सूखा एवं जलसंकट: वैज्ञानिक पहलू
आदिवासी सभ्यता से बाहर निकलकर मानव ने जब विकास की प्रक्रिया को प्रारम्भ किया होगा तो सम्भवत: उसे यह आभास भी नहीं रहा होगा कि इस अंधाधुंधी विकास में वह अपनी सत्ता पर आघात कर रहा है किन्तु आज इक्कीसवीं सदी तक आते-आते उसे यह अहसास हो गया कि जिसे वह विकास समझ बैठा था वह तो अवसान का क्रमिक आमंत्रण था। आज का मानव सुख-सुविधाओं के सारे संसाधनों को प्रकृति से नियंत्रित होने वाला मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ प्रकृति से दूर होकर प्राकृतिक आपदाओं के पाश में जकड़ता चला गया। इन्हीं आपदाओं में से एक है सूखा एवं जल संकट। आज देश में पानी का संकट एवं सूखे की समस्या बेहद गंभीर है। केन्द्रीय जल संसाधन विभाग ने यह माना है कि पिछले 16 वर्षों में इस साल पानी का संकट बेहद गंभीर है तथा देश के 91 प्रमुख जलाशयों में केवल 29 प्रतिशत पानी बचा है जो इस दशक में पानी का सबसे निचला स्तर है। केन्द्र सरकार ने यह भी माना है कि देश के कुल 675 जिलों में से 256 जिलों में देश की 25 प्रतिशत से ज्यादा लगभग 33 करोड़ की आबादी भीषण सूखे से प्रभावित है। किसी भी क्षेत्र में जब सामान्य से कम वर्षा होती है तो वह सूखे का मुख्य कारण बनती है। कई वर्षों तक इस क्रिया के कारण सूखे की स्थिति उत्पन्न होती है। जनसंख्या वृद्धि, जलसंसाधनों में हो रही कमी, अनियंत्रित जल प्रबंधन एवं जल संग्रहण की कमी, सूखे की समस्या को और गंभीर कर रहे हैं तथा नगरीकरण, वननाशन तथा तालाब एवं पोखरों को पाटकर हो रहे निर्माण के कारण सूखे ने भीषण रूप ले लिया है। वर्तमान समय में हो रहे जलवायु परिवर्तन एवं एल्निनो की घटना ने सूखे की समस्या एवं पानी के संकट में उत्प्रेरक का कार्य किया है।
एल्निनो प्रशांत महासागर में दक्षिणी अमेरिका के पेरू तट पर दिसम्बर में उत्पन्न होने वाली वो गर्म धाराएं हैं जो हिन्द महासागर तक मई-जून के महीने में पहुंचकर यहां का तापमान 3-5 डिग्री तक बढ़ा देती हैं। ऐसा देखा गया है कि लगभग 43 प्रतिशत एल्निनो की घटना के बाद सूखा पड़ता है। सूखा कई तरीके से परिभाषित किया जा सकता है जैसे मौसमीय सूखा जो सामान्य से कम वर्षा होने के कारण उत्पन्न होता है तथा जलीय एवं कृषीय सूखे का कारण बनता है। जलीय सूखा- जब जल के स्रोत सूखने लगते हैं तथा पानी के संसाधनों में कमी आने लगती है। कृषीय सूखा- जब मौसमीय एवं जलीय सूखे के कारण फसल प्रभावित होने लगती है तथा फसलों का उत्पादन कम होता है। 1958-1961 में आया चीन का सूखा विश्व का सबसे बड़ा सूखा माना जाता है, जिसमें लगभग 25 मिलियन लोगों की मृत्यु हुई थी। 1896-1902 के बीच का अपने देश का सूखा जिसमें करीब 19 मिलियन लोगों की मृत्यु हुई थी, विश्व का एक भीषण सूखा था। भारत में अब तक 1918, 1965, 1972, 1979, 1987 एवं 2009 का सूखा भीषण सूखा माना जाता है जिसमें देश का 40-70 फीसदी क्षेत्र प्रभावित रहा है। सूखा, वर्षा एवं एल्निनो के सारे आंकड़े पर ध्यान देने से यह पता चलता है कि जिस वर्ष एल्निनो सक्रिय रहता है, मानसून कमजोर होता है तथा वर्षा कम होती है, उसके बाद सूखा पड़ने की संभावना ज्यादा रहती है। वर्ष 1900 के बाद अब तक लगभग 26 बार एल्निनो सक्रिय रहा है तथा वर्ष 2014-2016 में भी एल्निनो सक्रिय है। अपने देश में पिछले दो वर्षों में सामान्य से कम वर्षा हुई है, जो स्थलमण्डल, जलमण्डल एवं वायुमण्डल में पानी की कमी का कारण है।
