हाईकोर्ट ने याद दिलाई ‘वसीयत’ तो होनहार को मिला एडमिशन
उसका एक -एक शब्द शिक्षा के प्रति उनके समर्पण को दर्शाता है। उनकी स्मृति आज भी ला मार्टिनियर जैसे संस्थान को जीवंत बनाए हुए है।
ऐसा प्रतिष्ठित संस्थान के प्रिंसिपल मैकफारलैंड की निष्ठा और कर्मठता पर तनिक भी संदेह नहीं किया जा सकता फिर भी एक साधारण सा मामला जो चुटकियों में हल हो सकता था अदालत की चौखट तक पहुंच गया।
यह बातें इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने वत्सल गुप्ता की याचिका पर फैसला देते हुए कहीं। तेरह साल तक ला मार्टिनियर में पढ़ाई करने वाले वत्सल को 11वीं में दाखिला नहीं दिया, इसके बाद उसने कोर्ट की शरण ली थी। हाईकोर्ट ने स्कूल को आदेश दिया है कि उसे क्लास 11 और 12 में इसी संस्थान में पढ़ाई करने की अनुमति दे।
निरंकुश राजशाही खत्म हो चुकी है और देश में अपने संविधान का शासन है। स्कूल के प्रिंसिपल को विद्यार्थी का प्रवेश नहीं देने का पूरा अधिकार है, लेकिन उसके लिए वाजिब वजह देनी होगी।
वत्सल के मामले में स्कूल ने उसकी कमियों पर एक भी शब्द नहीं कहा है, केवल उसके पिता के शिकायती व्यवहार के आधार पर दाखिले से इन्कार किया है।
अदालत ने कहा कि ला मार्टिनियर द्वारा जारी प्रवेश नियमों के अनुसार सत्र 2015-17 की कक्षा 11 व 12 में एडमिशन के लिए कॉलेज के स्टूडेंट्स से ही आवेदन मांगे गए थे।
ऐसे में एक होनहार छात्र को एडमिशन देने से मना नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वे मामले से जुड़े तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए अपने असाधारण अधिकार का उपयोग कर यह निर्णय दे रहे हैं, इसलिए इस निर्णय को स्कूलों में एडमीशन से जुड़े मामलों में कानून ही न मान लिया जाए।
कॉलेज की सह-शैक्षिक गतिविधियों में वत्सल के भाग लेने पर पिता के ऐतराज को इसकी वजह बताया गया। स्कूल के अनुसार ये गतिविधियां बच्चे के पूर्ण विकास के लिए जरूरी हैं।
एडमिशन नहीं मिलने पर वत्सल ने जिलाधिकारी से हस्तक्षेप का अनुरोध किया, जिन्होंने शिकायत की जांच करवाई और उसे सही पाया। इस पर स्कूल से जवाब मांगा गया, तो प्रिंसीपल ने जवाब में कहा कि स्कूल को अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त है और क्लास 11 में एडमिशन उनके विवेक से ही दिया जाता है।
इसके बाद वत्सल ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की, लेकिन 16 अक्टूबर को जस्टिस रंजन रॉय की एकल पीठ ने याचिका खारिज कर दी थी। इस पर वत्सल ने बेंच के समक्ष विशेष अपील दाखिल की थी।फ्रांसीसी सेना अधिकारी रहे क्लॉड मार्टिन 1735 में फ्रांस के लियन शहर में जन्मे और 13 सितंबर 1800 में लखनऊ में उनका निधन हुआ।
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में मेजर जनरल के पद तक पहुंचे मार्टिन 1776 में अवध के नवाब आसफुद्दौला के शस्त्रागार अधीक्षक के तौर पर नियुक्ति पाकर लखनऊ आए और यहीं रिटायर हुए।
कई क्षेत्रों के साथ साथ उनकी शिक्षा में रुचि थी, जिसके चलते उन्होने कोलकाता, लखनऊ और लियन में ला मार्टिनियर कॉलेज नाम से शिक्षण संस्थाएं शुरू कीं।
सशर्त है एडमिशन
– एडमिशन नहीं मिलने से अगर उसकी अटेंडेंस कम हो गई हैं तो संस्थान का बोर्ड उसे छूट दे । उसे परीक्षा में शामिल होने से न रोका जाए।
– स्कूल के बोर्ड को कहा गया कि वे वत्सल को अपने स्कूल में क्लास 11 व 12 में पढ़ने और परीक्षाएं देने के लिए व्यापक निर्देश जारी करें।
– वत्सल को हिदायत दी गई है कि वह एडमिशन के बाद कोई भी मिस-कंडक्ट नहीं करेगा।
– वत्सल को अपनी फीस या अन्य किसी बकाए का भुगतान स्कूल के नियमों मुताबिक करना होगा। उसे बैंक ड्राफ्ट के जरिए एक लाख रुपये स्कूल में जमा करवाने होंगे, जिससे फीस व बकाया राशि का भुगतान होगा।
– वत्सल के पिता स्कूल द्वारा ली जाने वाली फीस पर विरोध न करें।
– स्कूल के प्रिंसीपल को यह स्वतंत्रता होगी कि अगर याचिकाकर्ता के अभिभावक कोई आपत्तिजनक गतिविधि में शामिल पाए जाते हैं तो वे जरूरी कार्रवाई कर सकते हैं और हाईकोर्ट से इस संबंध में आदेश ले सकते हैं।