जीवनशैली

होली की धूम, तरह-तरह से हर कोने में

भारत मे रंगो का त्यैहार हेली हर्षेल्लास के साथ मनाया जाता है।यहॉं तरह-तरह के पकवान बनाकर घर आए मेहमानों को खिलाए जाते हैं।होली सौहार्द और भाईचारे का पर्व है।

बरसाने की होली

होली की बात हो और बरसाने का नाम ना आए, ऐसा तो नही हो सकता। होली शुरू होते ही सबसे पहले बरसाने और ब्रज के रंगों में मन डूब जाता है। यहाँ भी सबसे ज्यादा मशहूर है बरसाना की लट्ठमार होली। राधा का जन्मस्थान ’बरसाना’ है। मथुरा (उत्तरप्रदेश) के पास बरसाना में होली बसंत पंचमी से ही शुरू हो जाती है।

लट्ठ लेकर महिलाएं (गोपियां) अपना बचाव करती हैं। लट्ठ गोपियें के हाथ में रहता है और नन्दगाँव के पुरुषों (गोप) जो राधा के मन्दिर ’लाडलीजी’ पर झंडा फहराने की कोशिश करते हैं, उन्हें महिलाओं के लट्ठ से बचना होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन सभी महिलाओं में राधा की आत्मा बसती है और पुरुष भी हँस-हँस कर लाठियाँ खाते हैं। वे इसे अपना सौभाग्य मानते हैं। आपसी वार्तालाप के लिए ’होरी’ गाई जाती है, जो श्रीकृष्ण और राधा के बीच वार्तालाप पर आधारित होती है।

महिलाएँ पुरुषों को लट्ठ मारती हैं, लेकिन गोपों को किसी भी तरह का प्रतिरोध करने की इजाजत नहीं होती है। उन्हें सिर्फ गुलाल छिड़क कर इन महिलाओं को चकमा देना होता है। माना जाता है कि पौराणिक काल में श्रीकृष्ण को बरसाना की गोपियों ने नचाया था। जो पुरुष पकड़े जाते हैं तो उनकी जमकर पिटाई होती है या महिलाओं के कपड़े पहनाकर, श्रंगार इत्यादि करके उन्हें नचाया जाता है।

रंग पंचमी तक चलने वाली इस होली का माहौल बहुत रंगीला होता है। एक बात और यहाँ पर जिस रंग-गुलाल का प्रयोग किया जाता है वो प्राकृतिक होता है, जिससे माहौल बहुत ही सुगन्धित रहता है। अगले दिन यही प्रक्रिया दोहराई जाती है, लेकिन इस बार नन्दगाँव में, वहाँ की गोपियाँ, बरसाना के गोपों की जमकर धुलाई करती है।

हरियाणा की धुरेड़ी 

भारतीय संस्कृति में रिश्तों और प्रकृति के बीच सामंजस्य का अनोखा मिश्रण हरियाणा की होली में देखने को मिलता है। यहाँ होली धुरेड़ी के रूप में मनाते हैं और सूखी होली – गुलाल और अबीर से खेलते हैं। भाभियों को इस दिन पूरी छूट रहती है कि वे अपने देवरों को साल भर सताने का दण्ड दें।

भाभियाँ देवरों को तरह-तरह से सताती हैं और देवर बेचारे चुपचाप झेलते हैं, क्योंकि इस दिन तो भाभियों का दिन होता है। शाम को देवर अपनी प्यारी भाभी के लिए उपहार लाता है और भाभी उसे आशीर्वाद देती है। लेकिन उपहार और आशीर्वाद के बाद फिर शुरू हो जाता है देवर और भाभी के पवित्र रिश्ते की नोकझोंक और एक-दूसरे को सताए जाने का सिलसिला। इस दिन मटका फोड़ने का भी कार्यक्रम आयोजित होता है।

बंगाल का दौल उत्सव

गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर ने होली के ही दिन शान्ति निकेतन मे वसन्तोत्सव का आयोजन किया था, तब से आज तक इसे यहाँ बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।

बंगाल में डोल पूर्णिमा

बंगाल में होली डोल पूर्णिमा(झूला-उत्सव) के रूप में भी मनाया जाता है। इस दौरान रंगों के साथ पूरे बंगाल की समृद्ध संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। इस दिन लोग बसंती रंग के कपड़े पहनते हैं और फूलों से श्रंगार करते हैं। सुबह से ही नृत्य और संगीत का कार्यक्रम चलता है। घरों में मीठे पकवान और बनते हैं। इस पर्व को डोल जात्रा के नाम से भी जाना।

