हाई कोर्ट के आदेश के बाद बेंगलुरु पुलिस के बंधे हाथ, अब मीडिया को नहीं बताएगी आरोपियों के नाम
बेंगलुरु पुलिस की सेंट्रल क्राइम ब्रांच यूनिट ने 23 जून को आईटी क्षेत्र में युवाओं को ड्रग्स बेचने में कथित रूप से शामिल पांच लोगों की गिरफ्तारी और एमडीएमए, एलएसडी और हशीश के 30 लाख रुपए की जब्ती पर एक प्रेस रिलीज जारी की. प्रेस रिलीज में गिरफ्तार लोगों का नाम नहीं थे. अगले दिन पुलिस ने दो कैमरूनियों की गिरफ्तारी पर एक प्रेस रिलीज जारी की, जो कथित तौर पर नकली विदेशी मुद्रा में काम कर रहे थे और वीजा खत्म होने के बाद भी भारत में अधिक समय तक रह रहे थे. एक बार फिर से प्रेस रिलीज में गिरफ्तार व्यक्तियों का नाम नहीं था.
पिछले दो हफ्तों से बेंगलुरु पुलिस ने कर्नाटक हाई कोर्ट के 15 जून के आदेश के कारण प्रेस रिलीज से गिरफ्तार व्यक्तियों के नाम और उनके फोटो को ब्लर करना शुरू कर दिया है. दरअसल कर्नाटक हाई कोर्ट ने पुलिस को मीडिया के सामने संदिग्धों की पहचान रोकने का निर्देश दिया है. वकील एच नागभूषण राव की तरफ से दायर एक याचिका की सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने कहा था कि पुलिस को जांच पूरी होने से पहले मामलों के बारे में नहीं बताना चाहिए और राज्य सरकार से इस बारे में निर्देश जारी करने के लिए कहा.
हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस अभय श्रीनिवास ओका की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि हमारा विचार है कि जांच पूरी होने से पहले ये सुनिश्चित करने के लिए पुलिस को बहुत व्यापक निर्देश जारी करने की आवश्यकता है कि वो जांच के दौरान एकत्र की गई सामग्री आदि का खुलासा न करें. बेंच ने कहा कि दूसरा निर्देश शिकायतकर्ता और आरोपी की पहचान जाहिर करने पर रोक के संबंध में होगा.
साथ ही कहा कि निर्देशों के उल्लंघन के लिए पुलिस अधिकारियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई लागू करनी होगी. राज्य सरकार को चार हफ्तों में निर्देशों को लागू करने के लिए कहा गया है. अपनी रिट याचिका में जिसमें 11 कन्नड़ टेलीविजन चैनलों और सूचना और प्रसारण मंत्रालय को प्रतिवादी के रूप में नामित किया गया है, नागभूषण राव ने कहा कि पुलिस जांच पूरी होने से पहले मामलों के बारे में बता रही है, जिससे अदालतों में न्याय की प्रक्रिया बाधित होगी.