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सोना-चांदी सहित 64 दिव्य औषधियों का शोधन कर बनाते हैं: पारद शिवलिंग

बरेली। यूं तो पारे की अपनी तासीर होती है कि वह ठहरता ही नही है लेकिन मांगरोल के प्रसिद्ध आश्रम में सोना-चांदी सहित चौंसठ दिव्य औषधियों के मिश्रण के बाद शोधन से यहां दुर्लभ पारद शिवलिंग तैयार किए जाते है।shivling_2016731_21483_31_07_2016

देश के कई शहरों से श्रद्धालु यहां पारे के शिवलिंग लेने के लिए पहुंचते है। ब्रम्हलीन बापोली वाले गुरूजी खुद पारद शिवलिंग बनाते थे उन्होंने अपने शिष्य ब्रह्मचारी महाराज को यह विद्या सिखाकर मांगरोल आश्रम में इसकी शुरूआत कराई थी।

ब्रम्हचारी जी द्वारा वर्षो से वैदिक क्रिया के साथ इसका निर्माण किया जा रहा है। हैदराबाद, जयपुर, केदारनाथ,धौलपुर, नागपुर, मुम्बई, वृंदावन, ऋषिकेष, कोल्हापुर, रामेश्वरम, पुरी, दिल्ली सहित कई बड़े शहरों से श्रद्धालु शिवलिंग लेने यहां आते है। 5 हजार से लेकर लाखों रूपए तक के शिवलिंग सोना-चांदी सहित 64 औषधियों की मात्रा के अनुसार तैयार होते है।

सरल नही है निर्माण

पारद का शोधन बहुत कठिन माना जाता है। इसे ठोस बनाने के लिए वैदिक क्रियाओं सहित 64 दिव्य औषधियों के मिश्रण उपरांत शोधन कर जटिल प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है तब जाकर पारा ठोस आकार ने पाता है।
 
ब्रम्हचारी महाराज ने बताया कि शिवलिंग बनाने में एक से दो माह तक का समय लग जाता है। निर्माण के बाद मांत्रिक क्रियाओं के द्वारा रससिद्धि एवं चैतन्य किया जाता है, तब जाकर शिवलिंग पूर्ण सक्षम एवं प्रभावयुक्त बनता है।
 
पारद शिवलिंग का महत्व
 
‘पारदेश्वर ग्रहे यत्र दुर्लभो जायते नर: धन धान्यं तथा स्वर्ण अटूटं
नात्रसंशय” कहा जाता है कि स्वर्णग्रास दिया हुआ श्रेष्ठ पारद् शिवलिंग किसी साधक को प्राप्त हो और यदि वह घर में स्थापित हो तो सौभाग्य मिलता है। पारद् शिवलिंग के उपासक विनोद तिवारी का कहना है कि यह दर्शन मात्र से ही मोक्ष का दाता है। पूजा गृह में इसके होने से सुयश, सम्मान मिलता है। घर में दरिद्रता नही रहती है।
 

 

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