अद्धयात्मदस्तक-विशेष

।। समर्पण ।। मेरे अपने राम

आशुतोष राणा : अतिथि संपादक

परम पूज्य दद्दाजी सुधारक भी हैं और उद्धारक भी हैं। श्रीगुरु दद्दाजी का सम्पर्क मृणमय को चिन्मय बना देता है। परमपूज्य गुरुदेव दद्दाजी के श्रीचरणों में दण्डवत प्रणाम करते हुए, मैं हृदय की गहराइयों से मेरे मित्र, शुभचिंतक व आध्यात्मिक ऊर्जा से सम्पन्न श्री रामकुमार जी व दस्तक पत्रिका के पूरे परिवार को धन्यवाद देता हूँ, जिन्होंने दस्तक जो राजनीतिक, सामाजिक पत्रिका है का भक्ति विशेषांक निकालकर इन रचनाओं को आप सभी सुधीजनों तक पहुँचाया।

श्रीगुरु परमपूज्य दद्दाजी ने जब रामेश्वरम धाम में सवा करोड़ पार्थिव शिवलिंग निर्माण के अपने शिवसंकल्प की घोषणा की तो मेरा मन उल्लास से प्लावित हो गया। क्योंकि महादेव के पार्थिव स्वरूप के पूजन की परम्परा को जनसामान्य के बीच प्रचलित करने वाले भगवान विष्णु के सातवें अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के बाद यह विलक्षण अमृतयोग श्रीगुरु दद्दाजी की कृपा से हम सबको प्राप्त हो रहा था।
रामेश्वरम धाम की जिस विजयभूमि पर श्रीराम ने पार्थिव पूजन कर महादेव को सिद्ध करके असाध्य को भी साधने का विक्रम प्राप्त किया था, उसी पावन भूमि पर परमपूज्य दद्दाजी के द्वारा ‘सवा करोड़ पार्थिव शिवलिंग निर्माण महारुद्र यज्ञ’ को सम्पन्न करने का यह शिवसंकल्प हम सभी के सुखद, सार्थक, संतुष्ट, संकल्पित जीवन का उद्घोष करता हुआ सा प्रतीत हो रहा है।
पिछले ३३ वर्षों से परमपूज्य दद्दाजी के कृपा सानिध्य में रहते हुए उनकी कृपा से जितना जान पाया वो यह है कि सदगुरु दद्दाजी का कोई भी कार्य निरुद्देश्य नहीं होता, वे सतत जनकल्याण के लिए आध्यात्मिक, धार्मिक प्रयोगों को करते रहने वाले ऋषि हैं, उनके द्वारा सम्पन्न प्रत्येक यज्ञ का हेतु राष्ट्र कल्याण, वैश्विक समरसता व मानव चेतना का परिष्कार होता है। वे अपने सम्पर्क में आने वाले प्रत्येक जड़-चेतन को परिमार्जित कर उसकी उपयोगिता और सार्थकता को सिद्ध करने वाले ऋषि हैं।
रामेश्वरम यज्ञ की घोषणा के बाद एक दिन जब मैं मुंबई में अपने निवास पर रात्रि विश्राम से पूर्व परमपूज्य गुरुदेव दद्दाजी को स्मरण करते हुए धन्यवाद के भाव से भरा हुआ मन ही मन प्रार्थना कर रहा था, कि तभी मुझे लगा जैसे वे मुझसे कह रहे हैं कि आशुतोष- रामेश्वरम, हरि और हर की पुण्य भूमि है। इस भूमि पर श्रीराम महादेव को अपना ईश्वर मानते हुए उन्हें पूज रहे हैं तो महादेव श्रीराम को अपना आराध्य मान उनका अभिनंदन कर रहे हैं। यह वह भूमि है जहाँ भगवान स्वयं ही भक्त के भाव से उपस्थित हैं। संसार की भीषणतम चुनौतियों पर विजय प्राप्त करने का एकमात्र सूत्र- भक्ति है और तभी मेरे मन में परम पूज्य दद्दाजी की प्रेरणा से श्रीराम के जीवन चक्र की तस्वीरें घूमने लगीं। मैं यंत्र चलित सा कागज कलम उठाकर बैठ गया।
