दस्तक-विशेषस्तम्भ

हिरोशिमा दिवस : परमाणु हमले में मारे गये लोगों को श्रद्धांजलि!

धरती को परमाणु शस्त्रों तथा वीटो पाॅवर से मुक्त कराने के लिये लोकतांत्रिक विश्व व्यवस्था (विश्व संसद) के गठन की शीघ्र आवश्यकता
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान के हिरोशिमा तथा नागाशाकी शहरों पर 6 और 9 अगस्त 1945 को हुए परमाणु हमले से पूरी दुनिया दहल गई थी। इस हमले की प्रतिवर्ष आयोजित वर्षगांठ के मौके पर पूरे जापान सहित विश्व भर की आंखें नम हो जाती है। जापान के पीस मैमोरियल पार्क, हिरोशिमा में हजारों की तादात में प्रतिवर्ष 6 अगस्त को लोग एकत्रित होते हैं और हिरोशिमा और नागासाकी हमले में मारे गए अपने प्रियजनों को बड़े ही भारी मन से मार्मिक श्रद्धांजलि देते हैं। विश्व भर में इस हमले को 20वीं सदी की सबसे बड़ी घटना बताते हुए दुख जताया जाता है। जापान में 6 अगस्त को शांति दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इस उम्मीद में यह आयोजन होता है कि दुनिया में अब कभी इन हथियारों का इस्तेमाल नहीं होगा।
20वीं सदी की इस सबसे बड़ी दर्दनाक घटना का अपराधी अमेरिका था, और उसके तत्कालीन राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने यह कहकर इस विनाशलीला का बचाव किया था कि मानव इतिहास की सबसे खूनी द्वितीय विश्व युद्ध को खत्म कराने के लिए ऐसा करना जरूरी था। हमले के 16 घंटे के बाद राष्ट्रपति ट्रूमैन ने जब घोषणा की, तब पहली बार जापान को पता लगा कि हिरोशिमा में हुआ क्या है? राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन के शब्द थे, 16 घंटे पहले एक अमेरिकी विमान ने हिरोशिमा पर एक बम गिराया है। यह परमाणु बम है। हम और भी अधिक तेजी से जापान को मिटाने और उसकी हर ताकत को नेस्तनाबूद करने के लिए तैयार हैं। अगर वह हमारी शर्तों को नहीं मानता, तो बर्बादी की ऐसी बारिश के लिए उसे तैयार रहना चाहिए, जैसा इस पृथ्वी ने पहले कभी नहीं देखा है।
अमेरिका ने हिरोशिमा और नागासाकी पर हमला कर जापान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। दो दिनों के अंतराल पर हुए इन हमलों से बसे बसाए दो शहर पूरी तरह शमशान में तब्दील हो गए थे। हिरोशिमा पर हुए हमले में एक करीब 1,50,000 हजार लोगों की मौत हुई थी जबकि नागासाकी पर हुए हमले में करीब 80,000 लोग मारे गए थे। अमेरिका के इन दो हमलों ने द्वितीय विश्व युद्ध की सूरत बदल कर रख दी थी। हमले के बाद जापान ने तुरंत सीजफायर का ऐलान कर घुटने टेक दिए। अमेरिका द्वारा किए गए यह दोनों हमले ऐसी जगह किए गए थे जहां न तो कोई बड़ा सैन्य अड्डा था न ही वहां कोई बड़ी सैन्य गतिविधि चल रही थी। यह इलाके पूरी तरह से रिहायशी थे।
आंकड़ों के मुताबिक हिरोशिमा पर हुए परमाणु हमले में करीब साठ प्रतिशत लोगों की मौत तुरंत हो गई थी, जबकि करीब तीस प्रतिशत लोगों की मौत अगले एक माह के अंदर भयंकर जख्मों के बाद हुई। इसके अलावा करीब दस फीसद लोग यहां पर मलबे में दबने और अन्य कारणों से मारे गए थे। इस हमले से पहले द्वितीय विश्व युद्ध में जापान का पलड़ा भारी था और वह अन्य देशों पर हावी होने में कामयाब भी हो रहा था। लेकिन हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए हमलों ने जापान की कमर तोड़कर रख दी।
स्टाॅकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार वर्तमान में विश्व के नौ देशों ने ऐसे परमाणु हथियार विकसित कर लिए हैं जिनसे मिनटों में यह दुनिया खत्म हो जाए। ये नौ देश हैं- अमेरिका (7,300), रूस (8,000), ब्रिटेन (225), फ्रांस (300), चीन (250), भारत (110), पाकिस्तान (120), इजरायल (80) और उत्तर कोरिया (60)। इन 9 देशों के पास कुल मिलाकर 16,445 परमाणु हथियार हैं। बेशक स्टार्ट समझौते के तहत रूस और अमेरिका ने अपने भंडार घटाए हैं, मगर तैयार परमाणु हथियारों का 93 फीसदी जखीरा आज भी इन्हीं दोनों देशों के पास है।
