा कि संस्कृत के श्लोकों का अर्थ वैश्विक सत्य है और केवल इनका संस्कृत में लिखा जाना इन्हें सांप्रदायिक नहीं बनाता.

वहीं जज नरीमन ने कहा कि संस्कृत ‘श्लोक’ जिनका जिक्र किया गया है, वह उपनिषदों से लिए गए हैं. इस पर मेहता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के हर कोर्ट कक्ष में लिखा हुआ है, ‘यतो धर्मा स्ततो जय:’, जो कि महाभारत से लिया गया है. उन्होंने कहा, ‘इसका यह मतलब नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट धार्मिक है.

बता दें कि वकील शाह के अलावा, मुस्लिम संस्था, जमीयत उलेमा ए हिंद ने भी इस मामले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी है. हालांकि अब इस मामले को संवैधानिक बेंच को सौंप दिया गया है, जो इस पर सुनवाई करेगी.

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