अद्धयात्म

स्‍वाति नक्षत्र में शुक्र का प्रवेश होगा फलदायक

स्वाति नक्षत्र के बारे में सुना तो बहुत होगा, लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि 27 नक्षत्रों में स्वाति नक्षत्र का स्थान 15वां माना जाता है। शाब्दिक अर्थ में स्वाति को स्वत: आचरण करने वाला या स्वतंत्र कहा जाता है। जबकि शास्‍त्रों में स्वाति शब्द को स्वतंत्रता के साथ ही कोमलता और तलवार के साथ भी जोड़ा जाता है। हवा में हिंडोले की भांति झूलते छोटे पौधे को स्वाति नक्षत्र का प्रतीक चिन्ह माना गया है। यह प्रतीक चिन्ह भी स्वतंत्रता तथा आत्म-निर्भरता का पोषक है।

स्‍वाति नक्षत्र में शुक्र का प्रवेश होगा फलदायक

इस प्रकार प्रतीक रुप में भी स्वाति नक्षत्र का संबंध स्वतंत्रता, कोमलता, आत्म-निर्भरता और संघर्ष करने की क्षमता से जुड़ता है। वायु के देवता पवन देव को स्वाति नक्षत्र का अधिपति माना गया है। इसी प्रकार देवी सरस्वती को भी इसकी अधिष्ठात्री देवी कहा जाता है जिस कारण देवी सरस्वती का भी इस नक्षत्र पर प्रभाव रहता है। देवी सरस्वती को विद्या, ज्ञान, संगीत तथा वाणी की देवी माना जाता है। इस प्रकार वायु और देवी सरस्वती की विशेषताएं स्वाति नक्षत्र में नजर आती हैं। ऐसे स्वाति नक्षत्र में आज 8 नवंबर को शुक्र प्रवेश कर चुका है। ऐसे में विशेष बातें जो जानकार बताते हैं उनके अनुसार इसका स्वामी राहु है।

इस अवधि में खर्च की अधिकता रहेगी। शास्‍त्रों के अनुसार स्वाति नक्षत्र के सभी चार चरण तुला राशि में स्थित होते हैं इस कारण इस नक्षत्र पर तुला राशि तथा इस राशि के स्वामी ग्रह शुक्र का भी प्रभाव परिलक्षित होता है। नवग्रहों में से शुक्र को सुंदरता, सामाजिकता, भौतिकवाद, कूटनीति तथा आसक्ति आदि के साथ जोड़ा जाता है। अब चूंकि शुक्र की ये विशेषताएं स्वाति नक्षत्र में नजर आती हैं अत: इस नक्षत्र के जातक दिखावा करने में माहिर होते हैं। शुक्र और राहू दोनों ही ग्रह चरम भौतिकवाद से जुड़े हैं जिनमें दिखावा करने की प्रवृति चरम भौतिकवादी होने का संकेत ही देती है। स्वाति नक्षत्र में स्थित होने पर राहू तथा शुक्र काफी बलशाली हो जाते हैं क्योंकि दोनों का स्वभाव स्वाति नक्षत्र के स्वभाव से मेल खाता है। ऐसे में विशेष ध्यान देना चाहिए क्योंकि यह अत्यंत प्रभावी फलदायक होता है।

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