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•••अपने भारतीय साहित्यकार•••

दस्तक का जनवरी अंक नये वर्ष की सुखद संभावनाओं को संजोने की ओर अग्रसर है। देश की राजनीतिक दिशा-दशा और बदलते राजनीतिक घटनाक्रम पर तो हमारी विशेष नजर रहती ही है, समाज के अन्य सभी अंगों , खेल, फिल्म, कला, अध्यात्म, विज्ञान के साथ-साथ भारतीय और विदेश राजनीति पर भी हमारा निरंतर विश्लेषण प्रकाशित होता रहता है। किन्तु बहुत दिनों से जेहन में एक बात उठती रहती थी कि भारतीय मूल के विदेशों में रहने वाले जिन्हें हम प्रवासी भारतीय कहते हैं, उनकी हिन्दी भाषा व साहित्य के प्रति अभिरुचि और समर्पण,दूरदेश में रहते हुए भी स्वदेश से  लगाव, विदेशी परंपराओं और भाषाओं को आत्मसात करने के बावजूद हिन्दी के प्रति अनन्य-अगाध प्रेम जो आज भी उनके हृदय में अंतरधारा की तरह प्रवाहित हो रहा है। विदेशों में रहने वाले अपने इन भारतीय परिवार के सदस्यों को जिन्होंने साहित्य को समृद्ध करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है,किंतु हम उन्हें उतना महत्व नहीं दे पाये जितना कि देना चाहिए था। फलस्वरूप इस बात की शिकायत और उलाहने सुनने और पढ़ने में आते रहते हैं। इसी कारण हमने अपने प्रकाशन में विदेशों में रहने वाले भारतीय मूल के साहित्यकारों की रचनाओं को प्रमुखता से प्रकाशित करना शुरू किया, जिसमें दस्तक की साहित्य सम्पादक डा.सुमन जी विशेष योगदान दे रही हैं। चूंकि प्रवासी साहित्यकारों में महिला वर्ग अधिक सक्रिय है तो सुमन जी को महिला होने के नाते उनकी भावनाओं को समझने में ज्यादा आसानी होती है। दस्तक प्रकाशन ने यह फैसला किया है कि हम भारतीय मूल के प्रवासी साहित्यकारों एवं लेखकों की रचनाओं, लेखों को प्रमुखता से प्रकाशित करेंगे जिससे हमारे सम्बन्ध स्नेहिल और प्रगाढ़ होंगे और हम नियमित रूप से इनकी उपलब्धियाँ व रचनात्मक अवदान के बारे में व्यापक सुधी पाठक वर्ग  को अवगत करा पाएंगे।

साथ ही हमारा प्रयास है कि विदेशों में रह रहे हिन्दी भाषी सदस्यों को साहित्य और पत्रकारिता जगत में दस्तक के द्वारा वह स्थान दिया जा सके, जिसकी उन्हें हम भारतीय प्रकाशकों और संपादकों से आशा रहती है। इसी कारण हमने प्रवासी लेखक मंडल का भी गठन किया है जिसमें उन वरिष्ठ और प्रतिष्ठित साहित्यकारों और लेखकों को चुना है जो लेखन के क्षेत्र में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं लेकिन भारतीय हिन्दी पाठक वर्ग उन्हें उतना करीब से नहीं जानता जितना जानना चाहिए। इसलिए हम वादा करते हैं कि आपकी रचनाओं से हम भारतीय पाठकों को लगातार रूबरू कराते रहेंगे और आवासीय व प्रवासीय के भेदभाव  को अपने हिस्से के कर्तव्य द्वारा कम करने का प्रयास करते रहेंगे। वैसे ग्लोबल दुनिया में इंटरनेट और सोशल मीडिया ने सभी की दूरी को कम करने का काम किया है, हालांकि इसके फायदे और नुकसान दोनों हैं किन्तु हम इस माध्यम का लाभ लेकर आप सभी प्रवासी भारतीय लेखकों से लगातार संपर्क बनाये रहेंगे। हमें विश्वास है कि दस्तक प्रकाशन आप लोगों की आवाज बनकर भारतीय पाठकों के हृदय में तो अपना स्थान बना ही लेगा, इसके अलावा भारतीय सरकार और तंत्र को भी हम आपकी भावनाओं से परिचित कराने का निरंतर प्रयास करते रहेंगे।हम यह भी जानते हैं कि आपको ‘प्रवासी’ संबोधन  पसंद नहीं है, इसलिए हम आपको प्रवासी न कहकर ‘अपने भारतीय साहित्यकार ‘ कहकर ही संबोधित करना प्रारम्भ कर रहे हैं,  जिससे आपके और हमारे हृदय की संवेदनाओं को एक-दूसरे से तारतम्य बैठाने में आसानी हो सके। अगर हम अपनी सेवाओं और आपके योगदान का समन्वय बना सके तो निश्चित ही हमारा स्थान आपके हृदय में बन पायेगा और यही हमारा पारितोषिक होगा। आप वरिष्ठ ‘अपने भारतीय साहित्यकारों एवं लेखकों ‘से यह निवेदन भी है कि, इस दिशा में हम और क्या-क्या  बदलाव कर सकते हैं, इसके सुझाव भी हमें जरूर प्रेषित करें और समय-समय पर हमारा मार्गदर्शन करते रहें। इसी आशा के साथ दस्तक का यह  जनवरी अंक प्रवासी साहित्य पर विशेष दस्तक देने का प्रयास कर रहा है।

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