द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषका से व्याकुल होकर तथा विश्व शान्ति स्थापित करने के लिए अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री फ्रैन्कलिन रूजवेल्ट ने अप्रैल 1945 को अमेरिका के सैन फ्रैंसिस्को में विश्व के नेताओं की एक बैठक बुलाई थी उनकी विश्व शान्ति की इस पहल से 24 अक्टूबर, 1945 को शान्ति की सबसे बड़ी संस्था ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ (यू.एन.ओ.) की स्थापना हुई। प्रारम्भ में केवल 51 देशों ने ही संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर हस्ताक्षर किये थे। आज 193 देश इसके पूर्ण सदस्य हैं व 2 देश संयुक्त राष्ट्र संघ (यू.एन.ओ.) के अवलोकन देश (आॅबजर्बर) हैं।
अमेरिकी के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री बराक ओबामा ने 27 मई 2016 को जापान की ऐतिहासिक यात्रा के दौरान हिरोशिमा परमाणु हमले के पीड़ितों को जापान के हिरोशिमा में स्थित पीस मैमोरियल पार्क में जाकर श्रद्धांजलि दी। हिरोशिमा में दुनिया के पहले परमाणु हमले के करीब 71 साल बाद पहली बार किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने उस स्थल का दौरा किया। इस दौरान ओबामा ने कहा कि 71 साल पहले आसमान से मौत गिरी थी और दुनिया बदल गई थी। श्री बराक ओबामा के बयानों में हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु बम हमलों के लिए दुख और पछतावा दिखा।
अहिंसा के प्रबल समर्थक महात्मा गांधी का मानना था कि विश्व में वास्तविक शांति लाने के लिए बच्चे ही सबसे सशक्त माध्यम हैं। उनका कहना था कि ‘‘यदि हम इस विश्व को वास्तविक शान्ति की सीख देना चाहते हैं और यदि हम युद्ध के विरूद्ध वास्तविक युद्ध छेड़ना चाहते हैं, तो इसकी शुरूआत हमें बच्चों से करनी होगी।’’ यदि महात्मा गाँधी इस युग में जीते होते तो वह हमारे विश्व को गरीबी, अशिक्षा, आतंक, एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र को परमाणु शस्त्रों के प्रयोग की धमकियों तथा विश्व के ढाई अरब बच्चों के सुरक्षित भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए जुझ रहे होते। महात्मा गांधी के जन्मदिवस 2 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र संघ की घोषणा के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में सारे विश्व में मनाया जाता है।
दक्षिण अफ्रीका को ब्रिटिश शासन की गुलामी से मुक्त कराने वाले नेल्सन मंडेला महान इंसान थे। मंडेला को शांति के लिए नोबल पुरस्कार, भारत रत्न जैसे कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया था। उन्हें ये सम्मान शांति स्थापना, रंगभेद उन्मूलन, मानवाधिकारों की रक्षा और लैंगिक समानता की स्थापना के लिये दिये गए थे। वो ऐसे इंसान थे जिनका जन्मदिन संयुक्त राष्ट्र संघ की घोषणा के अनुसार नेल्सन मंडेला इंटरनेशनल डे के रूप में उनके जीवनकाल में ही मनाया जाने लगा था। नेल्सन मंडेला ने एक ऐसे लोकतांत्रिक और स्वतंत्र समाज की कल्पना की थी जहाँ सभी लोग शांति से मिलजुल कर रहे और सभी को समान अवसर मिले। उन्होंने कहा था कि शिक्षा ही सबसे शक्तिशाली हथियार है जिससे विश्व को बदला जा सकता है।

वर्ष 2001 से प्रतिवर्ष लखनऊ में आयोजित होने वाले भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 पर आधारित विश्व के मुख्य न्यायाधीशों के अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन के संयोजक एवं विश्व एकता की शिक्षा के प्रबल समर्थक शिक्षाविद् डा. जगदीश गांधी का मानना है कि युद्ध के विचार मानव मस्तिष्क में पैदा होते हैं। इसलिए मानव मस्तिष्क में ही शान्ति के विचार डालने होंगे। मनुष्य को विचारवान बनाने की श्रेष्ठ अवस्था बचपन है। संसार के प्रत्येक बालक को विश्व एकता एवं विश्व शांति की शिक्षा बचपन से अनिवार्य रूप से दी जानी चाहिए।
डाॅ. गाँधी के संयोजन में विश्व के मुख्य न्यायाधीशों के अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में अब तक 133 देशों के 1222 मुख्य न्यायाधीश, न्यायाधीश, हेड आॅफ दि स्टेट/गवर्नमेन्ट, संसद के स्पीकरों ने प्रतिभाग किया। इन सम्मेलनों में मुख्य न्यायाधीशों, न्यायाधीशों, कानूनविदों् एवं शांति प्रचारकों ने प्रतिभाग करके विश्व संसद, विश्व सरकार तथा वल्र्ड कोर्ट आॅफ जस्टिस के गठन को अपना सर्वसम्मति से समर्थन दिया है। विगत 19 वर्षों की भांति ही इस वर्ष भी भारत के साथ ही विश्व के 2.5 अरब बच्चों के भविष्य को सुरक्षित बनाने के उद्देश्य से सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ द्वारा विश्व के मुख्य न्यायाधीशों का 20वां अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन 8 से 12 नवम्बर, 2019 तक लखनऊ में आयोजित किया जा रहा है।
