होली का हुरंगा : फाड़े कपड़े और हुरियारों पर बरसाए कोड़े
मथुरा : होली के एक दिन बाद बुधवार को बलदेव की छटा देवलोक सी नजर आ रही है। बलदेव के हुरंगा का नजारा देखने को प्रकृति भी व्याकुल थी। भगवान श्रीकृष्ण- बलदेव के स्वरूपों ने जैसे ही होली खेलने की आज्ञा दी, आसमान से फूलों और अबीर गुलाल की बरसात होने लगी। मंदिर में अबीर गुलाल के बादल से आसमान सतरंगी हो गया। हुरियारिनों ने कपड़े फाड़कर कोड़ा बनाकर हुरियारों की पिटाई शुरू कर दी। टेसू के रंगों की बरसात से मंदिर प्रांगण लबालब हो गया। घंटों चले कोड़ामार होली से बलदेव का वातावरण हुरंगामय हो गया। ब्रज में होली के बाद हुरंगा का दौर शुरू हो गया है। बलदेव के विश्व प्रसिद्ध हुरंगा में सराबोर होने को देश- दुनिया के श्रद्धालु एकत्रित हुए थे। मंदिर प्रांगण में पैर रखने का भी स्थान नहीं था। आने वाले श्रद्धालु बलदाऊ महाराज और रेवती मैया के दर्शन कर निहाल हो रहे थे। परंपरागत समाज गायन भी सुबह से ही शुरू हो गया था। हुयारिनों ने भांग घोट कर दाऊजी महाराज का भोग लगाया। मंदिर में रसिया गायन देश- दुनिया के श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर रहा था। नफीरी के स्वर वातावरण में मधुरता घोल रहे थे। दोपहर 12 बजे के लगभग हुरियारे और हुरियारिन ने मंदिर में रसिया गाते हुए मंदिर में प्रवेश किया। रसिया गायन पर श्रदालु झूमने लगे। झंडा लेकर दाऊ जी महाराज की आमंत्रित किया। मंदिर में अबीर गुलाल और फूलों की बरसात शुरू ही गई। बलदेब का आसमान सतरंगी हो गया। हुरियारिन हुरियारों के कपडे फाड़कर उन पर कोड़े बरसाती रही। हुरंगा के बाद हुरियारे और हुरियारिन ने नगर परिक्रमा करेंगे।
गांव की महिलाएं लोगों को रंगों से सराबोर करती हैं। उसके बाद उनकी हंटर से पिटाई लगाती हैं। कुछ देर पिटाई करने के बाद दूसरी महिला हंटर ले लेती है और दूसरे व्यक्ति की पिटाई करने लगती है। प्रेम के हंटर की मार खाने के बाद भी लोग आनंदित होते हैं। नवविवाहित महिलाएं भी शामिल होती हैं। विश्व प्रसिद्ध हुरंगे को भव्य बनाने के लिए मंदिर प्रबंधन द्वारा व्यापक इंतजाम किए गए थे। इस दौरान कई कुंटल रंग-बिरंगा गुलाल मशीनों के माध्यम से उड़ाया गया। रंग बनाने के लिए टेसू के फूल व केसर मंगाया गया था। गुलाब के फूल व गेंदा के फूल छतों से भक्तों पर लुटाए गए। भुरभुर की वर्षा भी रूक-रूक कर होती रही। कुछ ही पलों बाद मंदिर प्रागंण तालाब में तब्दील हो गया। छज्जों पर लगे फव्वारों से भी पानी की वर्षा की गई। दाऊजी हुरंगा में पदों के माध्यम से संकीर्तन मंडली ने भी चार चांद लगाए। छैल-छबीलौ ठाकुर मैरो भयौ है आज रंगीलो, होरी कैसे खेलूंगी जा दाऊजी के संग, माने ना मोरी के रसिया माने ना मोरी, ढप बाजौ रे छैल मतवारै को, सुन ले वृषभानु किशोरी, सारे ब्रज में होरी होवे दाऊजी होय हुरंगा, तेरी सबरी चमक बिगड़ जाएगी तू कह रही होरी-होरी, मेरी कोरी चुनरिया रंग गयौ री, होली बरसाने की देखी, हुरंगा दाऊ को मशहूर आदि पंक्तियों पर श्रद्धालुओं स्वयं को नृत्य करने से रोक ना सके। बलदाऊ की नगरी बलदेव में हुरंगा की परंपरा पांच सौ वर्ष पुरानी है। माना जाता है कि श्री बलदाऊ के विग्रह की यहां प्रतिष्ठा 1582 में हुई थी। बताया जाता है कि मंदिर में विग्रह की स्थापत्य काल में बलदाऊ में हुरंगा खेलने की परंपरा पड़ी।