फीचर्डराष्ट्रीय

सु्प्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, रेप पीडिता को दी गर्भपात की इजाजत

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए एक महिला को 24 हफ्ते के भ्रूण के गर्भपात की इजाजत दे दी. कोर्ट ने एमटीपी एक्ट की धारा-5 के तहत महिला को यह इजाजत दी. यह निर्णय सर्वोच्च न्यायालय की ओर से गठि‍त सात केईएम मेडिकल कॉलेज की 7 सदस्यीय कमेटी की रिपोर्ट के बाद लिया गया. समिति ने रिपोर्ट में कहा कि इस कदम से महिला की जान कोई खतरा नहीं है.supreme-court_650_072516032151

कमेटी ने कहा कि भ्रूण चिकित्सीय असामान्यताओं के साथ पीड़ित है. भ्रूण में न तो खोपड़ी और न ही लीवर है. इसके साथ ही भ्रण की आंत भी शरीर के बाहर से बढ़ रही है. पैनल ने बताया कि यह भ्रूण जन्म पर बच नहीं पाएगा. लेकिन अगर महिला बच्चे को जन्म देती है तो उसकी जान को खतरा है.

‘कानून के गलत इस्तेमाल की भी संभावना’
केंद्र सरकार की तरफ से पेश होते अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा, ‘इस मामले में केंद्र MTP एक्ट की धारा 5 के तहत गर्भपात की इजाजत दे सकता है, क्योंकि इस मामले में मां की जान को खतरा है. बाकी की धाराओं को लेकर हम अभी कुछ नहीं कहना चाहेंगे, क्योंकि ये एक बेहद गंभीर मामला है. कन्या भ्रूण हत्या के मद्देनजर रियायत देने पर कानून के गलत इस्तेमाल की संभावना है.’

‘मां की जान को खतरा एक अपवाद’
सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट और अटॉर्नी जनरल की दलीलों को ध्यान में रखते हुए कहा की हम MTP एक्ट की धारा-5 के तहत गर्भपात की इजाजत देते हैं. धारा-5 में कुछ अपवाद परिस्थितियां हैं, जिनमें 20 हफ्ते के बाद भी गर्भपात की इजाजत दी जा सकती है. मां की जान को खतरा ऐसा ही एक अपवाद है.

अनुवांशि‍क बीमारी से पीड़ि‍त है भ्रूण
गौरतलब है कि 24 हफ्ते के भ्रूण के गर्भपात की मांग करने वाली महिला की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी किया था. कोर्ट ने कहा कि मेडिकल रिपोर्ट देखने के बाद ही वह मामले में आदेश देगा. खुद को रेप पीड़ित बताने वाली महिला का कहना है कि उसका भ्रूण सामान्य नहीं है और अनुवांशि‍क बीमारी से पीड़ि‍त है. आंतों की समस्या के साथ ही भ्रूण का मस्तिष्क भी विकसित नहीं हो रहा है. ऐसे में बच्चे के पैदा होते ही मर जाने की आशंका है.

20 हफ्ते के भ्रूण तक ही गर्भपात की इजाजत
महिला ने याचिका दायर कर कोर्ट से 20 हफ्ते तक ही गर्भपात की मंजूरी के कानून की समीक्षा की मांग की थी. याचिका में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (एमटीपी) एक्ट की धारा 3(बी) को चुनौती दी गई. मांग की गई कि इसे असंवैधानिक घोषित किया जाए. इस धारा के मुताबिक, काई भी 20 हफ्ते के बाद गर्भपात नहीं करा सकता. याचिका के मुताबिक 1971 में जब यह कानून बना था तब भले ही इस धारा का औचित्य हो सकता हो, लेकिन आज इसका औचित्य नहीं है. ऐसी आधुनिक तकनीक मौजूद हैं, जिससे 26 हफ्ते के बाद भी गर्भपात करवाया जा सकता है.

कानून की इन धाराओं को दी थी चुनौती
याचिका में कहा गया कि भ्रूण में कई गंभीर अनुवांशिक विकार का पता 20 हफ्ते के बाद ही चल पाता है. इसलिए 20 हफ्ते के बाद गर्भपात की इजाजत न होना बेहद सख्त और अनुचित है. साथ ही यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का भी उल्लंघन करता है. याचिका में एमटीपी एक्ट की धारा-5 की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती दी गई थी. अस्पतालों में डॉक्टर इस धारा का बेहद संकुचित मायने निकलते हैं. 20 हफ्ते बाद अगर किसी अनुवांशिक विकार का पता चलता है और कोई महिला गर्भपात करवाना चाहती है तो भी वो इस धारा के कारण गर्भपात नहीं करवा सकती.

सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठि‍त कमेटी में स्वास्थ्य सचिव, नरेश दयाल (पूर्व सचिव, आईसीएमआर) और डॉ. एनके गांगुली शामिल हैं.

 

Related Articles

Back to top button