इस मौके पर राधा-कृष्ण की प्रतिमा झूले में स्थापित की जाती है और महिलाएँ बारी-बारी से इसे झुलाती हैं। शेष महिलाएँ इसके चारों ओर नृत्य करती हैं। पूरे उत्सव के दौरान पुरुष महिलाओं पर रंग फेंकते रहते हैं और बदले में महिलाएँ भी उन्हें रंग-गुलाल लगाती हैं।

महाराष्ट्र की रंग पंचमी और गोआ (कोंकण) का शिमगो

महाराष्ट्र और कोंकण के लगभग सभी हिस्सों में इस त्योहार को रंगों के त्योहार के रूप में मनाया जाता है। मछुआरों की बस्ती में इस त्योहार का मतलब नाच-गाना और मस्ती होता है। यह मौसम शादी तय करने के लिए ठीक माना जाता है क्योंकि सारे मछुआरे इस त्योहार पर एक-दूसरे के घरों को मिलने जाते हैं और काफी समय मस्ती में बीतता है।

महाराष्ट्र में पूरनपोली नाम का मीठा स्वादिष्ट पकवान बनाया जाता है, वहीं गोआ में इस मौके पर मांसाहार और मिठाइयाँ बनाई जाती हैं। महाराष्ट्र में इस मौके पर जगह-जगह पर दही हांडी फोड़ने का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। दही-हांडी की टोलियों के लिए पुरस्कार भी दिए जाते हैं। इस दौरान हांडी फोड़ने वालों पर महिलाएँ अपने घरों की छत से रंग फेंकती हैं।

पंजाब का होला मोहल्ला

पंजाब में भी इस त्योहार की बहुत धूम रहती है। सिखों के पवित्र धर्मस्थान आनन्दपुर साहिब में होली के अगले दिन से लगने वाले मेले को होला मोहल्ला कहते है। सिखों के लिए यह धर्म-स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण है। कहते हैं गुरु गोबिन्द सिंह (सिखों के दसवें गुरु) ने स्वयं इस मेले की शुरुआत की थी। तीन दिन तक चलने वाले इस मेले में सिख शौर्यता के हथियारों का प्रदर्शन किया जाता है और वीरता के करतब दिखाए जाते हैं। इस दिन यहाँ पर आनन्दपुर साहिब की सजावट की जाती है और विशाल लंगर का आयोजन किया जाता है।

तमिलनाडु की कामन पोडिगई

तमिलनाडु में होली का दिन कामदेव को समर्पित होता है। इसके पीछे भी एक किंवदन्ती है। प्राचीनकाल मे पार्वती की मृत्यु के बाद शिव काफी व्यथित हो गए थे। इसके साथ ही वे ध्यान में चले गए। उधर पर्वत सम्राट की पुत्री भी शंकर भगवान से विवाह करने के लिए तपस्या कर रही थी। देवताओं ने भगवान शंकर की निद्रा को तोड़ने के लिए कामदेव का सहारा लिया। कामदेव ने अपने कामबाण से शंकर पर वार किया।
भगवान ने गुस्से में अपनी तपस्या को बीच में छोड़कर कामदेव को देखा। शंकर भगवान को बहुत गुस्सा आया कि कामदेव ने उनकी तपस्या में विघ्न डाला है, इसलिए उन्होंने अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म कर दिया। अब कामदेव का तीर तो अपना काम कर ही चुका था, सो पार्वती को शंकर भगवान पति के रूप में प्राप्त हुए।

उधर कामदेव की पत्नी रति ने विलाप किया और शंकर भगवान से कामदेव को जीवित करने की गुहार की। ईश्वर प्रसन्न हुए और उन्होंने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया। यह दिन होली का दिन होता है। आज भी रति के विलाप को लोक संगीत के रूप में गाया जाता है और चंदन की लकड़ी को अग्निदान किया जाता है ताकि कामदेव को भस्म होने में पीड़ा ना हो। साथ ही बाद में कामदेव के जीवित होने की खुशी में रंगों का त्योहार मनाया जाता है।यहॉं कामदेव व रति के पुनर्मिलन के रूप में होली का त्यौहार मनाया जाता है।

