अन्तर्राष्ट्रीय

सुरक्षा परिषद सुधार में गतिरोध समाप्त करके भारत का मतदान का सुझाव

संयुक्त राष्ट्र: सुरक्षा परिषद सुधार के संबंध में समझौते के गतिरोध को समाप्त करने के लिए, भारत ने मौजूदा प्रक्रिया के तहत नकारात्मक सोच वालों को नकारने के लिए मतदान के साथ महासभा की कार्यविधि के नियम को स्वीकारने का सुझाव दिया है। भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने मंगलवार को महासभा में कहा, नकारात्मक सोच वालों को पूरी सदस्यता में काला साया डालने की इजाजत नहीं दी जा सकती। उन्होंने कहा, हममें से कुछ समझौते के नियमों को मोड़कर पूरी प्रक्रिया को बंधक नहीं बना सकते। सुधार प्रक्रिया को वार्ता के 10 चरणों के बाद खासकर यूनाइटेड ऑफ कंसंशेस की वजह से रोक दिया गया है। यूनाइटेड ऑफ कंसंशेस 12 सदस्यीय समूह है, जो स्थायी सदस्यों की संख्या को बढ़ाने का विरोध करता है। इसकी अगुवाई इटली करता है, जिसमें पाकिस्तान भी शामिल है।

इस समस्या से बाहर निकलने के लिए, अकबरुद्दीन ने कहा कि अंतर सरकारी समझौते(आईजीएन) को प्रक्रिया के सामान्य नियमों के तहत चलाना चाहिए, जिस तरह से महासभा की अन्य प्रक्रियाएं हैं। उन्होंने कहा, महासभा में, नकारात्मक सोच वाले अधिक से अधिक नकारात्मक मतदान कर सकते हैं। मतदान के बाद, महासभा में बहुमत बना रहेगा। सुरक्षा परिषद सुधार पर महासभा की बैठक के दौरान वह भारत, ब्राजील, जापान और जर्मनी (जी-4) की तरफ से बोल रहे थे। जी-4 स्थाई सदस्यों की संख्या में बढ़ोत्तरी और उन सीटों के लिए उनके उम्मीदवारों के आपसी समर्थन की वकालत करता है। बैठक के दौरान अपना पक्ष रखने वाले अधिकतर देशों ने परिषद की स्थायी सदस्यता के विस्तार का समर्थन किया। समझौते को आगे बढ़ाने के लिए, अकबरुद्दीन ने सुझाव दिया कि समझौते की क्रिया पूरे वर्ष चलते रहनी चाहिए। बीते महासभा सत्र के दौरान, आईजीएन ने केवल जनवरी से जून के बीच मुलाकात की थी और जुलाई में मतदान किया था।

उन्होंने कहा, वार्ता के जितने अवसर होंगे, प्रगति होने के अवसर भी उतने ही बढ़ते जाएंगे। उन्होंने कहा, बीते सत्रों की सफल कहानियों से प्रेरणा लेते हुए, हम सुझाव देते हैं कि सुरक्षा परिषद सुधार पर हमारी चर्चा को जल्द से जल्द शुरू करना चाहिए और जून में इसे समाप्त करने के लिए कोई कृत्रिम समयसीमा नहीं होनी चाहिए। बैठक के दौरान पुर्तगाल परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के पक्ष में स्पष्टता के साथ सामने आया। अधिकतर देशों ने एशिया, अफ्रीका, लातिन अमेरिका के प्रतिबद्ध आवाजों को उठाने के लिए स्थायी सदस्यों की संख्या में बढ़ोत्तरी का समर्थन किया। वहीं इसके विरोध में भी आवाजें उठीं। पाकिस्तान की स्थायी प्रतिनिधि मलीहा लोधी ने स्थायी सदस्यों की संख्या में बढ़ोत्तरी का विरोध किया और कहा, अगर परिषद अपने पांच स्थायी सदस्यों के हितों को संतुष्ट नहीं कर पा रहा है तो यह बड़ी सदस्य संख्या के साथ कैसे निपटेगा? चीन की स्थायी प्रतिनिधि मा झाओसु ने सुधार के लिए समयसीमा तय करने या मनमाने ढंग से शब्द-आधारित समझौते की शुरुआत करने का विरोध किया।

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