‘हैदराबाद से जेएनयू तक सरकार की गलतियां’
दिल्ली में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में अफजल गुरू की बरसी के मौके पर हुई विरोध सभा के मुद्दे पर कुछ छात्रों के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कराया गया है। देशद्रोह “वह अपराध है जिसके तहत कुछ कहने, लिखने और कुछ अन्य काम करने से सरकार की अवज्ञा करने को प्रोत्साहन मिलता है।’’पूर्वी दिल्ली से भारतीय जनता पार्टी के सांसद महेश गिरी ने इस मामले में एफआईआर दर्ज कराई है। उन्होंने अपनी लिखित शिकायत में इन छात्रों को संविधान विरोधी और देशद्रोही तत्व कहा है।
गिरी ने गृह मंत्री राजनाथ सिंह और मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी को भी खत लिखकर, “इस तरह के शर्मनाक और भारत विरोधी गतिविधियों के दोबारा नहीं होने देने के लिए अभियुक्तों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की अपील की थी।” यह हैदराबाद में हुई घटना को दुहराने जैसा लग रहा है, जहां बीजेपी ने याकूब मेमन की फांसी के खिलाफ छात्रों के विरोध प्रदर्शन पर सख्त कार्रवाई की थी। इस मामले का दुखद पहलू ये रहा है कि एक छात्र ने आत्महत्या कर ली।
छात्रों पर आरोप लगाने के बदले, उसे इस मुद्दे को समझने की कोशिश करनी चाहिए, जो सीधे जाति से जुड़ा पहलू है। हैदराबाद में याकूब मेमन की फांसी के खिलाफ दलित क्यों विरोध प्रदर्शन कर रहे थे? जेएनयू में मुस्लिमों पर इतना ध्यान क्यों है? जब भी किसी कमेटी से जांच कराने की बात होती है तो छात्र हाशिए पर रहे समुदायों के प्रतिनिधियों की बात क्यों करते हैं? हकीकत यही है कि भारत में दलितों और मुस्लिमों को ही सबसे ज्यादा फांसी की सजा दी गई है।
नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी से प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, मृत्युदंड पाने वालों में कुल 75 फीसदी और चरमपंथ को लेकर दी गई फांसी में 93।5 फीसदी सजा दलितों और मुस्लिमों को मिली है। ऐसे में पक्षपात का मुद्दा उभरता है। मालेगांव धमाकों का उदाहरण देते हुए कुछ लोग यह आरोप लगाते हैं कि अगर चरमपंथी गतिविधियों में सवर्ण हिंदुओं के शामिल होने का मामला हो तो सरकार सख्ती नहीं दिखाती है।
दलित और मुस्लिम गरीब लोग हैं। अदालत में सुनवाई के दौरान अफजल गुरु को लगभग नहीं के बराबर कानूनी प्रतिनिधित्व मिल पाया था। इन वास्तविकताओं को देखते हुए, इसमें बहुत अचरज नहीं होना चाहिए कि दलित, मुस्लिम और उनके समर्थक सरकार का विरोध कर रहे हैं। उन्हें नाराज होने का पूरा हक है। सवर्ण इस बात पर जोर दे रहे हैं कि हर भारतीय को इस भ्रम में जीना चाहिए कि हम एक पूर्ण समाज हैं और हर किसी को इसके सामने झुकना चाहिए।
हिंदुत्व मध्यम वर्ग और उच्च वर्गों के लिए मसला है। यह आरक्षण से घृणा करता है क्योंकि उसे लगता है कि यह उनको मिल रही सुविधाओं में अतिक्रमण है। यही वजह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आरक्षण को पसंद नहीं करता और इस मुद्दे पर संघ के बयानों के चलते चुनावों में बीजेपी मुश्किल में आई थी। प्रधानमंत्री की प्रतिक्रिया भी विपक्ष पर झूठ गढ़ने का आरोप रहा है। लेकिन जमीनी सच्चाई बिलकुल साफ है।
लेख की शुरुआत में मैंने गांधी जी की बुद्धिमता का उदाहरण दिया है। उसकी तुलना हिंदुत्व के नेताओं की पहले हैदाराबाद और फिर दिल्ली में की गई कार्रवाई से करके देखिए। हमें इस मामले पर परिपक्व समझ दिखाना चाहिए।
जब तक सरकार इस दिशा में कोशिश करती भी नहीं दिखेगी तब तक हमें इस बात पर अचरज नहीं होना चाहिए कि अब तक दबे और पीड़ित रहे लोग सरकार की अवज्ञा के लिए प्रोत्साहित करने वाले काम करते रहेंगे।