स्वामी विवेकानंद भी कर आए थे अमरनाथ यात्रा, दर्शन के बाद उनका यह था कथन
नई दिल्ली: हिमालय के दुर्गम पर्वत श्रृंखलाओं के बीच स्थित भगवान शिव की ये गुफा भोले बाबा के अन्य पवित्र तीर्थ स्थानों में से एक है. हर साल श्रद्धालुओं का इतनी ऊंचाई पर अपने भगवान शिव के दर्शन को लेकर जोश देखते ही बनता है. तमाम कठिनाइयों, बाधाओं और ख़तरों के बावजूद मॉनसून के समय दो महीने चलने वाली यह पवित्र यात्रा एक बेहद सुखद एहसास होती है. यही वजह है कि साल-दर-साल यहां पहुंचने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या बढ़ती जा रही है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इतनी ऊंचाई पर स्थित इस गुफा का आखिर सबसे पहले पता किसको चला था, वो कौन था जिसने सबसे पहले यहां आकर इस गुफा के दर्शन किए होंगे. इस प्रश्न का उत्तर लोक मान्यताओं से मिलता है. ऐसा कहा जाता है कि इस गुफा की खोज एक भेड़ चराने वाले कश्मीरी मुसलमान ने की थी.
कहानी : एक मुसलमान ने खोजी गुफा
कश्मीर सहित पूरे भारत देश में अमरनाथ गुफा के बारे में जो कथा प्रचलित है उसके अनुसार बूटा मलिक ने ही इस गुफा की खोज की थी. कहा जाता है एक दिन वह भेड़ें चराते-चराते बहुत दूर निकल गया. बर्फीले वीरान इलाके में पहुंचकर उसकी एक साधु से मुलाकात हो गई. साधु ने बूटा मलिक को कोयले से भरी एक कांगड़ी (हाथ सेंकने वाली सिगड़ी) दी. बूटा मालिक ने घर पहुंचकर कोयले की जगह सोना पाया तो वह बहुत हैरानी में पड़ गया. उसने उसी वक्त वापस जा कर उस साधु का धन्यवाद करने के लिए सोचा परंतु वापस वहां उस साधु को न पाकर बूटा ने एक विशाल गुफा को देखा. बूटा जैसे ही उस गुफा के अंदर गया तो उसने बर्फ के बने शिवलिंग को देखा. इसके बाद उसने यह बात गांव के मुखिया को बताई और यह मामला वहां के तत्कालीन राजा के दरबार में जा पहुंचा. इसके बाद समय के साथ इस स्थान के महत्व के बारे में लोगों को मालूम चला और तेजी से यहां लोगों का आना शुरू हो गया. तब से यह स्थान एक तीर्थ बन गया.
एक दावा यह भी किया जाता है
कुछ इतिहासकारों की इस पर अलग राय है. उनके अनुसार बूटा मलिक मुस्लमान नहीं था. उनके अनुसार वह गुज्जर समाज का था. ये भी कहा जाता है कि इतनी ऊंचाई पर गड़रिया भेड़ चराने क्यों जाएगा, जहां ऑक्सीजन की कमी होती है. कुछ स्थानीय इतिहासकार यह भी मानते हैं कि 1869 के ग्रीष्मकाल में गुफा की फिर खोज की गई और पवित्र गुफा की पहली औपचारिक तीर्थयात्रा 3 साल बाद 1872 में आयोजित की गई थी और इस तीर्थयात्रा में बूटा मलिक भी साथ थे. लेकिन अमरनाथ यात्रा के बारे में जो साहित्य और जानकारी उपलब्ध है उसमें बूटा मलिक को मुसलमान बताया गया है. अमरनाथ गुफा की देखभाल जो परिवार करता है वह मुसलमान है और वह अपने आपको बूटा मलिक का वंशज बताता है.
