अजब-गजब

सेम सेक्स मैरिज को केवल एक चौथाई लोग ही मानते हैं सही

भारत में भले ही अब समलैंगिकता अपराध नहीं रह गई हो लेकिन अभी भी LGBT समुदाय को बहुत से अधिकार मिलने बाकी हैं. सितंबर 2018 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध मानने वाली धारा 377 से बाहर कर दिया था. हालांकि, ऐक्टिविस्ट्स का कहना है कि इस समुदाय को शादी, संपत्ति में अधिकार, गार्जियनशिप और बच्चा गोद लेने जैसे अधिकार मिले बिना असल मायनों में बदलाव नहीं आएगा.

सेम सेक्स मैरिज को केवल एक चौथाई लोग ही मानते हैं सहीसुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने फैसला सुनाते हुए कहा था, “समलैंगिक लोगों को सम्मान के साथ जीने का अधिकार है. ‘मैं जो हूं, वो हूं’ लिहाजा जैसा मैं हूं- उसे उसी रूप में स्वीकार किया जाए. समाज अब व्यक्तिगतता के लिए बेहतर है.” हालांकि, इंडिया टुडे-कार्वी के ‘मूड ऑफ द नेशन’ सर्वे से यह बात सामने आई है कि भारतीय समाज का एक बड़ा धड़ा समलैंगिक विवाह को सही नहीं मानता है.

सिर्फ एक चौथाई लोग ही समलैंगिक विवाह के पक्ष में

भारतीय समाज समलैंगिकता और सेम सेक्स मैरिज को लेकर क्या सोचता है, इसी मुद्दे पर इंडिया टुडे-कार्वी के ‘मूड ऑफ द नेशन पोल’ (MOOD OF THE NATION 2019) ने लोगों के सामने एक सवाल रखा. इंडिया टुडे-कार्वी के सर्वे में लोगों से पूछा गया कि क्या उनकी राय में भारतीय समाज को सेम सेक्स मैरिज को स्वीकार करना चाहिए? इस सवाल के जवाब में 62 फीसदी लोगों ने कहा कि वे समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के खिलाफ हैं जबकि केवल 24 फीसदी लोगों ने इसका समर्थन किया. वहीं 14 फीसदी लोगों ने कहा कि वे इस मुद्दे पर कुछ कह पाने की स्थिति में नहीं हैं. सर्वे के नतीजों से साफ है कि भारत में समलैंगिक विवाह के समर्थन में एक चौथाई लोग ही हैं.

कैसे किया गया सर्वे?

इस सर्वे में कुल 12,166 लोगों को शामिल किया गया था. इसमें 69 फीसदी ग्रामीण और 31 फीसदी शहरी आबादी थी. इस सर्वे में आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल राज्यों को शामिल किया गया. मूड ऑफ द नेशन सर्वे में 28 दिसंबर 2018 से 8 जनवरी 2019 तक फील्ड वर्क किया गया.

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