बाल कृष्ण गुप्ता बताते हैं कि ट्रेन में कई लोगों को तेजधार हथियार से काट दिया गया। ट्रेन खून से लथपथ थी। किसी तरह कुछ लोगों को बचाकर फिरोजपुर छावनी रेलवे स्टेशन पहुंचे। जब भी उन्हें ये दिन याद आता है उनकी आंखों से आंसू छलक उठते हैं। बुजुर्ग किसान सोहन सिंह ने बताया कि सन 1947 के गदर में इसी ट्रैक पर दौड़ने वाली ट्रेन पर पाकिस्तान की तरफ से कटी हुई लाशें भारत आई थी।
बाल कृष्ण गुप्ता बताते हैं कि ट्रेन तो खून से लथपथ थी ही इस ट्रैक पर भी लोगों का खून बहा है। इसलिए यह ऐतिहासिक ट्रैक है। बहुत कम लोग जानते होंगे कि हुसैनीवाला स्थित समाधि स्थल 1960 से पहले पाकिस्तान के कब्जे में था। जन भावनाओं को देखते हुए 1950 में तीनों शहीदों की समाधि स्थल पाक से लेने की कवायद शुरू हुई। करीब 10 साल बाद फाजिल्का के 12 गांव व सुलेमान की हेड वर्क्स पाकिस्तान को देने के बाद शहीद त्रिमूर्ति से जुड़ा समाधि स्थल भारत को मिल गया।