कैसे जाते हैं इस यात्रा पर
अमरनाथ गुफा जाने के दो मार्ग हैं. पहला पहलगाम होकर और दूसरा सोनमर्ग बालटाल से होकर जाता है. जम्मू या श्रीनगर से पहलगाम या बालटाल बस या छोटे वाहन से पहुंचना पड़ता है. जिसके बाद आगे पैदल ही जाना पड़ता है. कमज़ोर और वृद्धों के लिए खच्चर और घोड़े की व्यवस्था रहती है. पवित्र गुफा श्रीनगर के उत्तर-पूर्व में 135 किलोमीटर दूर समुद्र तल से 13 हज़ार फ़ीट ऊंचाई पर है. पवित्र गुफा की लंबाई (भीतरी गहराई) 19 मीटर, चौड़ाई 16 मीटर और ऊंचाई 11 मीटर है. अमरनाथ की ख़ासियत पवित्र गुफा में बर्फ़ से नैसर्गिक शिवलिंग का बनना है. प्राकृतिक हिम से बनने के कारण ही इसे स्वयंभू ‘हिमानी शिवलिंग’ या ‘बर्फ़ानी बाबा’ भी कहा जाता है.
क़रीब 46 किलोमीटर पैदल चलना होता है
यह गुफा समुद्र तल से 3,888 मीटर यानी 12,756 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है. दक्षिण कश्मीर के पहलगाम से ये दूरी क़रीब 46 किलोमीटर की है, जिसे पैदल पूरा करना होता है. इसमें लगभग पांच दिन तक का वक्त लगता है. गुफा तक पहुचने का एक दूसरा रास्ता सोनमर्ग के बालटाल से भी है, जिससे अमरनाथ गुफा की दूरी महज 16 किलोमीटर है. लेकिन मुश्किल चढ़ाई होने के ये रास्ता बेहद कठिन माना जाता है. इतनी ऊंचाई पर लोगों को श्वास लेने में काफी परेशानी का सामना करना पडता है.
कबूतरों के जोड़े की कहानी
भगवान शिव के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक अमरनाथ को तीर्थों का तीर्थ कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस गुफा में शंकर ने पार्वती को अमरकथा सुनाई थी, जिसे कबूतरों के एक जोड़े ने सुन लिया था. गुफा में आज भी कबूतरों का एक जोड़ा दिखाई देता है, जिन्हें अमर पक्षी माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि जिन श्रद्धालुओं को कबूतरों का जोड़ा दिखाई देता है, उन्हें शिव-पार्वती दर्शन देते हैं और मोक्ष प्रदान करते हैं. यह भी माना जाता है कि भगवान शिव ने ‘अनीश्वर कथा’ पार्वती को गुफा में ही सुनाई थी. इसीलिए यह बहुत पवित्र मानी जाती है. शिव की यह कथा अमरकथा नाम से विख्यात हुई.
श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड की स्थापना
लोगों की बढ़ती भीड़ को देखकर सन् 2000 में श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड की भी स्थापना की गई थी. आषाढ़ पूर्णिमा से रक्षाबंधन तक होने वाले इस पवित्र शिवलिंग दर्शन के लिए लाखों श्रद्धालु अमरनाथ यात्रा पर जाते हैं. अमरनाथ गुफा में ऊपर से बर्फ के पानी की बूंदें टपकती रहती हैं. और यहीं पर ऐसी जगह है, जहां टपकने वाली हिम बूंदों से क़रीब दस फ़िट ऊंचा शिवलिंग बनता है. चंद्रमा के घटने-बढ़ने के साथ-साथ बर्फ़ के शिवलिंग का आकार भी घटता-बढ़ता रहता है. सावन की पूर्णिमा को यह पूर्ण आकार में हो जाता है और अमावस्या तक धीरे-धीरे छोटा हो जाता है. आश्चर्य की बात यह है कि यह शिवलिंग ठोस बर्फ़ का होता है, और जिसके आसपास कच्ची और भुरभुरी बर्फ़ ही होती है.
स्वामी विवेकानंद भी गए थे अमरनाथ यात्रा पर
स्वामी विवेकानंद ने जुलाई-अगस्त 1898 को अमरनाथ गुफा की यात्रा की थी और बाद में उन्होंने उल्लेख किया कि मैंने सोचा कि बर्फ का लिंग स्वयं शिव हैं. मैंने ऐसी सुन्दर, इतनी प्रेरणादायक कोई चीज नहीं देखी और न ही किसी धार्मिक स्थल का इतना आनंद लिया है.