हे राम! ऐसी तो ना थी तुम्हारी अयोध्या
हर साल 6 दिसंबर को बीएसएफ और आरएएफ के जवानों से लैस हो जाने वाली अयोध्या के नगरीय जीवन की शुरूआत ही बैरिकेडिंग से होती है। नया घाट चौराहे से शुरू होने वाली अयोध्या नगरी, मंदिरों के बाद असल मायने में अपनी सकरी गलियों और उनकी पटरियों पर लगी दुकानों से ही सजती है। हर गली में एक मंदिर और उसका इतिहास ये बयां करने को काफी है कि अयोध्या कोई छोटी-मोटी जगह नहीं है।
प्रायः राम जन्मभूमि विवाद के लिए जानी जाने वाली अयोध्या केवल राम के उस विवादित मंदिर तक ही सीमित नहीं हैं। बीते कई सालों में हमने कई ऐसी खबरें पढ़ी, सुनी और देखी होंगी जो अयोध्या को केवल विवाद तक ही सीमित रखती हैं, जिनका केंद्र केवल वह विवादित जगह ही होती है। अयोध्या में हजारों की संख्या में और भी मंदिर हैं जो वहां के साधु महंतो की गिरफ्त में आकर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में बर्बादी की कगार पर हैं या फिर सरकारी अव्यवस्था का शिकार, लेकिन सबका ध्यान केवल राम मंदिर पर लगा है।
जब भी कोई पर्यटक या श्रद्धालु अयोध्या की ओर अपनी नजरें उठाता है तो उसे सिर्फ हनुमान गढ़ी और फिर राम जन्म भूमि ही नजर आता है। केवल श्रद्धालु ही क्यों, देश की राजनीति भी जब अयोध्या की ओर अपनी घूरती निगाह घुमाती है तो सिर्फ राम जन्मभूमि और उससे जुड़ा विवाद ही नजर आता है। हर कोई सिर्फ राम मंदिर के निर्माण और उद्धार की बाते ही कर रहा है लेकिन किसी ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया कि अयोध्या में और भी ऐसे कई मंदिर हैं जिनको राम मंदिर के निर्माण से पहले मरम्मत की दरकार है।
दशरथ महल, कनक भवन, सीता महल सरीखे कई ऐसे प्राचीन धरोहरें जो अयोध्या का इतिहास बयां करती हैं। चंद मंदिरों को छोड़ दें तो सबके हालात खराब ही हैं। यहां मुख्य प्रश्न यह है कि क्या अयोध्या केवल वोट और राजनीति के लिए ही उपयोग की जाएगी? जिन कथित साधु, महंतों, दलों और नेताओं को राम मंदिर और उसके निर्माण की चिंता है, उन्हें केवल राम मंदिर की ही चिंता क्यों है? माना कि उससे लोगों की आस्था जुड़ी है लेकिन आस्था क्यों इतिहास पर हावी हो जाने को आतुर है?
क्या हमारे आस्था के कथित ठेकेदारों को भरत कुण्ड, लक्ष्मण घाट, चतुर्भुजी मंदिर, शेषनाग मंदिर, नागेश्वर नाथ मंदिर के खस्ता हाल पर ध्यान नहीं देना चाहिए या उन पर इसलिए ध्यान नहीं दिया जा रहा क्योंकि वे वोट और राजनीति करने का माध्यम नहीं है?
जीर्ण शीर्ण हो चुके मंदिरों पर किसी का ध्यान नहीं जाता, उनका ध्यान भी नहीं जाता जो खुद को बहुत ‘प्रोग्रेसिव’ मानते हैं। अयोध्या में राम मंदिर लोगों के दिलो- दिमाग पर इस तरह से हावी है कि किसी को बजबजाती नालियां और टूटी फूटी सड़कें दिखाई ही नहीं देतीं। अयोध्या में मंदिर के नाम पर खंडहर मौजूद हैं और कुण्ड के नाम पर नाले या तालाब होते जा रहे हैं या फिर उन पर जमीन की दलाली करने वालों का कब्जा होता जा रहा है।
स्थानीय लोग इस ओर इसलिए ध्यान नहीं देते क्योंकि उनकी निगाह सरकार की ओर है और आस्था के ठेकेदारों को राम की और ढेर सारी निशानियों को बचाने का खास शौक नहीं है। उत्तर प्रदेश में 1992 के बाद जो भी सरकार आई उसने भी अयोध्या के विकास पर कोई खास ध्यान न देते हुए केवल विवादित राम मंदिर को ही अपने केंद्र बिंदू में रखा। सवाल धर्म के उन ठेकेदारों से है जिन्हें राम की केवल एक ही निशानी ही क्यों नजर आती है?