हमारे देश की अर्थव्यवस्था कृषिप्रधान है तथा यहां की खेती मानसून पर निर्भर करती है। सूखे ने देश में कृषि एवं पारिस्थिति तंत्र के साथ-साथ राजनैतिक, सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति भी बदहाल कर रखी है। जलवायु परिवर्तन एवं एल्निनो एवं वर्षा तो मानव नियंत्रण से परे हैं लेकिन मानव नियंत्रित प्रयासों के द्वारा हम सूखे एवं जलसंकट की भीषण विभीषिका से बच सकते हैं। इसके लिए हमें रेनवाटर हार्वेस्टिंग एवं आर्टिफिशियल रिचार्जिंग ऑफ एक्टिफर पर ध्यान देना चाहिए। जल संग्रहण क्षेत्रों का विकास, सिंचाई के लिए उचित संसाधन, वनरोपण, नियोजित नगरीकरण, जल प्रबंधन, बेहतर विकास नियोजन के द्वारा हम इस समस्या को कम करते हुए धीरे-धीरे समाप्त कर सकते हैं।
उत्तर प्रदेश का बुंदेलखण्ड हो, महाराष्ट्र का लातूर एवं पूरा मराठवाडा हो, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश एवं तेलंगाना की समस्या एक दिन में नहीं उत्पन्न हो गयी है, बल्कि यह वर्षों से हो रही प्राकृतिक के साथ-साथ मानवीय प्रकोप एवं कुप्रबंधन का परिणाम है।
भूजल एक ऐसा एटीएम हो गया है जिसमें हम सिर्फ पैसे निकाल रहे हैं, जमा नहीं कर रहे हैं, एक ऐसा मोबाइल हो गया है जिसमें बातें तो कर रहे हैं लेकिन रिचार्ज नहीं कर रहे हैं। ऐसा एटीएम या मोबाइल तो कुछ वर्षों में समाप्त हो ही जाएगा। अत: आवश्यकता है भूजल के संरक्षण की, रिचार्ज करने की, जल के संसाधनों को प्रदूषण से बचाने की, मृतप्राय हो रहे तालाबों एवं पोखरों को पुनर्जीवित करने की तथा विदेशों की तरह उस वैज्ञानिक तकनीति को विकसित करने की जिसमें विषम परिस्थिति में समुद्री तल के खारेपन को दूर कर प्रयोग में लाया जा सके। सूख एवं जल संकट की समस्या किसी एक व्यक्ति, नगर, जिला, प्रदेश या सरकार की समस्या नहीं है। यह जन-जन की समस्या है, अत: इसके निराकरण के लिए जनजागरूकता अभियान चलाकर जन-जन की सहभागिता सुनिश्चित करना आवश्यक है। राजनीति की दीवार को तोड़कर एकजुट होकर, सारे वैज्ञानिक तथ्यों एवं प्राकृतिक नियमों को ध्यान में रखकर सतत विकास द्वारा सूखा एवं जलसंकट की समस्या का समाधान किया जा सकता है। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने सही लिखा है कि-
रात यूूं कहने लगा मुझसे गगन का चाँद,
आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है।
उलझनें अपनी बनाकर आप ही फंसता,
और फिर बेचैन हो जगता न सोता है।
(लेखक लखनऊ विवि. में भूविज्ञान विभाग में प्रोफेसर हैं तथा प्रथम एवं द्वितीय उत्तरी ध्रुवीव भारतीय अभियान दल के सदस्य रहे हैं।) ’