हार्ट वाल्व में खराबी आना देश की प्रमुख समस्या
-पैर में छोटा सा चीरा लगाकर किया जा सकेगा ठीक
नई दिल्ली : हार्ट वाल्व में खराबी आना जैसी समस्या भारत में प्रमुख समस्याओं में से एक है। दरअसल, हार्ट वाल्व में विकार आने का कारण र्यूमैटिक हार्ट डिजीज(आरएचडी) का जारी रहना है। आरएचडी गले में स्ट्रेप्टोकोकस नामक बैक्टीरिया के इंफेक्शन के कारण पैदा होता है। आमतौर पर र्यूमैटिक हार्ट डिजीज बच्चों और किशोरों को होती है, खासतौर पर निम्न आयवर्ग के। जो लोग बहुत ज्यादा भीड़भाड़ वाले एरिया में रहते हैं उन्हें भी र्यूमैटिक हार्ट डिजीज होने का खतरा बढ़ जाता है। यही कारण है कि भारत में आज भी ये बीमारी बड़े स्तर पर देखी जा सकती है। हर इंसान के हार्ट में चार तरह के वाल्व होते हैं। जो कि ब्लड के हार्ट की ओर जाने पर खुलते और विपरीत दिशा में जाने पर बंद हो जाते हैं। हाल ही में यशोदा हॉस्पिटल में आयोजित एक कार्यक्रम के तहत डॉ। मिरोस्लाव फेरेंस जो कि यूनिवर्सिटी हार्ट सेण्टर बड करोजिंगें, जर्मनी, यूरोप के हेड ऑफ़ इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी डिपार्टमेंट हैं, का कहना है कि जल्द ही अब हार्ट वाल्व को बिना चीरफाड़ किए पैर में छोटा सा चीरा लगाकर ठीक किया जा सकेगा। इस प्रक्रिया को टावी कहा जाता है।
जर्मनी के जाने माने हार्ट स्पेशलिस्ट डॉ मिरोस्लाव फेरेंसका कहना है कि टावी प्रक्रिया उन मरीजों के लिए बहुत कारगर है जो ओपन हार्ट सर्जरी द्वारा अपने हार्ट का वाल्व चेंज नहीं करवा सकते। डॉ। फेरेंस का कहना है कि भारत में ह्रदय रोगों का विस्फोट हो चुका है और भारत के लोगों में पाया जाने वाला ह्रदय रोग जर्मनी की तुलना में बहुत घातक है। यशोदा हॉस्पिटल एवं रिसर्च सेंटर, नेहरू नगर, गाजियाबाद के इंटरवेंशनल कार्डियोलोजिस्ट डॉ। रजत अरोड़ा के अनुसार, टावी तकनीक बहुत ही कारगर है। डॉ। फेरेंस ने बताया कि जर्मनी के लोगों में ह्रदय की नसों में मामूली या एक ही नली में छोटी रुकावट पायी जाती है जबकि भारतीयों में यह रूकावट अमूमन जब पकड़ी जाती है तो 2-3 नलियों में रुकावट होती है। कई जगह होती है, इस प्रकार की रुकावटों को एंजियोप्लास्टी के माध्यम से खोलने के लिए हाई टेक्नीक जैसे कि आइवस, जिसमें अल्ट्रासाउंड के माध्यम से ब्लॉकेज के प्रकार की जांच की जाती है और ओसीटी,जिसमें कम्प्यूटराइज़्ड टोमोग्राफी के माध्यम से ब्लॉकेज के प्रकार की जांच की जाती है।