हम 68वें गणतंत्र दिवस की ओर, मगर ये 5 कानून अंग्रेजों के जमाने के
68वां गणतंत्र दिवस मना रहे भारत में आज भी तमाम ऐसे कानून हैं, जो 100 वर्ष से भी ज्यादा पुराने हो चुके हैं। देखिए 5 ऐसे कानून…
संसदीय लोकतंत्र में कानून बनाने की जिम्मेदारी संसद के पास होती है। लेकिन जब बात पुराने जर्जर कानूनों को ख्ात्म करने की हो तो संसद भी समय की कमी का बहाना बनाकर अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ती दिखाती है।
भारतीय विधि आयोग समय-समय पर अपनी रिपोर्टों के जरिये सरकार को ऐसे कानूनों को खत्म करने की सलाह देता आया है, लेकिन हर बार सरकारी उदासीनता आड़े आ जाती है। आइए, इनमें से कुछ प्रमुख कानूनों पर नजर डालें।
आईपीसी भारत के भीतर (जम्मू और कश्मीर को छोड़कर) भारत के किसी भी नागरिक द्वारा किए गए अपराधों की परिभाषा और दंड का प्रावधान करती है। जम्मू और कश्मीर में इसे रणबीर दंड संहिता (आरपीसी) के नाम से जाना जाता है।
1862 में इसके लागू होने के बाद से समय-समय पर इसमें संशोधन किए गए हैं, लेकिन यह भी सच है कि वर्तमान परिस्थितियों से निपटने में ये काफी नहीं रहे हैं।
गौरतलब है कि यह पुलिस अधिनियम 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम के बाद लाया गया था। दरअसल ब्रिटिश सरकार को भारतीयों से ऐसे ऐतिहासिक विद्रोह की कतई उम्मीद नहीं थी।
ऐसे समय में अंग्रेजों ने 1861 का पुलिस एक्ट पारित किया। भविष्य में किसी भी तरह के विद्रोह को रोकना ही इस एक्ट का एकमात्र उद्देश्य था।
जाहिर है, इसमें तमाम ऐसे प्रावधान जोड़े गए जो पुलिस को दमन की अतिरिक्त ताकत देते हों। लेकिन आज ‘पुलिस राज्य’ की जगह ‘कल्याणकारी राज्य’ ने ले ली है। समय के साथ-साथ अपराधों की परिधि में विस्तार हुआ है।
संगठित अपराध पुलिस के सामने कई चुनौतियां पेश कर रहे हैं। पुलिस को मानवीय चेहरा देने की वकालत करने वाले तो तमाम हैं, लेकिन इसके लिए जरूरी राजनीति इच्छाशक्ति अब तक नहीं दिखी है।