बिहार की फागु पूर्णिमा

फागु मतलब लाल रंग और पूर्णिमा यानी पूरा चाँद। बिहार में इसे फगुवा नाम से भी जानते हैं। बिहार और इससे लगे उत्तरप्रदेश के कुछ हिस्सों में इसे हिंदी नववर्ष के उत्सव के रूप में मनाते हैं। लोग एक-दूसरे को बधाई देते हैं। होली का त्योहार तीन दिनों तक मनाया जाता है। पहले दिन रात में होलिका दहन होता है, जिसे यहाँ संवत्सर दहन के नाम से भी जाना जाता है और लोग इस आग के चारों ओर घूमकर नृत्य करते हैं।

अगले दिन इससे निकले राख से होली खेली जाती है, जो धुलेठी कहलाती है और तीसरा दिन रंगों का होता है। स्त्री और पुरुषों की टोलियाँ घर-घर जाकर डोल की थाप पर नृत्य करते हैं, एक-दूसरे को रंग-गुलाल लगाते हैं और पकवान खाते हैं।

भीलों की होली

राजस्थान और मध्यप्रदेश में रहने वाले भील आदिवासियों के लिए होली विशेष होती है। वयस्क होते लड़कों को इस दिन अपना मनपसंद जीवनसाथी चुनने की छूट होती है। भीलों का होली मनाने का तरीका विशिष्ट है। इस दिन वो आम की मंजरियों, टेसू के फूल और गेहूँ की बालियों की पूजा करते हैं और नए जीवन की शुरुआत के लिए प्रार्थना करते हैं।

गुजरात के होली राजा

होली के मौके पर गुजरात में मस्त युवकों की टोलियाँ सड़कों पर नाचते-गाते चलती हैं। गलियों में ऊँचाई पर दही की मटकियाँ लगाई जाती हैं और युवकों को यहाँ तक पहुँचने के लिए प्रेरित किया जाता है। इन मटकियों में दही के साथ ही पुरस्कार भी लटकते हैं। यह भगवान कृष्ण के गोपियों की मटकी फोड़ने से प्रेरित है। ऐसे में कौन युवक कन्हैया नहीं बनना चाहेगा और कौन होगी जो राधा नहीं बनना चाहेगी।
राधारानी मटकी नहीं फूटे इसलिए इन टोलियों पर रंगों की बौझार करती रहती हैं। जो कोई इस मटकी को फोड़ देता है, वह होली राजा बन जाता है। होली के पहले दिन जलने वाली होलिका की राख गौरी देवी को समर्पित करते हैं।

मणिपुर में योसांग होली

मणिपुर में होली पूरे 6 दिनों तक चलती है, जिसे योसांग कहते हैं। यहाँ होली की शुरुआत में होलिका न बनाकर एक घासफूस की एक झोपड़ी बनाई जाती है और इसमें आग लगाते हैं। अगले दिन लड़कों की टोलियाँ लड़कियों के साथ होली खेलती है, इसके बदले में उन्हें लड़की को उपहार देना होता है।

होली के दौरान लोग कृष्ण मंदिर में पीले और सफेद रंग के पारंपरिक परिधान पहनकर जाते हैं और संगीत और नृत्य करते हैं। इस दौरान थाबल चोंगा वाद्य बजाया जाता है और लड़के-लड़कियाँ नाचते हैं। वे एक-दूसरे को गुलाल लगाते हैं। इस त्योहार का उद्देश्य लड़के-लड़कियों को एक-दूसरे से मिलने के लिए मौका देना भी होता है।

फागुन का त्योहार प्यार, त्याग, द्वेषरहित, आपसी मेल मिलाप, मस्ती और तरंग लेकर आता है, और सभी को उत्साह से भर देता है। बच्चों की तैयारी तो कई दिन पहले से ही होने लगती है। वे तरह-तरह पिचकारियाँ, रंग और गुलाल खरीदने लगते हैं। बच्चों के साथ बड़े भी पूरे उत्साह से जुट जाते हैं। पर यह कोई नहीं सोचता कि होली में इस्तेमाल किए जाने वाले रासायनिक तेजाबी रंग हमारी त्वचा व स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकते हैं।

होली के अवसर पर प्रयोग में आने वाले रंगों को मुख्यत तीन प्रकारों में बाँटा जा सकता है। जो हैं तेजाबी रंग, मूल रंग, मिश्रित अथवा हलका रंग। कभी-कभी सीसे से बनाए|

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