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हमारे पड़ोसी देश चीन के बारे में कितना जानते हैं आप?

भारत के इससे बड़े पड़ोसी के बारे में आप और हम कितना जानते हैं… शायद सिर्फ इतना कि चीन से हम एक युद्ध हार चुके हैं और ये हार आज भी हर भारतीय के ज़हन-ओ-दिल में बसी है… शायद इतना कि आज हमारे इस्तेमाल वाली ज़्यादातर चीज़ें चीन से ही बन कर आती हैं… या शायद इतना कि चीन भारत के बजाए पाकिस्तान को ज़्यादा तरजीह देता है… चीन से भारत का सीमा विवाद भी इसी थोड़ी-बहुत जानकारी में शामिल है… लेकिन चीन सिर्फ उतना भर ही है जितना खबरों से मिलता है… इस पर्दे के पीछे के पीछे आखिर चीन क्या है… कैसा है… वहां के लोग कैसे हैं… ये जानना एक अलग ही अनुभव है… यही अनुभव मैंने उठाने का फैसला लिया… और वो भी बीजिंग, हॉन्ग कॉन्ग या शंघाई जैसे मशहूर शहरों में नहीं… बल्कि हज़ारों साल तक चीन के करीब 13 वंश की राजधानी रहा सियान… इस यात्रा में बहुत कुछ सीखने को मिला… उतना जितना कोई इंटरनेट या किताब कभी नहीं सिखा सकता था… सियान की ये यात्रा मुझे अपने देश भारत के और करीब ले आई.

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हमारे पड़ोसी देश चीन के बारे में कितना जानते हैं आप?आम तौर पर जब हम चीन घूमने के बारे में सोचते हैं तो ग्रेट वॉल के बारे में सबसे पहले सोचते हैं… इसके अलावा हमें शंघाई-हॉन्ग कॉन्ग की बड़ी इमारतें… या कुछ लोगों को बड़ी बड़ी फैक्ट्रियां चीन के बारे में सोचते ही याद आ जाती हैं… लेकिन सियान इन सबसे अलग है… मानों बड़ी फैक्ट्रियों के पर्दे के पीछे छुपी है चीन की विरासत… ऐसा नहीं है कि यहां बड़ी इमारते हैं नहीं… लेकिन सियान शहर की आत्मा सदियों पुरानी इमारतों में हैं… वो इमारते जिसने सम्राटों को बनते बर्बाद होते देखा… चीन का स्वर्णिम काल देखा… चीन के पूर्वोत्तर में बसा सियान एक रेशमी धागे का छोर भी है… इस रेशमी धागे को सिल्क रोड कहा जाता है… चीन अपनी छवि बदलने के लिए बीजिंग के बजाए सियान को प्रमुखता से प्रदर्शित करने की कोशिश कर रहा है… यही वजह है जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन की यात्रा पर गए थे… उनका सियान में ही पारंपरिक स्वागत किया गया था… प्रधानमंत्री का स्वागत ऐतिहासिक था… ऐसा सम्मान किसी भी दूसरे राष्ट्राध्यक्ष को नहीं मिला है… चीन के प्रीमियर ( हमारे प्रधानमंत्री के समकक्ष) शी जिनपिन भी इसी शान्सी राज्य में बचपन गुज़ार चुके हैं जहां शियान मौजूद है.

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जिनपिन दुनिया के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक हैं… भारत के प्रधानमंत्री मोदी भी दुनिया की राजनीति में सबसे असरदार नेताओं में से एक माने जाते हैं… शायद इसीलिए शियान, जिनपिन और मोदी तीनों ही बेहद अहम हैं… बहरहाल बात शियान की… शियान जाना उन सभी अनुभवों से अलग है जैसा हम चीन के बारे में अनुमान लगा सकते हैं… लेकिन चीन पहुंचते ही जो बात सबसे पहले ज़हन में छप जाती है वो है चीन की खुद को एशिया में शक्ति के तौर पर पेश करने की कोशिश.

दिल्ली से शियान पहुंचने के लिए पहले शंघाई पहुंचना होता है… शंघाई से दूसरा जहाज़ करीब सवा 2 घंटे की उड़ान के बाद इस ऐतिहासिक शहर पहुंचा देता है… चीन की चाइना ईस्टर्न एयरलाइन की कतार में खड़ा हुआ तो देखा करीब करीब सभी भारतीय ही थे… पहले विचार यही आया कि मुझे बेकार ही लगता था कि चीन कम भारतीय घूमने जाते हैं… लेकिन एक दो लोगों से बात करने के बाद ही साफ हो गया कि चाइना ईस्टर्न एयरलाइन में इतने भारतीय क्यों थे… अमेरिका जाने के चीन का रास्ता सस्ता पड़ता है… इसलिए अमेरिका जाने वाले भारतीय चीन के रास्ते जाते हैं… इसके अलावा कई ऐसे ग्रुप भी नज़र आए जो बीजिंग जा रहे थे… लेकिन जाने वाले ज़्यादातर लोग बुज़ुर्ग थे… जो शंघाई के बाद बीजिंग जाने वाले थे… फ्लाइट में शियान जाने वाला मैं इकलौता भारतीय था… ये रोमांचित और थोड़ा नर्वस करने वाला अनुभव था… भाषा और खाना दो बड़ी बाधाएं सामने आने वाली थीं… लेकिन क्या ये बाधाएं उस कांच की दीवार की तरह होंगी जिसके पीछे चीन बंद नज़र आता है… शाकाहारी होने की वजह से ये बाधाएं और बड़ी होने वालीं थीं…शहर शंघाई है…

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दिल्ली का इंदिरा गांधी एयरपोर्ट बड़ा… और शाही है… जबकि शंघाई का पुडॉन्ग एयरपोर्ट बड़ा है… काफी बड़ा लेकिन दिल्ली की तरह उसमें शाही शान-औ-शौकत नज़र नहीं आती… असल में वो ज़्यादा देर रुकने के लिए है ही नहीं… एयरपोर्ट से ही जुड़ीं बस, टैक्सी, मैट्रो और मैगलेव सेवा… मैगलेव यानी मैग्नैटिक लेविटेशन पर चलने वाली ट्रेन… जिसकी रफ्तार 300 किलोमीटर प्रति घंटे से ज़्यादा रहती है… इस मैगलेव की टॉप स्पीड टेस्ट के दौरान 500 किलोमीटर प्रतिघंटा तक नापी गई है… अमूमन इसकी रफ्तार 300 किलोमीटर से ज़्यादा रखी जाती है… शंघाई के पुडॉन्ग एयरोपोर्ट से 30 किलोमीटर दूर लॉन्गयांग रोड तक की दूरी महज़ 8 मिनट में तय कर लेती है ( वीडियो देखें )

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