इण्टरनेशनल कोर्ट आॅफ जस्ट्सि, हेग के पूर्व वाइस प्रेसीडेन्ट न्यायमूर्ति सी.जी. वीरामंत्री, श्रीलंका जो दुनिया में प्रख्यात न्यायाविदों में गिने जाते हैं, परमाणु निरस्त्रीकरण अभियान की अगुवाई कर रहे हैं। उनका तर्क है कि परमाणु हथियार अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून व तमाम धर्मों के सिद्धांतों के खिलाफ है। वाकई, बौद्ध, ईसाई, हिंदू या इस्लामी धर्मग्रंथों में जन-संहारक हथियारों का विरोध किया गया है।
हिरोशिमा दिवस पर ‘भारतीय उपमहाद्वीप में परमाणु युद्ध का खतरा’ विषय पर एक सेमिनार एप्सो और बिहार इप्टा द्वारा पटना में 6 अगस्त 2018 को आयोजित किया गया। जिसमें मशहूर शायर, वैज्ञानिक और फिल्मकार श्री गौहर रजा ने कहा, ‘अगर दो देशों के बीच जंग होती है और वह भी एटमी, तो कोई भी नहीं बचेगा। अब तो न्यूट्रान बम आ गये हैं, जो इंसान के द्वारा बनाई गई सबसे डरावनी और घिनौनी चीज है। हमारी जिम्मेदारी है कि हम दुनिया और देश में पैदा किये जाने वाले हर एक बम का विरोध करें। क्योंकि बम का होना ही इंसानियत के विरूद्ध है और यह हमें सदैव खतरनाक स्थिति में रखता है।
21वीं सदी के आपसी परामर्श के युग में विश्व का संचालन परमाणु शस्त्रों की होड़ से नहीं किया जाना चाहिए वरन् प्रभावशाली अन्तर्राष्ट्रीय कानून से होना चाहिए। परमाणु बमों की होड़ के दुष्परिणाम के कारण आज धरती माता बारूद के ढेर पर बैठी है। संसार भर में जनता का टैक्स का पैसा वेलफेयर (जन कल्याण) में लगने की बजाय वाॅरफेयर (युद्ध की तैयारी) में लग रहा है। शक्तिशाली देशों की देखादेखी विश्व के अत्यधिक गरीब देश भी अपनी जनता की बुनियादी आवश्यकताओं रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा तथा स्वास्थ्य की सुविधायें उपलब्ध करने की बजाय अपने रक्षा बजट प्रतिवर्ष बढ़ा रहे हैं। वर्तमान में विश्व भर में अधिकांश देशों में देश स्तर पर तो लोकतंत्र तथा कानून का राज है लेकिन विश्व स्तर पर लोकतंत्र न होने के कारण जंगल राज है।
हमारा मानना है कि जगत गुरू भारत ही अपनी संस्कृति, सभ्यता तथा संविधान के बलबुते सारे विश्व को बचा सकता है। इसके लिए हमें प्रत्येक बच्चे के मस्तिष्क में बचपन से ही ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की महान संस्कृति डालने के साथ ही उन्हें यह शिक्षा देनी होगी कि हम सब एक ही परमपिता परमात्मा की संतानें हैं और हमारा धर्म है – सारी मानवजाति की भलाई। मानव जाति को अब संकल्प लेना चाहिए कि प्रथम तथा द्वितीय विश्व युद्धों, दो देशों के बीच होने वाले अनेक युद्धों तथा हिरोशिमा और नागासाकी जैसी दुखदायी घटनाएं दोहराई नहीं जायेगी।
द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषका से घबराकर 24 अक्टूबर 1945 को विश्व की शान्ति की सबसे बड़ी संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई थी। संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के समय ही अलोकतांत्रिक तरीके से सबसे ज्यादा परमाणु हथियारों से लेश अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन तथा फ्रान्स को वीटो पाॅवर (विशेषाधिकार) दे दिया गया। इन पांच देशों द्वारा अपनी मर्जी के अनुसार विश्व को चलाया जा रहा है। विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक तथा युवा भारत को अब वीटो पाॅवररहित एक लोकतांत्रिक विश्व व्यवस्था (विश्व संसद) के गठन की पहल पूरी दृढ़ता के साथ करना चाहिए। विश्व स्तर पर लोकतंत्र तथा कानून के राज को लाने के इस बड़े दायित्व को हमें समय रहते निभाना चाहिए।
लखनऊ से प्रदीप कुमार सिंह
(6 अगस्त : हिरोशिमा दिवस पर विशेष)

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