मेरे अंदर पार्थवेश्वर महादेव की कथा का उत्स फूट पड़ा था, मुझे लगा जैसे कोई मुझे माध्यम बनाकर स्वयं ही इस कथा का सृजन कर रहा है। मेरा हृदय जैसे रंगभूमि बन गया था जिसपर परमात्मा श्रीराम, श्री लक्ष्मण, महादेव के परम भक्त दशानन रावण व शंकर स्वयं केसरी नंदन वाले हनुमान जी महाराज विभिन्न रंगों से उसे रंग रहे थे। पार्थवेश्वर की समाप्ति के बाद अनायास ही सीता परित्याग का प्रसंग मेरी आत्मा में बैठ गया, इस पूरी प्रक्रिया के दौरान मेरा रोम-रोम आनंद से भरा हुआ था। सदगुरु जब कृपा करते हैं तब वे व्यर्थ को भी अर्थपूर्ण बना देते हैं, इस शाश्वत सत्य का प्रमाण मेरा अपना जीवन है। मुझे नहीं पता कि श्रीगुरु दद्दाजी की कृपा से मुझे माध्यम बनाकर प्रकट होने वाली ये कथायें आपके आनंद का स्रोत बनेगी या नहीं ? किंतु यह सत्य है कि लेखन की इस क्रिया के दौरान मुझे परमानंद प्राप्त हुआ।
भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जीवन की दो ऐसी घटनाएँ जिन्हें चुनौतियों का चरम कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
1- लंका विजय : जिसमें साधनहीन श्रीराम ने साधनसंपन्न रावण को परास्त, धराशायी करते हुए अपने ‘विस्मृत नारायणत्व को’ स्मृत करते हुए स्वयं को संसार की ‘स्मृति में’ सदा के लिए नारायण के रूप में स्थापित कर दिया। देखा जाए तो लंका विजय एक नर का अपनी शक्ति को पुन: प्राप्त करने का दुर्घर्ष प्रसंग है। सीता रूपी शक्ति से नर राम का संयोग ही उन्हें नर से नारायण बनाता है।
2- सीता परित्याग : ‘साधनसंपन्न श्रीराम के’ जीवन का वह करुण प्रसंग है जिसमें नरावतार श्रीराम शक्ति रूपी सीता के वियोग से नारायण होते हुए भी नर की प्रतिष्ठा को प्राप्त होते हैं।
लंका विजय जहाँ नर में नारायण की सम्भावना का उद्घोष है, तो वहीं सीता परित्याग नारायण में नर की भावना की परम अभिव्यक्ति।
रामेश्वरम धाम का महत्व मात्र रामसेतु के कारण नहीं, बल्कि महादेव शिव जो रामहेतु आए थे उनकी साक्षात उपस्थिति के कारण है क्योंकि रामसेतु जहाँ महासागर को पार करवाता है, रामहेतु वहीं हमें भवसागर के पार ले जाते हैं। सदगुरु परम पूज्य दद्दाजी रामसेतु भी हैं व रामहेतु भी हैं। वे परमात्मा तक पहुँचने के मार्ग भी हैं, व परमात्मा के बहुजन हिताय बहुजन सुखाय वाले मंतव्य को साधने वाले माध्यम भी हैं। परम पूज्य दद्दाजी सुधारक भी हैं और उद्धारक भी हैं। श्रीगुरु दद्दाजी का सम्पर्क मृणमय को चिन्मय बना देता है। परमपूज्य गुरुदेव दद्दाजी के श्रीचरणों में दण्डवत प्रणाम करते हुए, मैं हृदय की गहराइयों से मेरे मित्र, शुभचिंतक व आध्यात्मिक ऊर्जा से सम्पन्न श्री रामकुमार जी व दस्तक पत्रिका के पूरे परिवार को धन्यवाद देता हूँ, जिन्होंने दस्तक जो राजनीतिक, सामाजिक पत्रिका है का भक्ति विशेषांक निकालकर इन रचनाओं को आप सभी सुधीजनों तक पहुँचाया। मैं परमपूज्य गुरुदेव दद्दाजी से प्रार्थना करता हूँ कि वे आपके सभी शिवसंकल्पों को पूरा करें। शिवसंकल्पमस्तु ..

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