
नई दिल्ली : जीवन में दुःख-सुख जीवन का हिस्सा है, सफल जीवन हमेशा संघर्ष से निकली है। यज्ञ अनुष्ठान के अवसर आचार्य विक्रमादित्य ने कहा कि आसक्ति भाव से किए जाने वाले कर्म ही दुःख का कारण बनते हैं। दुख बाहर से नहीं भीतर से ही प्रकट होता है। समस्या बाहर नहीं भीतर ही है। संकट का समाधान हम स्वयं ढूंढ सकते हैं। पंडित भोलादत्त पांडेय बताते हैं कि भगवान के नाम का जप करना बहुत सरल काम है, अभ्यास करना आपके हाथ की बात है। जीभ से नाम का जप करें। सांस हर वक्त चलता ही रहता है, उसके द्वारा नाम जप करें।